Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 773
________________ ( १५१२ । १८-१९. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। २०. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। २१-२२. जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए,एगे अहेसत्तमाए होज्जा। २३. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। २४. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। २५. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। २६. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। २७. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। २८. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। २९. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। ३०. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३१. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३२. अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। ३३. अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३४.अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३५.अहवा एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। (एएचउरासीइ भंगा) -विया. स.९, उ.३२ सु.१८ ___ द्रव्यानुयोग-(२)] १८-१९. अथवा एक शर्कराप्रभा में एक वालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। २०. अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। २१-२२. अथवा यावत् एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।२ २३. अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तम प्रभा में उत्पन्न होता है। २४. अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।३ २५. अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। २६. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। २७. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। २८. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। २९. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। ३०. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। ३१. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। ३२. अथवा एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। ३३. अथवा एक पंकप्रभा में, एक धमप्रभा में अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।६ ३४. अथवा एक पंकप्रभा में, एक तम:प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। ३५. अथवा एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है।८ (ये चौरासी भंग हैं।) नाना १. इस प्रकार शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा के साथ चार विकल्प होते हैं। २. इस प्रकार वालुकाप्रभा को छोड़ देने पर शर्कराप्रभा और पंकप्रभा के साथ तीन विकल्प होते हैं। ३. इस प्रकार पंकप्रभा को छोड़ देने पर शर्कराप्रभा और धूमप्रभा के साथ दो विकल्प होते हैं। ४. ये शर्कराप्रभा के साथ ४+३+२+१ = १० विकल्प होते हैं। ५. इस प्रकार वालुकाप्रभा के साथ ३+२+१-६ विकल्प होते हैं। ६. इस प्रकार पंकप्रभा और धूमप्रभा के साथ दो विकल्प होते हैं। ७. इस प्रकार पंकप्रभा के साथ २+१-३ विकल्प होते हैं। (३) ८. इस प्रकार धूमप्रभा के साथ एक विकल्प होता है। रत्नप्रभा के १५, शर्कराप्रभा के १०, बालुकाप्रभा के ६, पंकप्रभा के ३, धूमप्रभा का एक ये त्रिकसंयोगी के ३५ भंग हैं (असंयोगी के ७, द्विक संयोगी के ४२, त्रिक संयोगी के ३५ ये सब कुल ८४ भंग होते हैं।

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