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द्रव्यानुयोग-(२)
३५. अथवा एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तम प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (३५)
( १५१६ )
३५. अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(३५)
-विया. स.९,उ.३२ सु.१९ ८७. पंच नेरइयाणं विवक्खाप. पंच भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणए णं पविसमाणा किं
रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
उ. गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा
होज्जा ।(१-७)
१. अहवा एगे रयणप्पभाए, चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा। २-६.जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा।(६) १. अहवा दो रयणप्पभाए,तिण्णिसक्करप्पभाए होज्जा,
२-६. एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, तिण्णि अहेसत्तमाए होज्जा।(१२) १. अहवा तिण्णि रयणप्पभाए,दोसक्करप्पभाए होज्जा।
२-६. एवं जाव अहेसत्तमाए होज्जा।(१८)
८७. पाँच नैरयिकों की विवक्षाप्र. भन्ते ! पाँच नैरयिक जीव नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश
करते हुए रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम पृथ्वी
में उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! रलप्रभा में भी उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम पृथ्वी
में भी उत्पन्न होते हैं।२ (१-७) (द्विक संयोगी ८४ भंग-) १. अथवा एक रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-६ यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (६) १. अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-६. इसी प्रकार यावत् अथवा दो रलप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (१२) १. अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-६. इसी प्रकार यावत् (अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो) अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं।३ (१८) १. अथवा चार रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होता है। २-६.इसी प्रकार यावत् अथवा चार रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (२४) १. अथवा एक शर्कराप्रभा में और चार वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभा के साथ (१-४,२-३.३-२ और ४-१ से आगे की पृथ्वियों का संयोग किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ संयोग करने पर बीस भंग (५-५-५-५ - २०) होते हैं। २-२०. यावत् अथवा चार शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (२०) इसी प्रकार (बालुकाप्रभा आदि) एक एक पृथ्वी के साथ आगे की पृथ्वियों का (१-४, २-३, ३-२ और ४-१ से) योग करना चाहिए। यावत् अथवा चार तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (८४)
१. अहवा चत्तारि रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए होज्जा। २-६. एवं जाव अहवा चत्तारि रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(२४) १. अहवा एगे सक्करप्पभाए, चत्तारि वालुयप्पभाए होज्जा। एवं जहा रयणप्पभाए समं उवरिमपुढवीओ चारियाओ तहा सक्करप्पभाए वि समं चारेयव्वाओ।
२-२०. जाव अहवा चत्तारि सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(२०) एवं एक्केक्काए समंचारेयव्वाओ।
जाव अहवा चत्तारि तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(८४)
१. इस प्रकार सब मिलाकर चतुःसंयोगी भंग २०+१०+४+१-३५ होते हैं, तथा चार नैरयिक आश्रयी असंयोगी ७, द्विकसंयोगी ६३, त्रिकसंयोगी १०५ और
चतुःसंयोगी ३५ ये सब २१० भंग होते हैं। २. इस प्रकार असंयोगी सात भंग होते हैं। ३. इस प्रकार रलप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों के संयोग से कुल चौबीस भंग होते हैं। ४. द्विकसंयोगी भंग-इनमें से रलप्रभा के ६ भंगों के साथ ४ विकल्पों का गुणा करने पर २४ भंग होते हैं। शर्कराप्रभा के साथ ५ भंगों से ४ विकल्पों का गुणा करने पर
२०, वालुकाप्रभा के साथ १६,पंकप्रभा के साथ १२, धूमप्रभा के साथ ८ और तमःप्रभा के साथ ४ भंग होते हैं। इस प्रकार कुल २४+२०+१६+१२+८+४ = ८४ भंग द्विकसंयोगी के होते हैं।