Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 775
________________ १५१४ १. अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा। २-५. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(१०) १. अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा। २-५. एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(१५) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, दो पंकप्पभाए होज्जा।(१६) । २-४. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा।(१९) एवं एएणं गमएणं जहा तिण्हं तियसंजोगो तहा भाणियव्यो जाव अहवा दो धूमप्पभाए, एगे तमाए, एग अहेसत्तमाए होज्जा,(१०५) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा। २. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। ३. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। ४. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। द्रव्यानुयोग-(२) १. अथवा एक रलप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। २-५. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।(१०) १. अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। २-५. इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (१५) १. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में उत्पन्न होते हैं। (१६) २-४. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं।३ (१९) इसी प्रकार के अभिलाप द्वारा जैसे तीन नैरयिक के त्रिकसंयोगी भंग कहे, उसी प्रकार चार नैरयिकों के भी त्रिकसंयोगीभंगजानना चाहिए यावत् दो धूमप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। (१०५) (चतुःसंयोगी ३५ भंग-) १. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। २. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। ३. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में एक वालुकाप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। ४. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। (ये चार भंग हुए।) ५. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। ६. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। ७. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। (इस प्रकार ये तीन भंग हुए।) ८. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। ९.अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (इस प्रकार ये दो भंग हुए।) १०. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। (यह एक भंग हुआ।) ५. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। ६. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। ७. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ८. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। ९. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १०. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १. इस प्रकार १-२-१ के भी पाँच भंग हुए।(१०) २. इस प्रकार २ +१+ १ =के ५ भंग हुए (१५) ३. इस प्रकार रलप्रभा और वालकाप्रभा के साथ ४ भंग होते हैं। ४. रत्नप्रभा के साथ संयोग वाले ४५, शर्कराप्रभा के साथ संयोग वाले ३०, वालुकाप्रभा के साथ संयोग वाले १८, पंकप्रभा के साथ संयोग वाले १२, धूमप्रभा और तमःप्रभा के साथ संयोग वाले ३ इस प्रकार ४५+३०+१८+१२+३ = १०५ भंग त्रिकसंयोगी के हुए।

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