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१५१० ८४. दोहं नेरइयाणं विवक्खाप. दो भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं
रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
उ. १-७ गंगेया !
(१) रयणप्पभाए वा होज्जा जाव (७) अहेसत्तमाए वा होज्जा। १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए होज्जा।
२. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा।
३-४-५-६. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ७. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा।
८-९-१०-११. एवं जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १२.अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा।
१३-१४-१५. एवं जाव अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १६-१७-१८-१९-२०-२१. एवं एक्केक्का पुढवी छड्डेयव्वा जाव अहवा एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।
(एए अट्ठावीसंभंगा) -विया. स. ९, उ. ३२, सु. १७ ८५. तिण्णि नेरइयाणं विवक्खाप. तिण्णि भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं
रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
द्रव्यानुयोग-(२) ८४. दो नैरयिकों की विवक्षाप्र. भन्ते ! दो नैरयिक-नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए
क्या रलप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम में उत्पन्न
होते हैं? उ. १-७ गांगेय !(वे दोनों नैरयिक)
(१) रत्नप्रभा में भी उत्पन्न होते हैं यावत् (७) अधःसप्तम में भी उत्पन्न होते हैं। १. अथवा एक रत्नप्रभा में उत्पन्न होता है और एक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होता है। २. अथवा एक रत्नप्रभा में उत्पन्न होता है और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। ३-४-५-६. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रलप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। ७. अथवा एक शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक वालुकाप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होता है। ८-९-१०-११. इसी प्रकार यावत् एक शर्कराप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। १२. अथवा एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। १३-१४-१५. अथवा इसी प्रकार यावत् एक वालुकाप्रभा में
और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। १६-१७-१८-१९-२०-२१. इसी प्रकार (पूर्व-पूर्व की). एक-एक पृथ्वी छोड़ देनी चाहिए यावत् एक तमःप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है।
(ये अट्ठाईसभंग हैं) ८५. तीन नैरयिकों की विवक्षाप्र. भन्ते ! तीन नैरयिक जीव नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश
करते हुए क्या रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होते हैं यावत् अधः
सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! वे तीनों नैरयिक (एक साथ) रलप्रभा में उत्पन्न होते
हैं यावत् अधःसप्तम में उत्पन्न होते हैं। १. अथवा एक रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-३-४-५-६. अथवा यावत् एक रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं।२ (६) ७. अथवा दो नैरयिक रत्नप्रभा में और एक नैरयिक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होता है। अथवा यावत् दो नैरयिक रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।३ (१२) १३-१७. अथवा एक शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं।
उ. गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा
होज्जा। १. अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए होज्जा।
२-३-४-५-६. जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा।(६) ७. अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए होज्जा,
जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(१२) १३-१७. अहवा एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा।
१. रत्नप्रभा के साथ ६,शर्कराप्रभा के साथ ५, वालुकाप्रभा के साथ ४,पंकप्रभा के साथ ३,धूमप्रभा के साथ २, तम प्रभा के साथ १,ये कुल २१ और असंयोगी ७
कुल २८ भंग होते हैं। २. इस प्रकार १-२ का रत्नप्रभा के साथ अनुक्रम से दूसरे नारकों के साथ संयोग करने से छह भंग होते हैं। ३. इस प्रकार २-१ के भी पूर्ववत् ६ भंग होते हैं। (१२)