Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 769
________________ ( १५०८ - 'सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ?' द्रव्यानुयोग-(२)] वायुकाय का जीव शरीर सहित भी निकलता है और शरीर रहित भी निकलता है? उ. गौतम ! वायुकाय के चार शरीर कहे गए हैं, यथा उ. गोयमा ! वाउकाइयस्स णं चत्तारि सरीरया पण्णत्ता, तंजहा१. ओरालिए. २. वेउव्विए, ३. तेयए, ४. कम्मए। ओरालिय-वेउव्वियाइ विप्पजहाय तेय-कम्मएहिं निक्खमइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ।" -विया.स.२, उ.१, सु.७(१-३) ७९.निस्सीलाइ तिरिक्खजोणियाणं सिय नेरइयोप्पत्ति परूवणं प. अह भंते ! गोलंगूलवसभे, मंडुक्कवसभे-एएणं निस्सीला निव्वया निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्ठिईयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जेज्जा? उ. समणे भगवं महावीरे वागरेइ उववज्जमाणे उववन्ने त्ति वत्तव्वं सिया। प. अह भंते ! सीहे, वग्घे, वगे, दीविए, अच्छे, तरच्छे, परस्सरे एए णं निस्सीला जाव निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं सागरोवमट्ठिईयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जेज्जा? उ. समणे भगवं महावीरे वागरेइ-उववज्जमाणे उववन्ने त्ति वत्तव्वं सिया।२ प. अह भंते ! ढंके, कंके, विलए, मदुए, सिंखी-एए णं निस्सीला जाव निप्पच्चक्खाण पोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्ठिईयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जेज्जा? १. औदारिक, २. वैक्रिय, ३. तैजस्, ४. कार्मण। इनमें से वह औदारिक और वैक्रिय शरीर को छोड़कर दूसरे भव में जाता है इस अपेक्षा से वह शरीर रहित जाता है और तैजस् तथा कार्मण शरीर को साथ लेकर जाता है इस अपेक्षा से वह शरीर सहित जाता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वायुकाय का जीव शरीर सहित भी निकलता है और शरीर रहित भी निकलता है।" ७९. शीलादि रहित तिर्यञ्चयोनिकों की कदाचित नरक में उत्पत्ति का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि श्रेष्ठ वानर, श्रेष्ठ मुर्गा और श्रेष्ठ मेंढक ये सभी शील रहित व्रत रहित गुण रहित, मर्यादाहीन प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से रहित हो तो काल मास में मर कर इस रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नरकों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होते हैं ? उ. श्रमण भगवान महावीर कहते हैं कि-"उत्पन्न होता हुआ उत्पन्न होता है ऐसा कहा जा सकता है।" प्र. भन्ते ! यदि सिंह, व्याघ्र, भेड़िया, चीता, रीछ, जरख और गेंडा ये सभी शील रहित यावत् प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से रहित हो तो काल मास में मर कर इस रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नरकों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होते हैं? उ. श्रमण भगवान महावीर कहते हैं कि-"उत्पन्न होता हुआ उत्पन्न होता है ऐसा कहा जा सकता है।" प्र. भन्ते ! यदि ढंक, कंक,विलक,महक और सिखी ये सभी शील रहित यावत् प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से रहित हो तो काल मास में मर कर इस रलप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नरकों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होते हैं? उ. श्रमण-भगवान महावीर कहते हैं कि-"उत्पन्न होता हुआ उत्पन्न होता है ऐसा कहा जा सकता है।" ८०. दुःशील सुशील मनुष्यों की उत्पत्ति का प्ररूपण लोक में दुःशील, निव्रत-व्रत रहित, निवृत्त, निर्गुण, अमर्यादित, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से रहित ये तीनों काल मास में काल करके सातवीं नरक पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न होते हैं, यथा उ. समणे भगवं महावीरे वागरेइ-उववज्जमाणे उववन्ने त्ति वत्तव्यं सिया।३ -विया. स. १२, उ.८, सु.५-७ ८०.निस्सीलाइ ससीलाइ मणुस्साणं उप्पत्ति परूवणं तओ लोए णिस्सीला णिव्वया निग्गुणा निम्मेरा णिप्पच्चक्खाण पोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अप्पइट्ठाणं णरएणेरइयत्ताए उववज्जंति,तं जहा १-३. यहाँ पर प्रश्न और उत्तर का सम्बन्ध नहीं जुड़ता है अतः प्रश्न और उत्तर के बीच में निम्न उत्तर व प्रश्न छूट गया है ऐसा प्रतीत होता है, यथा उ. हंता, उववज्जेज्जा प्र. से णं भंते ! किं उववज्जमाणे उववन्ने त्ति वत्तव्यं सिया?

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