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१५०६ प. अयं णं भंते ! जीवे पंचसु अणुत्तरविमाणेसु एगमेगंसि
अणुत्तरविमाणंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसण सयण
भंडमत्तोवगरणत्ताए उववन्नपुव्वे? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो।
णवरं-नो चेवणं देवत्ताए वा, देवित्ताए वा एवं सव्यजीवा वि। -विया. स. १२, उ.७, सु.५-१९
७४. एगत्त-पुहत्त विवक्खया सव्वजीवाणं मायाइभावेहिं
अणंतखुत्तो पुव्योवन्नत्त परूवणंप. अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं माइत्ताए, पियत्ताए,
भाइत्ताए, भगिणित्ताए, भज्जत्ताए, पुत्तत्ताए, धूयत्ताए, सुण्हत्ताए उववन्नपुव्वे?
द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भन्ते ! क्या यह जीव पाँच अनुत्तरविमानों में से प्रत्येक अनुत्तर विमान में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, देवरूप में या देवी रूप में तथा आसन, शयन, भंडोपकरण के
रुप में पूर्व में उत्पन्न हो चुका है ? उ. हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुका है। विशेष-देवरूप में या देवीरूप में उत्पन्न नहीं हुआ है। इसी प्रकार सभी जीवों की उत्पत्ति के विषय में भी जानना
चाहिए। ७४. एकत्व-बहुत्व की विवक्षा से सब जीवों का मातादि के रूप में
अनन्त बार पूर्वोत्पन्नत्व का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यह जीव, क्या सभी जीवों के माता के रूप में, पिता
के रूप में, भाई के रूप में, भगिनी के रूप में, पत्नी के रूप में, पुत्र के रूप में, पुत्री के रूप में, पुत्रवधु के रूप में पहले उत्पन्न
हुआ है? उ. हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न
हुआ है। प्र. भन्ते ! क्या सभी जीव इस जीव के माता के रूप में यावत् पुत्र
वधु के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? उ. हाँ, गौतम ! सब जीव (इस जीव के माता के रूप में यावत्
पत्रवध के रूप में) अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न
उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो।
प. सव्वजीवा णं भंते ! इमस्स जीवस्स माइत्ताए जाव
सुण्हत्ताए उववन्नपुव्वे? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो।
प. अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं अरित्ताए, वेरियत्ताए,
घायत्ताए, वहत्ताए, पडिणीयत्ताए, पच्चामित्तत्ताए
उववन्नपुवे? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो।
सव्वजीवा वि एवं चेव। प. अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं रायत्ताए, जुगरायत्ताए,
तलवरत्ताए, माडबियत्ताए, कोडुबियत्ताए, इब्भत्ताए, सेठ्ठित्ताए, सेणावइत्ताए, सत्थवाहत्ताए
उववन्नपुव्ये? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो।
प्र. भन्ते ! यह जीव क्या सब जीवों के शत्रु रूप में, वैरी के रूप,
में, घातक रूप में, वधक रूप में, (विरोधी रूप में) तथा
प्रत्यामित्र (शत्रु सहायक) के रूप में पहले उत्पन्न हुआ है ? उ. हाँ, गौतम ! यह अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न
हुआ है।
इसी प्रकार सब जीवों के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! यह जीव क्या सब जीवों के राजा के रूप में, युवराज
के रूप में, तलवर के रूप में, माडंबिक के रूप में, कौटुम्बिक के रूप में, इभ्य के रूप में,श्रेष्ठी के रूप में, सेनापति के रूप
में और सार्थवाह के रूप में पहले उत्पन्न हुआ है? उ. हाँ, गौतम ! यह अनेक बार या अनन्त बार पहले उत्पन्न
हुआ है।
इसी प्रकार सब जीवों के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! यह जीव क्या सभी जीवों के दास रूप में, प्रेष्य (नौकर)
रूप में, भृतक रूप में, भागीदार रूप में, भोगपुरुष रूप में,
शिष्य रूप में और द्वेष्य (द्वेषी) के रूप में पहले उत्पन्न हुआ है ? उ. हाँ, गौतम ! यह अनेक बार या अनन्त बार पहले उत्पन्न
हुआ है। इसी प्रकार सभी जीव भी अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं।
सव्वजीवा वि एवं चेव। प. अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं दासत्ताए, पेसत्ताए,
भयगत्ताए, भाइल्लत्ताए, भोगपुरिसत्ताए, सीसत्ताए,
वेसत्ताए उववन्नपुव्वे? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो।
एवं सव्वजीवा वि अणंतखुत्तो।
-विया. स. १२, उ.७, सु. २०-२३ ७५. दीवसमुद्देसु सव्वजीवाणं उववन्नपुव्वत्त परूवणंप. दीवसमुद्देसु णं भंते ! सव्वपाणा, सव्वभूया, सव्वजीवा,
सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा?
७५. द्वीपसमुद्रों में सर्वजीवों के पूर्वोत्पन्नत्व का प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या इन द्वीप-समुद्रों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव
और सब सत्व पृथ्वीकाय यावत त्रसकाय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं?