Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 765
________________ १५०४ देसेणं समोहण्णमाणे पुव्विं संपाउणित्ता पच्छा उववज्जिज्जा, सव्वेणं समोहण्णमाणे पुव्विं उववज्जेत्ता पच्छा संपाउणेज्जा। एवं जहा पुढविकाइओ तहा वाउकाइओ विसव्व कप्पेसु जाव ईसिपब्भाराए तहेव उववाएयव्यो। -विया. स. १७, उ.१०, सु. १ प. वाउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए तणुवाए घणवायवलएसु तणुवायवलएसु वाउकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं जहा सोहम्मवाउकाइओ सत्तसु वि पुढवीसु उववाइओ एवं जाव ईसिपब्भाराए वाउकाइओ अहे सत्तमाए जाव उववाएयव्यो। -विया. स. १७, उ. ११, सु. १ ७३. चउवीसदंडएसु एगत्त-पुहत्तविवक्खया अणंतखुत्तो उववन्नपुव्वत्त परूवणंप. द. १. अयं णं भंते ! जीवे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु, एगमेगसि निरयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नरगत्ताए, नेरइयत्ताए उववन्नपुब्बे? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो। द्रव्यानुयोग-(२)) देश से समुद्घात करने पर पहले पुद्गल ग्रहण करके पीछे उत्पन्न होता है। सर्व से समुद्घात करने पर पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण करता है। इसी प्रकार जैसे पृथ्वीकायिक का उपपात कहा उसी प्रकार वायुकाय का सर्व कल्पों और ईषयाग्भारा पृथ्वी पर्यन्त में उपपात आदि जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! जो वायुकायिक जीव सौधर्मकल्प में मरण समुद्घात से समवहत होकर इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवात-वलय और तनुवात-वलयों में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं तो भन्ते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे पुद्गल ग्रहण करता है या पहले पुद्गल ग्रहण कर पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार सौधर्मकल्प के वायुकायिक जीवों का उत्पाद सातों नरकपृथ्वियों में कहा उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी पर्यन्त के वायुकायिक जीवों का उत्पाद आदि अधःसप्तम पृथ्वी तक जानना चाहिए। ७३. एकत्व-बहुत्व की विवक्षा से चौबीस दण्डकों में अनन्त बार पूर्वोत्पन्नत्व का प्ररूपणप्र. दं.१. भन्ते ! क्या यह जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, नरक रूप में और नैरयिक रूप में पहले उत्पन्न हुआ है? उ. हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुका है। प्र. भन्ते ! क्या सभी जीव, इस रलप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, नरक रूप में और नैरयिक रूप में पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? उ. हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के दो आलापक कहे हैं, उसी प्रकार शर्कराप्रभापृथ्वी से धूमप्रभापृथ्वी पर्यन्त (एकत्व बहुत्व की अपेक्षा) दो आलापक कहने चाहिए। तमःप्रभापृथ्वी के पाँच कम एक लाख नरकावासों में भी इसी प्रकार आलापक कहने चाहिए। प्र. भन्ते ! यह जीव अधःसप्तमपृथ्वी के पाँच अनुत्तर और महातिमहान् महानरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में नरक रूप में और नैरयिक रूप में पहले उत्पन्न हुआ है? उ. हाँ, गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के समान यहाँ भी दो आलापक कहने चाहिए। प्र. दं.२-११.भन्ते ! क्या यह जीव असुरकुमारों के चौंसठ लाख असुरकुमारावासों में से प्रत्येक असुरकुमारावास में प. सव्वजीवा वि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नरगत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुव्वा? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो। एवं सक्करप्पभाए पुढवीए जहा रयणप्पभाए पुढवीए तहेव दो आलावगा भाणियव्या जाव धूमप्पभाए। तमाए पुढवीए पंचूणे निरयावाससयसहस्सेसु वि एवं चेव। प. अयं णं भंते ! जीवे अहेसत्तमाए पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु महइमहालएसु महानिरएसु एगमेगंसि निरयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नरगत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुवे? उ. गोयमा ! जहा रयणप्पभाए तहेव दो आलावगा भाणियव्वा। प. दं.२-११. अयं णं भंते ! जीवे चोसट्ठीए असुरकुमारा वाससयसहस्सेसु एगमेगंसि असुरकुमारावासंसि

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