Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 758
________________ वुक्कंति अध्ययन १४९७ प. जइ देवेहिंतो उववज्जति, किं भवणवासिदेवेहिंतो उववज्जति? वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति, वाणमंतरदेवेहितो वि उववज्जंति, एवं सव्वदेवेसु उववाएयव्वा वक्कंतीभेएणं जाव सव्वट्ठसिद्ध त्ति। -विया. स. १२, उ.९, सु.८ ६०. धम्मदेवाणं उववायंप. धम्मदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववजंति, किं नेरइएहिंतो जाव देवेहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं वक्कंतीभेएणं सव्वेसु उववाएयव्या जाव सव्वट्ठसिद्ध त्ति। णवर-तमा-अहेसत्तमा तेउ-वाउ-असंखेज्जवासाउयअकम्मभूमग-अंतरदीवगवज्जेसु। -विया. स. १२, उ.९,सु.९ ६१. देवाधिदेवाणं उववायंप. देवाधिदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! नेरइएहिंतो उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, नो मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, देवेहितो वि उववज्जति। प. जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति किं रयणप्पभा पुढविनेरइएहिंतो उववज्जति जाव अहेसत्तम पुढविनेरइएहिंतो उववजंति? उ. गोयमा ! आइल्ला तिसु पुढवीसु उववज्जंति, प्र. यदि वे देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम! भवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, वाणव्यन्तरदेवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त सभी देवों से आकर उत्पत्ति के विषय में व्युत्क्रान्ति-पद में कथित विशेषता के अनुसार कहना चाहिए। ६०. धर्मदेवों का उपपातप्र. भंते ! धर्मदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में से यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम! इनका उपपात व्युत्क्रान्ति-पद में कथित विशेषता के अनुसार सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-तमःप्रभा, अधःसप्तम पृथ्वी, तेजस्काय, वायुकाय असंख्यात वर्ष की आयु वाले अकर्मभूमिक तथा अन्तरद्वीपज जीवों से आकर धर्म देव उत्पन्न नहीं होते हैं। ६१. देवाधिदेवों का उपपातप्र. भंते ! देवाधिदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों में से यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे आदि की तीन नरकपृथ्वियों में से आकर उत्पन्न होते हैं। सेसाओ खोडेयव्वाओ। प. जइ देवेहिंतो उववज्जति, किं भवणवासिदेवेहिंतो उववज्जंति? वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! वेमाणिएसु सव्वेसु उववति जाव सव्वट्ठसिद्ध त्ति। सेसा खोडेयव्वा। -विया.स.१२,उ.९,सु.१० ६२. भावदेवाणं उववायंप. भावदेवा णं भंते !कओहिंतो उववज्जंति, किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? शेष चार (नरकपृथ्वियों) से (उत्पत्ति का) निषेध करना चाहिए। प्र. यदि वे देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वाणव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त समस्त वैमानिक देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं। शेष देवों से उत्पत्ति का निषेध करना चाहिए। ६२. भावदेवों का उपपातप्र. भंते ! भावदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! जैसे व्युत्क्रान्ति पद में भवनवासियों के उपपात का कथन किया है, उसी प्रकार यहाँ भी करना चाहिए। उ. गोयमा! एवं जहा वक्कंतिए भवणवासीणं उववाओ तहा भाणियव्यो। -विया. स. १२, उ.९,सु.११

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