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दुक्कंति अध्ययन
सव्वेसु वेमाणिएसु उववज्जति जाव सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइएसु उववज्जंति ।
अत्थेगइया सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति । - विया. स. १२, उ. ९, सु. २३
६६. देवाधिदेवाणं उव्वट्टणं
प. देवाधिदेवा णं भंते अनंतरं उव्वङ्गित्ता कहिं गच्छति, कहिं उववज्जति ?
उ. गोयमा ! सिज्झति जाव सव्यदुक्खाणं अंत करेंति ।
६७. भावदेवाणं उप
,
प. भावदेवा णं भते ! अनंतरं उब्वश्तिा कहिं गच्छति, कहिं उववज्जति ?
उ. गोयमा ! जहा वक्कंतीए असुरकुमाराणं उव्वट्टणा तहा भाणियव्वा । - विया. स. १२, उ. ९, सु. २५
विविहदेवलोगेसु
६८. असंजयभवियदव्यदेबाइणं
परूवणं
प. अह भंते !
- विया. स. १२, उ. ९, सु. २४
१. असंजयभवियदव्वदेवाणं,
२. अविराहियसंजमार्ण,
३. विराहियसंजमाणं,
४. अविराहियसंजमासंजमाणं,
५. विराहियसंजमासंजमार्ण,
६. असण्णीण,
७. ताबसाणं
८. कंदप्पियाणं,
९. चरगपरिव्वायगाणं,
१०. किचिसियाणं,
११. तेरिच्छियाण,
उप्पाय
१२. आजीवियाण,
१३. आभिओगियाणं,
१४. सलिंगीणं दंसणवावन्नगाणं,
एएसि णं देवलोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहिं उववाए पण्णत्ते ?
उ. गोयमा
१. असंजयभवियदव्वदेवाणं जहण्णेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं उवरिमगेविज्जएसु, २. अविराहियसंजमाणं जहणणेणं सोहम्मे कये, उक्कोसेणं सव्वट्ठसिद्धे विमाणे,
३. विराहियसंजमाणं जहण्णेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे,
४. अविराहियसंजमासंजमाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसे अच्चुए कप्पे,
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उनमें भी सर्वार्थसिद्ध- अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त सभी वैमानिक देवों में धर्मदेव उत्पन्न होते हैं।
कोई-कोई धर्म देव सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं।
६६. देवधिदेवों का उद्वर्त्तन
प्र. भंते! देवाधिदेव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
उ. गौतम ! वे सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं।
६७. भावदेवों का उद्वर्तन
प्र. भंते ! भावदेव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहां उत्पन्न
होते हैं?
उ. गौतम ! व्युत्क्रान्तिपद में जिस प्रकार असुरकुमारों की उद्ववर्तना कही उसी प्रकार यहाँ भावदेवों की भी कहनी चाहिए।
६८. असंयत भव्यद्रव्य देव आदिकों का विविध देवलोकों में
उत्पाद का प्ररूपण
प्र. भंते!
१. असंयत भव्यद्रव्यदेव,
२. अविराधित संयमी,
३. विराधित संयमी.
४. अविराधित संयमासंयमी (देशविरति )
५. विराधित संयमासंयमी,
६. असंज्ञी (अकाम निर्जरा वाले)
७. तापस,
८. कान्दर्पिक,
९. चरकपरिव्राजक,
१०. किल्बिधिक,
११. तिर्यञ्च,
१२. आजीविक
१३. आभियोगिक,
१४. श्रद्धा भ्रष्ट स्वलिंगी साधु ।
ये सब यदि देवलोक में उत्पन्न हों तो किसका कहाँ उपपात कहा गया है ?
उ. गौतम !
१. असंयत भव्यद्रव्यदेवों का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट उपरिम ग्रैवेयकों में,
२. अविराधित संयम वालों का जघन्य सौधर्मकल्प में, उत्कृष्ट सर्वार्थसिद्ध विमान में,
३. विराधित संयम वालों का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट सौधर्मकल्प में,
४. अविराधित संयमासंयम वालों का जघन्य सौधर्मकल्प में, उत्कृष्ट अच्युतकल्प में,