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वुक्कंति अध्ययन
१४८५ ] उ. गोयमा ! आओवक्कमेण वि उववज्जंति, परोवक्कमेण उ. गौतम ! वे आत्मोपक्रम से भी उत्पन्न होते हैं, परोपक्रम से भी वि उववज्जति, निरुवक्कमेण वि उववज्जति।
उत्पन्न होते हैं और निरुपक्रम से भी उत्पन्न होते हैं। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया।
दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। प. दं. १. नेरइयाणं भंते ! किं आओवक्कमेणं उव्वट्टति, प्र. दं. १. भन्ते! क्या नैरयिक आत्मोपक्रम से उद्वर्तन करते परोवक्कमेणं उव्वटंति, निरुवक्कमेणं उबट्टति?
(मरते) हैं, परोपक्रम से उद्वर्तन करते हैं या निरूपक्रम से
उद्वर्तन करते हैं? उ. गोयमा ! नो आओवक्कमेणं उव्वटंति, नो परोवक्कमेणं उ. गौतम ! वे आत्मोपक्रम से और परोपक्रम से उद्वर्तन नहीं उव्वटंति, निरुवक्कमेणं उव्वटंति।
करते हैं किन्तु निरुपक्रम से उद्वर्तन करते हैं। दं.२-११.एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा।
दं.२-११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त
कहना चाहिए। दं. १२-२१. पुढविकाइया जाव मणुस्सा तिसु उव्वटैति। दं.१२-२१. पृथ्वीकायिकों से लेकर मनुष्यों पर्यन्त (उपर्युक्त)
तीनों उपक्रमों से उद्वर्तन करते हैं। दं.२२-२४.सेसा जहा नेरइया,
'दं. २२-२४. शेष सब जीवों का उद्वर्तन नैरयिकों के समान
कहना चाहिए। णवरं-जोइसिया, वेमाणिया चयंति।
विशेष-ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों के लिए (उद्वर्तन के -विया. स.२०, उ. १०, सु.७-१२ बदले) च्यवन कहना चाहिए। ४१. चउवीसदंडएसु आइड्ढी अवेक्खया उववाय उव्वट्टण ४१. चौबीस दंडकों में आत्मऋद्धि की अपेक्षा उपपात-उद्वर्तन का परूवणं
प्ररूपणप. द. १. नेरइया णं भंते ! किं आइड्ढीए उववज्जंति, प्र. दं.१.भन्ते ! क्या नैरयिक जीव आत्मऋद्धि से उत्पन्न होते हैं परिड्डीए उववज्जति? ।
या पर-ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! आइड्ढीए उववजंति, नो परिड्ढीए उ. गौतम ! वे आत्मऋद्धि से उत्पन्न होते हैं, पर-ऋद्धि से उत्पन्न उववज्जंति।
नहीं होते हैं। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया।
द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। प. दं. १. नेरइया णं भंते ! किं आइड्ढीए उव्वटंति, प्र. दं.१.भन्ते ! क्या नैरयिक जीव आत्मऋद्धि से उद्वर्तन करते परिड्ढीए उव्वटंति?
___या पर-ऋद्धि से उद्वर्तन करते (मरते) है? उ. गोयमा ! आइड्ढीए उव्वटंति, नो परिड्ढीए उव्वट्टति। उ. गौतम ! वे आत्मऋद्धि से उद्वर्तन करते हैं, किन्तु पर-ऋद्धि
से उद्वर्तन नहीं करते हैं। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया,
दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। णवर-जोइसिय-वेमाणिया चयंतीति अभिलावो।
विशेष-ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए (उद्वर्तन के -विया. स.२०, उ. १0, सु.१३-१६
बदले) च्यवन कहना चाहिए। ४२. चउवीसदंडएसु आयकम्मावेक्खया उववाय उव्वट्टण ४२. चौबीस दण्डकों में आत्मकर्म की अपेक्षा उपपात्-उद्वर्तन का परूवणं
प्ररूपणप. दं. १. नेरइया णं भंते ! कि आयकम्मुणा उववज्जंति, प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिक जीव अपने कर्म से उत्पन्न होते हैं या परकम्मुणा उववज्जति?
परकर्म से उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! आयकम्मुणा उववज्जति, नो परकम्मुणा उ. गौतम ! वे अपने कर्म से उत्पन्न होते हैं, परकर्म से उत्पन्न नहीं उववज्जति।
होते हैं। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया।
दं.२-२४.इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त उपपात कहना चाहिए। दं.१-२४. एवं उव्वट्टणा दंडओ वि।
दं. १-२४. इसी प्रकार उद्वर्तना के लिए भी सभी दण्डक -विया. स. २०, उ. १०, सु. १७-१९
कहने चाहिए। ४३. चउवीसदंडएसु पओगावेक्खया उववाय-उवट्टण परूवणं- ४३. चौबीस दण्डकों में प्रयोग की अपेक्षा उपपात-उद्वर्तन का
प्ररूपणप. दं.१. नेरइया णं भंते ! किं आयप्पयोगेणं उववजंति, प्र. दं.१.भन्ते ! नैरयिक जीव आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं या परप्पयोगेणं उववज्जंति?
पर प्रयोग से उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! आयप्पयोगेणं उववज्जति, नो परप्पयोगेणं उ. गौतम ! वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से उत्पन्न उववज्जति।
नहीं होते हैं।