Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 753
________________ १४९२ २. जे णं पुढविकाइयाऽणेगेहिं बारसएहिं, अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा,तीहिं वा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं पुढविकाइया बारसएहिं य नो बारसएण य समज्जिया। से तेणतुणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पुढविकाइया नो बारस समज्जिया जाव बारसएण यनो बारसएण य समज्जिया वि" दं.१३-१६. एवं जाव वणस्सइकाइया। दं.१७-२४. बेइंदिया जाव वेमाणिया, सिद्धा जहा नेरइया। -विया. स. २०, उ. १0, सु. ४३-४७ ५१. बारस समज्जियाइ विसिट्ठ चउवीसदंडगाणं सिद्धाण य अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! नेरइयाणं बारस समज्जियाणं जाव बारसेहि य नो बारसएण य समज्जियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! सव्येहि अप्पबहुगंजहा छक्कसमज्जियाणं, णवरं-बारसाभिलावो, द्रव्यानुयोग-(२) २. जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक द्वादश तथा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट ग्यारह प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे पृथ्वीकायिक और एक द्वादश अनेक द्वादश-समर्जित हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"पृथ्वीकायिक द्वादश-समर्जित नहीं है यावत् अनेक द्वादश नो द्वादश-समर्जित भी हैं।" दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त आलापक कहना चाहिए। दं. १७-२४. द्वीन्द्रिय जीवों से वैमानिकों पर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए। सिद्धों का कथन नैरयिकों के समान समझना चाहिए। ५१. द्वादश समर्जितादि विशिष्ट चौबीस दंडकों का और सिद्धों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन द्वादश-समर्जित यावत् अनेक-द्वादश-समर्जित और एक द्वादश-समर्जित नैरयिकों में कौन, किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार षट्क-समर्जित आदि जीवों का अल्पबहुत्व कहा, उसी प्रकार द्वादश-समर्जित आदि सभी जीवों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। विशेष-"षट्क" के स्थान में "द्वादश", ऐसा अभिलाप करना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है। ५२. चौबीस दंडक और सिद्धों में चतुरशीति समर्जितादि का प्ररूपणप्र. दं. १. भंते ! क्या नैरयिक जीव १. चतुरशीति (चौरासी) समर्जित हैं, २. नो चतुरशीति-समर्जित हैं ३. चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित हैं, ४. अनेक चतुरशीति-समर्जित हैं, ५.अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित हैं? उ. गौतम ! नैरयिक चतुरशीति-समर्जित भी हैं यावत् अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित भी हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक जीव चतुरशीति समर्जित भी है यावत् अनेक चतुरशीति-नो-चतुरशीति समर्जित भी हैं ?" उ. गौतम ! १. जो नैरयिक (एक समय में एक साथ) चौरासी (८४) प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक चतुरशीति-समर्जित हैं। २. जो नैरयिक जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट (एक साथ) तिरासी (८३) प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक नो चतुरशीति-समर्जित हैं। ३. जो नैरयिक एक साथ, एक समय में चौरासी तथा अन्य जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट तिरासी (एक साथ) प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं वे नैरयिक चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित हैं। सेसंतंचेव। -विया. स.२०, उ.१०,सु.४८ ५२. चउवीसदंडएसु सिद्धेसुयचुलसीइसमज्जियाइ परूवणं प. दं.१.नेरइया णं भंते ! किं १.चुलसीइसमज्जिया,२.नो चुलसीइसमज्जिया, ३. चुलसीईए य नो चुलसीईए य समज्जिया, ४. चुलसीईहिं समज्जिया, ५.चुलसीइहि य नो चुलसीईए य समज्जिया? उ. गोयमा ! नेरइया चुलसीइसमज्जिया वि जाव चुलसीईहिं यनो चुलसीईए य समज्जिया वि। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइया चुलसीइसमज्जिया वि जाव चुलसीईहिं य नो चुलसीईए समज्जिया वि? उ. गोयमा ! १. जे णं नेरइया चुलसीईएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया चुलसीइसम्मज्जिया। च २. जेणं नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं तेसीइ पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया नो चुलसीइसमज्जिया। ३. जे णं नेरइया चुलसीईएणं अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं तेसीईएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया चुलसीईए य नो चुलसीईए य समज्जिया।

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