Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 751
________________ ( १४९० । दं.१३-१६.एवं जाव वणस्सइकाइया, दं.१७-२४. बेइंदिया जाव वेमाणिया। सिद्धा जहा नेरइया। -विया. स.२०, उ.१०, सु.३२-३६ ४९. छक्क समज्जियाइ विसिट्ठ चउवीस दंडगाणं सिद्धाण य अप्पबहुत्तंप. दं.१. एएसि णं भंते ! नेरइयाणं १. छक्कसमज्जियाणं, २. नो छक्कसमज्जियाणं, ३.छक्केण य नो छक्केण य समज्जियाणं, ४.छक्केहिं समज्जियाणं, ५. छक्केहि य नो छक्केण य समज्जियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा नेरइया छक्कसमज्जिया, २. नो छक्कसमज्जिया संखेज्जगुणा, ३. छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया संखेज्जगुणा, द्रव्यानुयोग-(२) दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त समझना चाहिए। द. १७-२४. इसी प्रकार द्वीन्द्रिय से वैमानिकों पर्यन्त पूर्ववत् कहना चाहिए। सिद्धों का कथन नैरयिकों के समान है। ४९. षट्क समर्जितादि विशिष्ट चौबीस दण्डकों और सिद्धों में अल्पबहुत्वप्र. दं.१. भन्ते ! इन १. षट्कसमर्जित, २. नो षट्क-समर्जित, ३. एक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित, ४. अनेक षट्कसमर्जित तथा ५. अनेक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित नैरयिकों में कौन किन से अल्प यावत विशेषाधिक हैं? ४. छक्केहि समज्जिया असंखेज्जगुणा, ५. छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया संखेज्जगुणा। दं.२-११.एवं असुरकुमाराजाव थणियकुमारा। प. दं. १२. एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं छक्केहिं समज्जियाणं, छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा पुढविकाइया छक्केहिं समज्जिया, २. छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया संखेज्जगुणा। उ. गौतम ! १. सबसे कम एक षट्क-समर्जित नैरयिक है, २. (उनसे) नो षट्क-समर्जित नैरयिक संख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) एक षट्क और नो षट्क-समर्जित नैरयिक संख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे)अनेक षट्क-समर्जित नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, ५. (उनसे) अनेक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित नैरयिक संख्यातगुणे हैं। दं.२-११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त अल्पबहुत्व कहना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! इन अनेक षट्क-समर्जित और अनेक षट्क तथा नो षट्क-समर्जित पृथ्वीकायिकों में कौन-किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प अनेक षट्क-समर्जित पृथ्वी कायिक हैं, २. (उनसे) अनेक षट्क और नो षट्क-समर्जित पृथ्वीकायिक संख्यातगुणे हैं। दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त जानना चाहिए। दं. १७-२४. द्वीन्द्रियों से वैमानिकों पर्यन्त का अल्पबहुत्व नैरयिकों के समान जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! इन षट्क-समर्जित, नो षट्क समर्जित यावत् अनेक षट्क और एक नो षट्क-समर्जित सिद्धों में कौन-किन से अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? दं.१३-१६.एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। दं. १७-२४.बेइंदियाणंजाव वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं। प. एएसि णं भंते ! सिद्धाणं छक्कसमज्जियाणं, नो छक्कसम्मज्जियाणं जाव छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा सिद्धा छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया, २. छक्केहिं समज्जिया संखेज्जगुणा, ३. छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया संखेज्जगुणा, उ. गौतम !१. अनेक षट्क और नो षट्क समर्जित सिद्ध सबसे थोड़े हैं। २. (उनसे) अनेक-षट्क-समर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। ३. (उनसे) एक षट्क और नो षट्क-समर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। ४. (उनसे) षट्क-समर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। ५. (उनसे) नो षट्क-समर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। ४. छक्कसमज्जिया संखेज्जगुणा, ५. नो छक्कसमज्जिया संखेज्जगुणा। -विया.स.२०, उ.१०,सु.३७-४२

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