Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 752
________________ वुक्कंति अध्ययन ५०. चउवीसदंडएसु सिद्धेसुय बारस समज्जियाइ परूवणं १४९१ ५०. चौबीस दण्डक और सिद्धों में द्वादश समर्जितादि का प्ररूपणप्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिक जीव क्या द्वादश-समर्जित हैं, नो द्वादश-समर्जित हैं, अथवा द्वादश नो द्वादश-समर्जित हैं, अनेक द्वादश-समर्जित हैं, या अनेक द्वादश और एक नो द्वादश-समर्जित हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक द्वादश-समर्जित भी हैं यावत् अनेक द्वादश और एक नो द्वादश-समर्जित भी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक द्वादश-समर्जित भी है यावत् अनेक द्वादश और एक नो द्वादश-समर्जित भी है?" उ. गौतम ! १. जो नैरयिक (एक समय में एक साथ) बारह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक द्वादश-समर्जित हैं। २. जो नैरयिक जघन्य एक, दो या तीन और प. दं.१. नेरइया णं भंते ! किं बारस समज्जिया, नो बारस समज्जिया बारसएण य नो बारसएण य समज्जिया, बारसएहिं समज्जिया, बारसएहिं य नो बारसएण य समज्जिया? उ. गोयमा ! नेरइया बारस समज्जिया वि जाव बारसएहि य नो बारसएण यसमज्जिया वि। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइया बारस समज्जिया जाव बारसएहिं य नो बारसएण य समज्जिया?" उ. गोयमा !१.जे णं नेरइया बारसएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं नेरइया बारस समज्जिया। २. जे णं नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति, ते णं नेरइया नो बारस समज्जिया। ३. जे णं नेरइया बारसएणं अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसएण य नो बारसएण य समज्जिया। ४. जे णं नेरइयाऽणेगेहिं बारसएहिं पवेसणगं पविसंति तेणं नेरइया बारसएहिं समज्जिया। ५. जेणं नेरइयाऽणेगेहिं बारसएहिं, अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसएहिं य नो बारसएण य समज्जिया। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइया बारस समज्जिया वि जाव बारसएहि य नो बारसएण य समज्जिया वि।" दं.२-११.एवं असुरकुमाराजाव थणियकुमारा। उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक नो द्वादशसमर्जित हैं। ३. जो नैरयिक एक समय में बारह तथा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक द्वादश नो द्वादश-समर्जित हैं। ४. जो नैरयिक एक समय में अनेक बारह-बारह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक अनेक द्वादश-समर्जित हैं। ५. जो नैरयिक एक समय में अनेक बारह-बारह की संख्या में तथा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक अनेक द्वादश और एक नो द्वादश-समर्जित हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक द्वादश-समर्जित भी हैं यावत् अनेक द्वादश और एक नो द्वादश-समर्जित भी हैं। दं. २-११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक क्या द्वादश-समर्जित हैं यावत् अनेक द्वादश और नो द्वादश समर्जित हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक न द्वादश-समर्जित है, न नो द्वादश समर्जित है और न द्वादश-समर्जित नो द्वादश-समर्जित है, किन्तु अनेक द्वादश-समर्जित हैं और अनेक द्वादश और एक नो द्वादश-समर्जित हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि__ “पृथ्वीकायिक द्वादश-समर्जित नहीं हैं यावत् अनेक द्वादश नो द्वादश-समर्जित हैं?" उ. गौतम ! १.जो पृथ्वीकायिक जीव (एक समय में एक साथ) अनेक द्वादश-द्वादश की संख्या में प्रवेश करते हैं वे अनेक द्वादश-समर्जित हैं। प. द.१२. पुढविकाइया णं भंते ! किं बारस समज्जिया जाव बारसएहि य नो बारसएण य समज्जिया? उ. गोयमा ! पुढविकाइया नो बारस समज्जिया, नो बारस समज्जिया, नो बारसएण य नो बारसएण य समज्जिया, बारसएहिं समज्जिया वि, बारसएहि य नो बारसएण य समज्जिया वि। प. सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "पुढविकाइया नो बारस समज्जिया जाव बारसएण य नो बारसएण य समज्जिया वि?" उ. गोयमा ! १. जे णं पुढविकाइयाऽणेगेहिं बारसएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं पुढविकाइया बारसएहिं समज्जिया।

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