________________
( १४८६ ।
दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया। दं.१-२४. एवं उव्वट्टणा दण्डओ वि।
-विया. स. २०, उ.१०, सु. २०-२२ ४४. उदायी भूयाणंद हत्थीरायाणं उव्वट्टणाइ परूवणं
प. उदायी णं भंते ! हत्थिराया कओहिन्तो अणंतरं
उव्वट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववण्णे? उ. गोयमा ! असुरकुमारेहिंतो देवेहिंतो अणंतर उव्वट्टित्ता
उदायि हत्थिरायत्ताए उववण्णे। प. उदायी णं भंते ! हत्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं
गच्छिहिइ,कहिं उववज्जिहिइ? उ. गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए
उक्कोससागरोवमट्ठिईयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए
उववज्जिहिइ। प. से णं भंते ! कओहिन्तो अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं
गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ? उ. गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव
सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।। प. भूयाणंदे णं भंते ! हत्थिराया कओहिन्तो अणंतरं
उव्वट्टित्ता भूयाणंदे हत्थिरायत्ताए उववण्णे? उ. गोयमा ! एवं जहेव उदायी जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
-विया. स. १७, उ.१, सु.४-७
द्रव्यानुयोग-(२) ) दं.२-२४.इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त उपपात कहना चाहिए। दं.१-२४. इसी प्रकार उद्वर्तना के लिए भी सभी दण्डक
कहने चाहिए। ४४. हस्तिराज उदायी और भूतानन्द के उत्पाद-उद्वर्तन का
प्ररूपणप्र. भन्ते ! उदायी हस्तिराज, किस गति से निकल कर सीधा
उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ? उ. गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मर कर सीधा यहाँ उदायी
हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है। प्र. भन्ते ! उदायी हस्तिराज कालमास में काल करके कहाँ
जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा? उ. गौतम ! वह यहाँ से काल करके एक सागरोपम की उत्कृष्ट
स्थिति वाले इस रलप्रभा पृथ्वी के नरकावास में नैरयिक रूप
में उत्पन्न होगा। प्र. भन्ते ! वह बिना किसी अन्तर के (इस रत्नप्रभा पृथ्वी) से
निकल कर कहां जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा? उ. गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा
यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। प्र. भन्ते ! भूतानन्द हस्तिराज किस गति से निकलकर भूतानन्द
हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है ? उ. गौतम ! उदायी हस्तिराज के वर्णन के समान भूतानन्द
हस्तिराज के लिए भी सब दुःखों का अन्त करेगा पर्यन्त कथन
करना चाहिए। ४५. चौबीस दण्डकों में भव्य द्रव्य नैरयिकत्वादि का प्ररूपणप्र. दं. १. भन्ते ! क्या भव्य द्रव्य-(भावि) नैरयिक-भव्य-द्रव्य
नैरयिक है? उ. हाँ, गौतम ! है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___"भव्य-द्रव्य-नैरयिक-भव्य-द्रव्य-नैरयिक है?" उ. गौतम ! जो कोई पंचेंन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक या मनुष्य, (भविष्य
में) नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य-द्रव्य नैरयिक है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"भव्य द्रव्य नैरयिक-भव्य द्रव्य नैरयिक है।"
दं. २-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! क्या भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक भव्य द्रव्य
पृथ्वीकायिक है? उ. हाँ, गौतम ! वह ऐसा ही है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___ "भव्यद्रव्य-पृथ्वीकायिक-भव्यद्रव्य पृथ्वीकायिक है?" उ. गौतम ! जो तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य या देव पृथ्वीकायिकों में '
उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"भव्य द्रव्य पृथ्वीकायिक-भव्य द्रव्य पृथ्वीकायिक है।"
४५. चउवीसदण्डएसु भवियदव्व नेरइयाइत्त परूवणं
प. दं.१.अस्थि णं भंते ! भवियदव्वनेरइया?
उ. हता, गोयमा ! अत्थि। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"भवियदव्वनेरइया, भवियदव्वनेरइया?" उ. गोयमा ! जे भविए पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिए वा, मणुस्से
वा नेरइएसु उववज्जित्तए।
से तेणढेणं गोयमा !एवं वुच्चइ"भवियदव्वनेरइया, भवियदव्वनेरइया।"
दं.२-११.एवं जाव थणियकुमाराणं। प. दं. १२. अत्थि णं भंते ! भवियदव्वपुढविकाइया,
भवियदव्यपुढविकाइया? उ. हता, गोयमा ! अत्थि। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"भवियदव्वपुढविकाइया, भवियदव्यपुढविकाइया?" उ. गोयमा ! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा, मणुस्से वा, देवे
वा पुढविकाइएसु उववज्जित्तए। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"भवियदव्वपुढविकाइया, भवियदव्यपुढविकाइया।"