Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 731
________________ १४७० तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, मणुस्सेसु उववज्जंति, नो देवेसु उववज्जति। तं चेव जाव असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववति। -जीवा. पडि.१, सु. १५ सुहुम आउकाइया जहेव सुहुम पुढविकाइया। -जीवा. पडि.१, सु.१६ दं. १३-१९. एवं आउ, वणस्सइ, बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिंदिया वि। एवं तेऊ, वाऊ वि। णवरं-मणुस्सवज्जेसु उववज्जति। प. दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववज्जंति? उ. गोयमा ! नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जति। प. जइणेरइएसु उववति , किं रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएसु उववज्जति? उ. गोयमा ! रयणप्पभापुढविनेरइएसु वि उववज्जंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएसु वि उववज्जति? प. जइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, किं एगिदिएसु जाव पंचेंदिएसु उववज्जति? उ. गोयमा ! एगिदिएसु वि उववज्जति जाव पंचेंदिएसु वि उववज्जति। एवं जहा एएसिं चेव उववाओ उव्वट्टणा वि तहेव भाणियव्या। णवरं-असंखेज्जवासाउएसु वि एए उववजंति। प. जइ मणुस्सेसु उववजंति, किं सम्मुच्छिम-मणुस्सेसु उववज्जंति? गब्भवक्कंतिय-मणुस्सेसु उववज्जति? उ. गोयमा ! दोसु वि उववज्जति। एवं जहा उववाओ तहेव उव्वट्टणा विभाणियव्या। द्रव्यानुयोग-(२) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं। सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान असंख्यात वर्षायुष्कों को छोड़कर तिर्यञ्चों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। सूक्ष्म अकायिकों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान जानना चाहिए। दं. १३-१९. इसी प्रकार अप्कायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों की भी उद्वर्तना कहनी चाहिए। इसी प्रकार तेजस्कायिक और वायुकायिक की भी उद्वर्तना कहनी चाहिए। विशेष-(वे) मनुष्यों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं। प्र. दं. २०. भंते ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक अनन्तर उद्वर्तना करके कहां जाते हैं, कहां उत्पन्न होते हैं? क्या (वे) नरैयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! (वे) नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे रलप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम !(वे) एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार जैसे इनका उपपात कहा है उसी प्रकार इनकी उद्वर्तना भी कहनी चाहिए। विशेष-ये असंख्यातवर्षों की आयु वालों में भी उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो क्या, सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, या गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! (वे) दोनों में ही उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार जैसे इनका उपपात कहा, वैसे ही इनकी उद्वर्तना भी कहनी चाहिए। विशेष-अकर्मभूमिज, अन्तर्वीपज और असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं यह कहना चाहिए। प्र. यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या, भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं यावत् वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) सभी देवों में उत्पन्न होते हैं। णवर-अकम्मभूमग-अंतरदीवग-असंखेज्जवासाउएसु वि एए उववज्जति त्ति भाणियव्यं। प. जइ देवेसु उववज्जंति, किं भवणवइसु उववजंति जाव वेमाणिएसु उववज्जति? उ. गोयमा ! सव्वेसु चेव उववति ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806