Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 735
________________ १४७४ १३. ता अणुपुव्वमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववजंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१४. ता अणुपुव्वसयमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववजंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१५. ता अणुपुव्वसहस्समेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१६. ता अणुपुव्वसयसहस्समेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति,एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१७. ता अणुपलिओवमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति,एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१८. ता अणुपलिओवमसयमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति,अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१९. ता अणुपलिओवमसहस्समेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति,अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु२०. ता अणुपलिओवमसयसहस्समेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु२१. ता अणुसागरोवमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु२२. ता अणुसागरोवमसयमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु२३. ता अणुसागरोवमसहस्समेव चंदिम-सरिया अण्णे चयंति,अण्णे उववति , एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु२४. ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु२५. ता अणुओसप्पिणी, उस्सप्पिणीमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति,एगे एवमाहंसु, वयं पुण एवं वयामोता चंदिम-सूरियाणं देवा महिड्ढिया, महज्जुईया, महब्बला, महायसा, महासोक्खा महाणुभावा। द्रव्यानुयोग-(२) १३. चंद्र और सूर्य प्रत्येक पूर्व में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१४. चंद्र और सूर्य प्रत्येक सौ पूर्व में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१५. चंद्र और सूर्य प्रत्येक हजार पूर्व में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१६. चंद्र और सूर्य प्रत्येक लाख पूर्व में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१७. चंद्र और सूर्य प्रत्येक पल्योपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१८.चंद्र और सूर्य प्रत्येक सौ पल्योपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१९. चंद्र और सूर्य प्रत्येक हजार पल्योपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं२०. चंद्र और सूर्य प्रत्येक लाख पल्योपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं२१. चंद्र और सूर्य प्रत्येक सागरोपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं२२.चंद्र और सूर्य प्रत्येक सौ सागरोपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं२३. चंद्र और सूर्य प्रत्येक हजार सागरोपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं२४. चंद्र और सूर्य प्रत्येक लाख सागरोपम में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं२५. चंद्र और सूर्य प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। हम फिर इस प्रकार कहते हैंवे चंद्र और सूर्य देव महर्धिक हैं, महान् द्युति वाले हैं, महान् बल वाले हैं, महान् यश वाले हैं, महान् सुख वाले हैं और महाप्रभावशाली हैं। श्रेष्ठ वस्त्र धारण करने वाले, श्रेष्ठ मालाएँ धारण करने वाले, श्रेष्ठ गंध धारण करने वाले, श्रेष्ठ आभरण धारण करने वाले हैं। वरवत्थधरा, वरमल्लधरा, वरगंधधरा, वराभरणधरी,

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