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वुक्कंति अध्ययन
दं.१२-१६. एगिंदिया एवं चेव।
णवरं-चउसमइओ विग्गहो। सेसं तं चेव।
__-विया. स. २५, उ.८,सु.२-१० २१. भवसिद्धिय-अभवसिद्धिय चउवीसदंडएम उप्पायाइ परूवणं-
भवसिद्धिय नेरइया जाव वेमाणिया एवं चेव।
-विया. स. २५, उ. ९, सु.१ अभवसिद्धिय नेरइया जाव वेमाणिया एवं चेव।
-विया. स. २५, उ. १०, सु.१ २२. सम्मदिट्ठि-मिच्छदिट्ठि चउवीसदंडएसु उप्पायाइ परूवणं-
सम्मदिट्ठि नेरइया जाव वेमाणिया एवं चेव।
णवरं-एगिंदियवज्जं भाणियव्वं ।
-विया.स.२५, उ.११, सु.१-२ मिच्छदिदट्ठि नेरइया जाव वेमाणिया एवं चेव।
-विया. स. २५, उ. १२, सु.१ २३. चउबीसदंडएसु एगसमए उव्वट्टमाणाणं संखा
- १४६५) दं. १२-१६. एकेन्द्रियों के विषय में भी उसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष-विग्रहगति उत्कृष्ट चार समय की होती है, शेष
पूर्ववत् है। २१. भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक चौबीस दंडकों में उत्पातादि का .
प्ररूपणभवसिद्धिक नैरयिकों में से वैमानिकों पर्यन्त उत्पत्ति आदि का कथन पूर्ववत् है। अभवसिद्धिक नैरयिकों में से वैमानिकों पर्यन्त उत्पत्ति आदि का
कथन पूर्ववत् है। २२. सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि चौवीस दंडकों में उत्पातादि का
प्ररूपणसम्यग्दृष्टि नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त उत्पत्ति आदि का कथन पूर्ववत् है।
विशेष-एकेन्द्रियों को छोड़कर कहना चाहिए। .
मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त उत्पत्ति आदि का कथन
पूर्ववत् है। २३. चौबीस दंडकों में एक समय में उवर्तित होने वालों की
संख्याप्र. दं.१. भंते ! नैरयिक एक समय में कितने उद्वर्तित होते हैं ? उ. गौतम !(वे) जघन्य एक, दो या तीन,
उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उद्वर्तित होते (मरते) हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार जैसे उपपात के विषय में कहा उसी प्रकार सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त उद्वर्तना के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए (उद्वर्तना के
स्थान पर) “च्यवन" शब्द का प्रयोग कहना चाहिए। २४. चौबीस दंडकों में सान्तर निरन्तर उद्वर्तन का प्ररूपण
प्र. दं. १. भंते ! नैरयिक क्या सान्तर उद्वर्तन करते हैं या
निरन्तर उद्वर्तन करते हैं? उ. गौतम ! वे सान्तर भी उद्वर्तन करते हैं और निरन्तर भी उद्वर्तन करते हैं। दं. २-२४. जैसे उपपात के विषय में कहा वैसे ही सिद्धों को छोड़कर वैमानिकों पर्यन्त उद्वर्तना के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-ज्योतिष्कों और वैमानिकों के लिए (उद्वर्तना के
स्थान पर) “च्यवन" शब्द का प्रयोग करना चाहिए। २५. चौबीस दंडकों में उद्वर्तन के विरह काल का प्ररूपणप्र. दं. १. भंते ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक
उद्वर्तना से विरहित कहे गए हैं?
प. दं.१. नेरइया णं भन्ते ! एगसमएणं केवइया उव्वट्टति? उ. गोयमा !जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा,
उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उव्वटंति। दं. २-२४. एवं जहा उववाओ भणिओ तहा उव्वट्टणा वि सिद्धवज्जा भाणियव्वा जाव अणुत्तरोववाइया।
णवर-जोइसिय-वेमाणियाणं चयणेणं अभिलावो कायव्यो।
-पण्ण. प.६, सु. ६३७-६३९ २४. चउवीसदंडएसुसंतरं-निरंतरं उव्वट्टण परूवणंप. दं. १. नेरइया णं भन्ते ! किं संतरं उव्वटंति, निरंतर
उव्वटंति? उ. गोयमा ! संतरं पि उव्वटंति, निरंतरं पि उव्वट्टति।
दं. २-२४. एवं जहा उववाओ भणिओ तहा उबट्टणा वि सिद्धवज्जा भाणियव्वा जाव वेमाणिया।
णवरं-जोइसिय-वेमाणिएसु “चयणं" ति अभिलावो कायव्यो।'
-पण्ण.प.६,सु.६२४-६२५ २५. चउवीसदंडएसु उव्वट्टण विरह काल परूवणंप. द. १. रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भन्ते ! केवइयं कालं
विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता?
१. (क) विया. स.९,उ.३२, सु.७-१३
(ख) विया. स.९, उ.३२, सु.४८
(ग) विया.स.१३,उ.६,सु.४