________________
१४२३
देव गति अध्ययन उ. गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं इमीसे
रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाणे णामं कप्पे पण्णत्ते।
तत्थ णं जाव पंच वडेंसया पण्णत्ता,तं जहा१. अंकवडेंसए, २. फलिहवडेंसए, . ३. रयणवडेंसए, ४. जायरूववडेंसए, ५. मज्झेयऽत्थईसाणवडेंसए। तस्स णं ईसाणवडेंसयस्स महाविमाणस्स पुरथिमेण तिरियमसंखेज्जाई जोयणसहस्साई वीईवइत्ता तत्थ णं ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स लोगपालस्स सुमणे णामं महाविमाणे पण्णत्ते। सेसं जहा सक्कस्स वत्तव्यया। चउसु विमाणेसु चत्तारि उदेसा अपरिसेसा।
उ. गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मंदर पर्वत से उत्तर में इस
रलप्रभा पृथ्वी के समतल से ऊपर यावत् ईशान नामक कल्प (देवलोक) कहा गया है। उस कल्प में पाँच अवतंसक कहे गए हैं, यथा१. अंकावतंसक, २. स्फटिकावतंसक, ३. रत्नावतंसक, ४. जातरूपावतंसक,
और इन चारों के मध्य में ५.ईशानावतंसक विमान है। इस ईशानावतंसक महाविमान से पूर्व में तिरछे असंख्यात हजार योजन आगे जाने पर देवेन्द्र देवराज ईशान के सोम नामक लोकपाल का सुमन नामक महाविमान कहा गया है।
णवरं-ठिईए नाणत्तंआदि दुय तिभागूणा पलिया धणयस्स होंति दो चेव।
दो सइ भागा वरुणे पलियमहावच्चदेवाणं॥
-विया.स.४,उ.१-४,सु.५
शेष सारा कथन शक्र के समान कहना चाहिए। चारों लोकपालों के विमानों के चार उद्देशक पूर्ण समझने चाहिए। विशेष-इनकी स्थिति में अन्तर है, यथा
आदि के दो-सोम और यम लोकपाल की स्थिति (आयु) त्रिभागन्यून दो-दो पल्योपम की है। वैश्रमण की स्थिति दो पल्योपम की है और वरुण की स्थिति त्रिभागसहित दो पल्योपम की है, अपत्यरूप देवों की स्थिति एक पल्योपम की है। चारों लोकपालों की राजधानियों के चार उदेशक भी शक्रेन्द्र
के वर्णन के समान कहने चाहिये। ४९. शक्र आदि बारह देवेन्द्रों की सेनाओं और सेनापतियों के
रायहाणीसु वि चत्तारि उद्देसा जहा सक्कस्स तहा भाणियव्वा।
-विया. स. ४, उ. ५-८, सु. १ ४९. सक्काइ बारस देविंदाणं अणिया अणियाहिवई णामाणि
नाम
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया सत्त अणियाहिवई पण्णत्ता,तं जहा१. पायत्ताणिए, २. पीढाणिए, ३. कुंजराणिए, ४. उसभाणिए, ५. रहाणिए,
६. णट्टाणिए, ७. गंधव्वाणिए। अणियाहिवई१. हरिणेगमेसी-पायत्ताणियाहिवई, २. वाऊ आसराया-पीढाणियाहिवई, ३. एरावणे हत्थिराया-कुंजराणियाहिवइ, ४. दामड्ढी-उसभाणियाहिवई, ५. माढरे-रहाणियाहिवई, ६. सेए-णट्टाणियाहिवई, ७. तुंबरू-गंधव्वाणियाहिवई। ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया सत्त अणियाहिवई पण्णत्ता,तं जहा१. पायत्ताणिए, २. पीढाणिए, ३. कुंजराणिए, ४. उसभाणिए, ५. रहाणिए,
६. णट्टाणिए, ७. गंधव्वाणिए।
देवेन्द्र देवराज शक्र की सात सेनाएं और सात सेनापति कहे गए हैं, यथा१. पदातिसेना,
२. अश्वसेना, ३. हस्तिसेना,
४. वृषभसेना, ५. रथसेना,
६. नाट्यसेना, ७. गंधर्वसेना, सेनापति१. हरिणैगमेषी-पदातिसेना का अधिपति, २. अश्वराज वायु-अश्वसेना का अधिपति, ३. हस्तिराज ऐरावण-हस्तिसेना का अधिपति, ४. दामर्धि-वृषभ सेना का अधिपति, ५. माठर-रथसेना का अधिपति, ६. श्वेत-नर्तक सेना का अधिपति, ७. तुम्बरू-गन्धर्व सेना का अधिपति, देवेन्द्र देवराज ईशान की सात सेनाएं और सात सेनापति कहे गए हैं, यथा१. पदाति सेना, २. अश्वसेना, ३. हस्तिसेना,
४. वृषभ सेना, ५. रथसेना,
६. नाट्यसेना, ७. गंधर्व सेना।