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एवं जहा ओहिया उववाइया तहा रयणप्पभाएपुढविनेरइया वि उववाएयव्या।
प. सक्करप्पभाएपुढविनरेइयाणं भंते!कओहितोउववज्जति,
किं नेरइएहितो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
उ. गोयमा ! एए वि जहा ओहिया तहेवोववाएयव्वा।
णवरं-सम्मुच्छिमेहितो पडिसेहो कायव्यो।
प. वालुयप्पभाए पुढविनेरइया णं भंते ! कओहिंतो
उववज्जति, किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
उ. गोयमा ! जहा सक्करप्पभाएपुढविनेरइया।
णवर-भुयपरिसप्पेहितो वि पडिसेहो कायव्यो।
प. पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति?
द्रव्यानुयोग-(२) इसी प्रकार जैसे औधिक (सामान्य) नारकों के उपपात (उत्पत्ति) के विषय में कहा गया है, वैसे ही रत्नप्रभापृथ्वी के
नैरयिकों के उपपात के विषय में भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न
होते हैं ? क्या नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से
आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इनका उपपात भी औधिक (सामान्य) नैरयिकों के
समान ही समझना चाहिए। विशेष-सम्मूर्छिम में से (इनकी उत्पत्ति का) निषेध करना
चाहिए। प्र. भंते ! वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न
होते हैं? क्या वे नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देघों में से
आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! जैसे शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के
विषय में कहा, वैसे ही इनकी उत्पत्ति के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-भुजपरिसर्प से (इनकी उत्पत्ति का) निषेध करना
चाहिए। प्र. भंते ! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न
होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से
आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! जैसे वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के
विषय में कहा, वैसे ही इनकी उत्पत्ति के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-खेचरों में से (इनकी उत्पत्ति का) निषेध करना
चाहिए। प्र. भंते ! धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न
होते हैं? क्या वे नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से
आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! जैसे पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के विषय
में कहा उसी प्रकार इनकी उत्पत्ति के विषय में भीकहना चाहिए। विशेष-चतुष्पदों में से भी इनकी उत्पत्ति का निषेध करना
चाहिए। प्र. भंते ! तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न
होते हैं? उ. गौतम ! जैसे धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के विषय
में कहा वैसे ही इस पृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के विषय म समझना चाहिए। विशेष-स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से इनकी उत्पत्ति का निषेध करना चाहिए। इस (पूर्वोक्त) अभिलाप के अनुसार
किनेरइएहिंतो उववजंति जाव देवेहिंतो उववज्जति?
उ. गोयमा ! जहा वालुयप्पभापुढविनेरइया।
___णवरं-खहयरेहिंतो विपडिसेहो कायव्यो।
प. धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति?
किनेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति?
उ. गोयमा !जहा पंकप्पभापुढविनेरइया।
णवरं-चउप्पएहितो विपडिसेहो कायव्वो।
प. तमापुढविनेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति?
उ. गोयमा !जहा धूमप्पभापुढविनेरइया।
णवर-थलयरेहितो वि पडिसेहो कायव्वो।
इमेणं अभिलावेणं।