Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 708
________________ वुक्कंति अध्ययन १४४७ प. जइ पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, किं जलयर-पंचेंदियएहिंतो उववज्जति? थलयर-पंचेंदियएहिंतो उववज्जति? खहयर-पंचेंदियएहिंतो उववति ? उ. गोयमा ! जलयर-पंचेंदियएहिंतो उववज्जति, नो थलयरेहिंतो उववजंति, नो खहयरेहिंतो उववज्जति। प. जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति, किं कम्मभूमएहिंतो उववज्जंति, अकम्मभूमएहिंतो उववज्जति, अंतरदीवएहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! कम्मभूमएहिंतो उववति, नो अकम्मभूमएहिंतो उववज्जंति, नो अंतरदीवएहिंतो उववज्जति। प. जइ कम्मभूमएहिंतो उववज्जंति, किं संखेज्जवासाउएहिंतो उववजंति, असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउएहिंतो उववति। नो असंखेज्जवासाउएहिंतो उववजंति। प. जइ संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जंति, प्र. यदि वे (तमः:प्रभापृथ्वी-नारक) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं? स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं, खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से आकर भी उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि (वे) मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या कर्मभूमिज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अकर्मभूमिज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अन्तीपज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! (वे) कर्मभूमिज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अकर्मभूमिज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, अन्तर्वीपज मनुष्यों में से आकर भी उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि कर्मभूमिज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या-संख्यातवर्षायुष्कों में से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंख्यातवर्षायुष्कों में से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) संख्यातवर्षायुष्कों में से आकर उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) असंख्यातवर्षायुष्कों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि (तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक) संख्यातवर्षायुष्कों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, या अपर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, प्र. यदि वे पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या स्त्रियों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? पुरुषों में से आकर उत्पन्न होते हैं या नपुंसकों में से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) स्त्रियों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं, पुरुषों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं, नपुंसकों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! अधःसप्तम (तमस्तमा) पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से ___आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् छठी तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान इनकी उत्पत्ति समझनी चाहिए। विशेष-स्त्रियों में से आकर इनके उत्पन्न होने का निषेध करना चाहिए। किं पज्जत्तएहिंतो उववजंति, अपज्जत्तएहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जति, ___ . नो अपज्जत्तएहिंतो उववज्जति। प. जइ पज्जत्तए - संखेज्जवासाउय - कम्मभूमगेहितो उववजंति, किं इत्थीहिंतो उववज्जति? पुरिसेहिंतो उवज्जति? नपुंसएहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! इत्थीहितो वि उववज्जंति, पुरिसेहिंतो वि उववज्जति, नपुंसएहितो वि उववज्जति। प. अहेसत्तमापुढविनेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं चेव। णवरं-इत्थीहिंतो पडिसेहो कायव्यो।

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