Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 714
________________ कंत मणुस्सेसु अकम्मभूमग- अंतरदीवग- असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो, देवेसु जाव सहस्सारेहिंतो । गब्भवक्कंतिय थलयरा एवं चेव । - जीवा. पडि. १, सु. ३८-३९ प. खहयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! जीवा कओहिंतो उयवज्जति ? कि नेरइएहिंतो उववञ्जति जाव देवेहितो उववज्जति ? उ. गोयमा ! असंखेज्जवासाउय- अकम्मभूमग- अंतरदीवगवज्जेहिंतो उववज्जति । - जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. ९७ मणुस्साणं पुच्छा प. दं. २१. मणुस्साणं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ? किं नेरइएहिंतो उपयज्जति जाय देवेहिंतो उववज्जति ? उ. गोयमा ! नेरइएहिंतो वि उववज्जति जाब देवेदितो वि उववज्जति । प. जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति, किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उववज्जति ? उ. गोयमा । रयणष्पभापुढविनेरइएहिंतो उववति जाय तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जति, नो अहेसत्तमापुढविनरइएहिंतो उपवज्जति । प. जइतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, किं एगिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उवयञ्जति ? उ. गोयमा ! एवं जेहिंतो पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं उववाओ भणियो, तेहिंतो मणुस्साण वि, णिरवसेसो भाणियव्वो । णवरं - अहेसत्तमाएपुढविनेरइय-तेउ वाउकाइएहिंतो ण उववज्जति । सव्वदेवेहिंतो वि उववज्जावेयवा कप्पातीयगवेमाणियसव्वट्ठसिद्धदेवेहिंतो उबवज्जावेदव्या|२ प सम्मुच्छिमणुस्सा णं भंते! कओहिंतो उवयजति ? उ. गोयमा ! असंखाउवज्जो उपवाओ १. (क) जीवा. पडि. १, सु. ४० (ख) विया. स. २४, उ. २१, सु. १ जाव वि - पण्ण. प. ६, सु. ६५६ नेरइय-देव-उ-बाउ - जीवा. पडि. १, सु. १२८ २. ३. १४५३ मनुष्यों में अकर्मभूमिज अंतद्वीप और असंख्यातवर्षायुष्क वालों को छोड़कर शेष मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं। देवों में सहस्रार पर्यन्त के देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं। गर्भज स्थलचर के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए। प्र. भंते! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम! असंख्यात वर्षायुष्क अकर्मभूमिज और अनाद्वीपों को छोड़कर शेष तिर्यञ्च और मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं। मनुष्य विषयक पृच्छा प्र. भंते ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) नैरयिकों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् अधः सप्तम पृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) रनप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं यावत् तमः प्रभापृथ्वी के नैरयिकों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं (किन्तु ) अधः सप्तमपृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं। यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! जिन-जिन से पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का उपपात कहा गया है, उन उन से मनुष्यों का भी समग्र उपपात उसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष - (मनुष्य) अधः सप्तमनरकपृथ्वी के नैरयिक, तेजस्कायिकों और वायुकायिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। देवों में सवार्थसिद्ध देवों पर्यन्त के कल्पातीत वैमानिक देवों में से आकर (मनुष्यों की उत्पत्ति समझनी चाहिए। प्र. भंते! सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे नैरयिक, देव, तेजस्कायिक, वायुकायिक और असंख्यात वर्षायुष्क (मनुष्य तिर्यञ्च) को छोड़कर शेष जीवों में से आकर उत्पन्न होते हैं। विया. स. २४, उ. २१, सु. ५, १३, १४ सूत्रांक जैन विश्व भारती लाडनू से

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