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दं. १८-२० एवं जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया संतरं पिउववज्जति, निरंतरं पिउववज्जति,
प. दं. २१. मणुस्सा णं भंते ! किं संतरं उववज्जति, निरंतर
उववज्जति? उ. गोयमा ! संतरं पि उववति, निरंतरं पि उववजंति।
दं. २२-२४ एवं वाणमंतरा, जोइसिया, सोहम्म जाव सव्वट्ठसिद्धदेवा य संतरं पि उववज्जंति, निरंतरं पि उववति।
-पण्ण. प.६, सु. ६१३-६२२ १८. सिद्धाणं संतरं-निरंतरं सिज्झण परूवणं
प. सिद्धाणं भंते ! किं संतरं सिझंति, निरंतरं सिझंति?
उ. गोयमा ! संतरं पि सिझंति, निरंतरं पि सिझंति।
-पण्ण.प.६, सु.६२३ १९. चउवीसदंडएसु उववाय विरहकाल परूवणंप. दं. १. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवइयं कालं
विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं,
उक्कोसेणं चउवीसं मुहुत्ता। प. २. सक्करप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवइयं कालं
विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं,
उक्कोसेणं सत्त राइंदियाई। प. ३. वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं
विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एग समयं,
उक्कोसेणं अद्धमासं। प. ४.पंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया
उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं,
उक्कोसेणं मासं। प. ५.धूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया
उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं,
उक्कोसेणं दो मासा। प. ६. तमापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया
उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं,
उक्कोसेणं चत्तारि मासा। प. ७. अहेसत्तमापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं
विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? १. (क) विया.स. ९,उ.३२,सु.३-६
(ख) विया.स.९,उ.३२, सु.४८ में गांगेय के प्रश्नोत्तरों के रूप में है।
द्रव्यानुयोग-(२) दं. १८-२० इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक पर्यन्त के जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न
होते हैं। प्र. दं. २१. भंते ! मनुष्य क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! (वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न
होते हैं। दं. २२-२४ इसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा सौधर्म कल्प से सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त के देव सान्तर भी उत्पन्न
होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। १८. सिद्धों के सान्तर-निरन्तर सिद्ध होने का प्ररूपणप्र. भन्ते ! सिद्ध क्या सान्तर सिद्ध होते हैं या निरन्तर सिद्ध
होते हैं? उ. गौतम !(वे) सान्तर भी सिद्ध होते हैं और निरन्तर भी सिद्ध
होते हैं। १९. चौबीस दंडकों में उपपात विरहकाल का प्ररूपणप्र. दं.१. भंते ! रलप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक
उपपात से विरहित कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त उपपात से विरहित कहे गये हैं। प्र.२. भंते ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक
उपपात से विरहित कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट सात रात्रि-दिन तक । प्र. ३. भंते ! वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक
उपपात से विरहित कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट अर्धमास तक। प्र. ४. भंते ! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात
से विरहित कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट एक मास तक। प्र. ५.भंते ! धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात
से विरहित कहे गए हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट दो मास तक। प्र. ६.भंते ! तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात
से विरहित कहे गए हैं? उ. गौतम ! जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट चार मास तक। प्र. ७. भंते ! अधःसप्तम-पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक
उपपात से विरहित कहे गए हैं ?
(ग) विया.स.१३,उ.६,सु.२-४