________________
देव गति अध्ययन
उ. गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं अणुत्तरा सद्दा जाव
अणुत्तरा फासा। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'अणुत्तरोववाइया देवा,अणुत्तरोववाइया देवा।' प. अणुत्तरोववाइया णं भंते ! देवा केवइएणं कम्मावसेसेणं
अणुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववन्ना? उ. गोयमा ! जावइयं छ?भत्तिए समणे निग्गंथे
कम्मनिज्जरेइ, एवइएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववाइया देवा अणुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववन्ना।
-विया. स. १४, उ.७, सु. १३-१४ ५२. अणुत्तरोववाइय देवाणं उवसंतमोहत्त परूवणंप. अणुत्तरोववाइया णं भंते ! देवा किं उदिण्णमोहा, उवसंत
मोहा,खीणमोहा? उ. गोयमा ! नो उदिण्णमोहा, उवसंतमोहा, नो खीणमोहा।।
-विया. स. ५, उ.४,सु.३३ ५३. अणुत्तरोववाइय देवाणं अणंतमणोदव्वाचमाणाणं जाणणाइ
सामत्थ परूवणंप. जहा णं भंते ! वयं एयमढे जाणामो पासामो तहा णं
अणुत्तरोववाइया वि देवा एयमटुंजाणंति पासंति?
१४२५ उ. गौतम ! अनुत्तरोपपातिक देवों को अनुत्तर शब्द यावत्
अनुत्तर स्पर्श प्राप्त होते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
'अनुत्तरोपपातिक देव, अनुत्तरोपपातिक देव हैं।' प्र. भन्ते ! कितने कर्मों के शेष रहने पर अनुत्तरोपपातिक देव,
अनुत्तरोपपातिक देव रूप में उत्पन्न हुए हैं ? __उ. गौतम ! श्रमण निर्ग्रन्थ षष्ठ भक्त (बेले) के तप द्वारा जितने
कर्मों की निर्जरा करता है उतने कर्म शेष रहने पर अनुत्तरोपपातिक योग्य साधु अनुत्तरोपपातिक देवरूप में
उत्पन्न होते हैं। ५२. अनुत्तरोपपातिक देवों के उपशांत मोहत्व का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव उदीर्णमोह हैं, उपशान्त मोह
हैं या क्षीणमोह हैं? उ. गौतम ! वे उदीर्ण मोह और क्षीण मोह नहीं हैं किन्तु
उपशान्तमोह हैं। ५३. अनुत्तरोपपातिक देवों को अनन्त मनोद्रव्य वर्गणओं के जानने
देखने के सामर्थ्य का प्ररूपणप्र. भंते ! जिस प्रकार आप और मैं इस (पूर्वोक्त) अर्थ (वार्ता)
को जानते देखते हैं क्या उसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देव भी
इस अर्थ (वार्ता) को जानते देखते हैं ? उ. हाँ, गौतम ! जिस प्रकार आप और मैं इस (पूर्वोक्त) बात को
जानते देखते हैं, उसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देव भी इस अर्थ
को जानते देखते हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि
"जिस प्रकार हम इस बात को जानते देखते हैं, उसी प्रकार
अनुत्तरोपपातिक देव भी इस बात को जानते देखते हैं ?" उ. गौतम ! अनुत्तरोपपातिक देवों के अनन्त मनोद्रव्य वर्गणाएँ
लब्ध प्राप्त और अभिसमन्वागत हैं।
उ. हता, गोयमा ! जहा णं वयं एयमढे जाणामो पासामो तहा
अणुत्तरोववाइया वि देवा एयमटुंजाणंति पासंति।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जिस प्रकार हम इस बात को जानते देखते हैं, उसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देव भी इस बात को जानते देखते हैं।"
प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ'जहा णं वयं एयमटुं जाणामो पासामो तहा णं
अणुत्तरोववाइया वि देवा एयम8 जाणंति पासंति?' उ. गोयमा ! अणुत्तरोववाइयदेवाणं अणंताओ
मणोदव्वग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमन्नागयाओ भवंति। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'जहा णं वयं एयमढे जाणामो पासामो तहा णं अणुत्तरोववाइया वि देवा एयमटुंजाणंति पासंति।
-विया.स.१४, उ.७.सु.३ ५४. लवसत्तम देवाणं सरूव परूवणं
प. अस्थि णं भंते ! लवसत्तमा देवा लवसत्तमा देवा? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"लवसत्तमा देवा, लवसत्तमा देवा?" उ. गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणं बलवं जाव निउणसिप्पोवगए, सालीणं वा, वीहीणं वा, गोधूमाणं वा, जवाण वा, जवजवाण वा, पक्काणं परियाताणं, हरियाणं हरियकंडाणं तिक्खेणं णवपज्जणएणं असियएणं पडिसाहरिया-पडिसाहरिया पडिसंखिविया पडिसंखिविया जाव इणामेव इणामेव त्ति कट्ट
५४. लवसप्तम देवों के स्वरूप का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! क्या लवसप्तम देव, लवसप्तम देव होते हैं ? उ. हाँ, गौतम ! होते हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"लवसप्तम देव, लवसप्तम देव हैं?" उ. गौतम ! जैसे कोई तरुण बलवान् यावत् शिल्पकला में निपुण
पुरुष वह परिपक्व काटने योग्य पीले पड़े हुए और पीले डंठल वाले शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ और जवजव की बिखरी हुई नालों को हाथ से इकट्ठा करके मुट्ठी में पकड़कर नई धार वाली तीखी दराती से शीघ्रतापूर्वक 'ये काटे-ये काटे' इस प्रकार