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देव गति अध्ययन प. महिड्ढिया णं भंते ! वेमाणिणी अप्पिड्ढियाए
वेमाणिणीए मज्झमझेणं वीईवएज्जा? उ. हता,गोयमा ! वीईवएज्जा। प. सा भंते ! किं विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू?
उ. गोयमा ! विमोहित्ता विपभू, अविमोहित्ता विपभू।
तहेब जाव पुव्विं वा वीईवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा, एए
चत्तारि दंडगा। -विया. स. १०,उ.३, सु.६-१७ ५९. इड्ढि पडुच्च देव-देवीणं परोप्पर मज्झमझेणं विइक्कमण
सामत्थ परूवणंप. अप्पिड्ढिए णं भंते ! देवे महिड्ढियस्स देवस्स
मझमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. गोयमा ! नो इणढे समढे। प. समिड्ढिए णं भंते ! देवे समिड्ढियस्स देवस्स
मझमज्झेणं वीईवएज्जा? उ. गोयमा ! णो इणढे समढे, पमत्तं पुण वीईवएज्जा।
प्र. भंते ! वैमानिक महर्द्धिक देवी, अल्पऋद्धिक वैमानिक देवी के
मध्य मे से होकर जा सकती है? उ. हाँ, गौतम ! जा सकती है। प्र. भंते ! क्या महर्द्धिक देवी उसे विमोहित करके जा सकती है
या विमोहित किए बिना भी जा सकती है? उ. गौतम ! उसे विमोहित करके भी जा सकती है और विमोहित
किए बिना भी जा सकती है। उसी प्रकार यावत् पूर्व में निकल करके तत्पश्चात् विमोहित
कर सकती है इस प्रकार ये चार दंडक हुए। ५९. ऋद्धि की अपेक्षा देव-देवियों का परस्पर मध्य में
से व्यतिक्रमण सामर्थ्य का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या अल्पऋद्धिक देव महाऋद्धि वाले देव के मध्य में से
होकर जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् वह नहीं जा सकता) प्र. भंते ! क्या समान ऋद्धि वाला देव समान ऋद्धि वाले देव के
मध्य में से होकर जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (समान ऋद्धि वाले देव के
प्रमत्त (असावधान) होने पर जा सकता है। प्र. भंते ! वह (मध्य में होकर जाने वाला) देव शस्त्र का प्रहार
करके जा सकता है या बिना प्रहार किये ही जा सकता है? उ. गौतम ! वह शस्त्र का प्रहार करके जा सकता है, बिना शस्त्र
प्रहार के नहीं जा सकता है। प्र. भंते ! वह देव पहले शस्त्र का प्रहार करके तत्पश्चात् जाता
है या
पहले जाकर तत्पश्चात् शस्त्र से प्रहार करता है? उ. गौतम ! पहले शस्त्र का प्रहार करके फिर जाता है।
किन्तु पहले जाकर फिर शस्त्र का प्रहार नहीं करता है। इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा दशवें शतक के तीसरे उद्देशक के अनुसार (पूर्ववत्) समग्र रूप से चारों दण्डक महाऋद्धि वाली वैमानिक देवी अल्पऋद्धि वाली वैमानिक देवी के मध्य
में से होकर जा सकती है पर्यन्त कहना चाहिए। ६०. देव का भावितात्मा अणगार के मध्य में से निकलने के
सामर्थ्य-असामर्थ्य का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या महाकाय और महाशरीर वाला देव भावितात्मा
अणगार के बीच में से होकर निकल जाता है? उ. गौतम ! कोई निकल जाता है और कोई नहीं निकलता है।
प. से णं भंते ! किं सत्थेणं अक्कमित्ता पभू, अणक्कमित्ता
पभू? उ. गोयमा ! अक्कमित्ता पभू, नो अणक्कमित्ता पभू।
प. से णं भंते ! किं पुब्बिं सत्येणं अक्कमित्ता पच्छा
वीईवएज्जा?
पुब्बिं वीईवएत्ता पच्छा सत्थेणं अक्कमेज्जा? उ. गोयमा ! पुव्विं अक्कमित्ता पच्छा वीईवएज्जा,
णो पुव्विं वीईवएत्ता पच्छा अक्कमेज्जा। एवं एएणं अभिलावेणं जहा दसमसए आइड्ढि उद्देसए तहेव निरवसेसं चत्तारि दंडगा भाणियब्वा जाव महिड्ढिया वेमाणिणी अप्पिड्ढियाए वेमाणिणीए।'
-विया. स. १४, उ.३, सु.१०-१३ ६०. देवस्स भावियप्पणो अणगारस्स मज्झमझेणं वीयीवएण
सामत्थासामत्थ परूवणंप. देवे णं भंते ! महाकाए महासरीरे अणगारस्स
भावियप्पणो मज्झमज्झेणं वीयीवएज्जा? उ. गोयमा ! अत्थेगइए वीयीवएज्जा, अत्थेगइए नो
वीयीवएज्जा। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'अत्थेगइए वीयीवएज्जा,अत्थेगइए नो वीयीवएज्जा?'
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"कोई बीच में से होकर निकल जाता है और कोई नहीं
निकलता है?" उ. गौतम ! देव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक, २. अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक।
उ. गोयमा ! देवा दुविहा पन्नत्ता,तं जहा
१. मायीमिच्छादिट्ठी उववन्नगा य, २. अमायीसम्मदिट्ठी उववनगा य।
१. विया.स.१०,उ.३.सु.८-१७