________________
१४२२
वुट्ठी इ वा, फल वुट्ठी इ वा, बीय वुट्ठी इ वा, मल्ल वुट्ठी इ वा, वण्णवुट्ठी इ वा, चुण्णवुट्ठी इ वा, गंधवुट्ठी इ वा, वत्थवुट्टी इवा, भायणवुट्ठी इवा, खीरवुट्ठी इवा, सुकाला इवा, दुक्काला इवा, अप्पग्घा इ वा, महग्घा इ वा, सुभिक्खा इवा, दुभिक्खा इवा, कय-विक्कया इवा, सन्निही इवा, सन्निचया इवा, निही इवा,णिहाणा इवा, चिरपोराणा इवा, पहीणसामिया इ वा, पहीणसेतुया इ वा, पहीणमग्गा इ वा, पहीणगोत्तागारा इ वा, उच्छन्नसामिया इ वा, उच्छन्नसेतुया इ वा, उच्छन्नगोत्तागाराइवा.
द्रव्यानुयोग-(२)) फल की वृष्टि, बीज की वृष्टि, माला की वृष्टि, वर्ण की वृष्टि, चूर्ण की वृष्टि, गंध की वृष्टि, वस्त्र की वृष्टि, भाजन की वृष्टि, क्षीर की वृष्टि, सुकाल, दुष्काल अल्पमूल्य या महामूल्य, सुभिक्ष, दुर्भिक्ष क्रय-विक्रय, सन्निधि, (घी गुड़ आदि का संचय) सन्निचय (अन्न आदि का संचय) निधियाँ (खजाने-कोष) निधान (जमीन में गड़ा हुआ धन) चिर पुरातन (बहुत पुराने) जिनके स्वामी समाप्त हो गए, जिनकी सारसंभाल करने वाले नहीं रहे, जिनकी कोई खोज खबर नहीं है, जिनके स्वामियों के गोत्र और आगार (घर) नष्ट हो गए, जिनके स्वामी छिन्नभिन्न हो गए, जिनकी सारसंभाल करने वाले छिन्न-भिन्न हो गए, जिनके स्वामियों के गोत्र और घर छिन्नभिन्न हो गए, ऐसे खजाने शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख एवं महापथों, सामान्य मार्गों नगर के गन्दे नालों में, श्मशान, पर्वतगृह गुफा (कन्दरा) शान्तिगृह, शैलोपस्थान (पर्वत को खोदकर बनाए गए सभा स्थान) भवनगृह (निवास गृह) इत्यादि स्थानों में गाड़ कर रखा हुआ धन ये सब पदार्थ देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वैश्रमण महाराज से अथवा उसके वैश्रमणकायिक देवों से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अविस्मृत
और अविज्ञात नहीं हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र के (चतुर्थ) लोकपाल वैश्रमण महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभीष्ट हैं, यथापूर्णभद्र, माणिभद्र, शालिभद्र, सुमनोभद्र, चक्ररक्ष, पूर्णरक्ष, सद्वान, सर्वयश, सर्वकामसमृद्ध अमोघ और असंग।
सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसुनगर-निद्धमणेसु सुसाण-गिरि-कंदर-संति-सेलोवट्ठाणभवणगिहेसु-सन्निक्खित्ताई चिट्ठति ण ताइ सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो अण्णायाई अदिट्ठाई असुयाइं अमुयाइं अविन्नयाई तेसिं वा वेसमणकाइयाणं देवाणं। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो इमे देवा अहावच्चाभिण्णया होत्था,तं जहापुण्णभद्दे, माणिभद्दे, सालिभद्दे, सुमणभद्दे , चक्करक्खे, पुण्णरक्खे, सव्वाणे, सव्वजसे सव्वकामसमिद्धे अमोहे असंगे। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो दो पलिओवमाणं ठिई पण्णत्ता। अहावच्चाभिण्णयाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। एमहिड्ढीए जाव महाणुभागे वेसमणे महाराया।
-विया.स.३,उ.७, सु.२-७ सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणे महाराया अट्ठसत्तरीए सुवण्णकुमार दीवकुमारावास सयसहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं भट्टितं सामित्तं महारायत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ।
-सम. सम.७८, सु.१ प. ईसाणस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो कइ लोगपाला
पण्णता? उ. गोयमा !चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता,तं जहा१. सोमे,
२. जमे, ३. वेसमणे, ४. वरुणे। प. एएसिणं भंते ! लोगपालाणं कइ विमाणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता,तं जहा
१. सुमणे, २. सव्वओभद्दे,
३. वग्गू, ४. सुवग्गू। प. कहि णं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स
लोगपालस्स सुमणे नामं महाविमाणे पण्णत्ते?
देवेन्द्र देवराज शक्र के (चतर्थ) लोकपाल-वैश्रमण महाराज की स्थिति दो पल्योपम की कही गई है और उनके अपत्यरूप से अभिमत देव की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। इस प्रकार वैश्रमण महाराज महाऋद्धि वाला यावत् महाप्रभाव वाला है। देवेन्द्र देवराज शक्र का वैश्रमण नामक लोकपाल महाराज सुपर्णकुमारनिकाय और द्वीपकुमार-निकाय के अठत्तर लाख आवासों का आधिपत्य, पौरपत्य, भर्तृत्व, स्वामित्व, महाराजत्व तथा आज्ञा ऐश्वर्य, सेनापतित्व करता हुआ और
उनका पालन करता हुआ विचरता है। प्र. भन्ते ! ईशानेन्द्र देवेन्द्र देवराज के कितने लोकपाल कहे
गए हैं? उ. गौतम ! चार लोकपाल कहे गए हैं, यथा१. सोम,
२. यम, ३. वैश्रमण,
४. वरुण। प्र. भन्ते ! इन लोकपालों के कितने विमान कहे गए हैं ? उ. गौतम चार विमान कहे गए हैं, यथा
१. सुमन, २. सर्वतोभद्र, ३. वल्गु,
४. सुवल्गु। प्र. भन्ते ! ईशान देवेन्द्र देवराज के सोम लोकपाल का सुमन
नामक महाविमान कहाँ कहा गया है?