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डिंबा इवा, डमरा इ वा, कलहा इवा, बोला इवा, खारा इ वा, महाजुद्धा इ वा, महासंगामा इ वा, महासत्थनिवडणा इ वा, महापुरिसनिवडणा इ वा, महारुधिर-निवडणा इवा, दुब्भूया इवा, कुलरोगा इ वा, गामरोगा इ वा, मंडलरोगा इवा, नगररोगा इ वा, सीसवेयणा इ वा, अच्छिवेयणा इ वा, कण्णनह-दंतवेयणा इवा, इंदग्गहा इवा, खंदग्गहा इवा, कुमारग्गहा इ वा, जक्खग्गहा इ वा, भूयग्गहा इवा, एगाहिया इ वा, बेहिया इवा, तेहिया इ वा, चाउत्थया इ वा, उव्वेयगा इवा, कासा इवा, सासा इवा, सोसाइवा, जरा इवा, दाहा इवा, कच्छकोहा इवा,अजीरिया इवा, पंडुरोगा इवा, अरिसा इवा, भगंदला इ वा, हिययसूला इवा,मत्थयसूलाइवा,जोणिसूला इवा,पाससूलाइवा, कुच्छिसूला इ वा, गाममारी इ वा, नगर-खेड-कब्बडदोणमुह-मडंब-पट्टण आसम संवाह सन्निवेसमारी इवा, पाणक्खया इ वा, धणक्खया इ वा, जणक्खया इ वा कुलक्खया इवा, वसणब्भूया इवा, अणारिया जे याऽवन्ने तहप्पगारा न ते सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो अण्णाया अदिट्ठा असुया अमुया अविण्णाया तेसिं वा जमकाइयाणं देवाणं।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो इमे देवा अहावच्चा अभिण्णाया होत्था,तं जहा१. अब,
२. अंबरिसे चेव, ३. सामे, ४. सबले त्ति यावरे। ५-६. रुद्दोवरुद्दे, ७. काले य, ८. महाकाले त्ति यावरे॥ ९. असी य, १०. असिपत्ते, ११. कुंभे, १२. वालू, १३. वेतरणी इय। १४. खरस्सरे, १५. महाघोसे एए पन्नरसाहिया॥ सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो सतिभागं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, एमहिड्ढिए जाव महाणुभागे जमे महाराया।
द्रव्यानुयोग-(२)) डिम्ब (विघ्न), डमर (राजकुल में विद्रोह) कलह, बोल (अव्यक्त अक्षरों की ध्वनियाँ) खार, महायुद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रपात, महापुरुषों की मृत्यु, महारक्तपात, दुर्भूत (दुर्भिक्ष पैदा करने वाले) कुलरोग (पैतृक रोग) ग्राम रोग, मण्डलरोग (एक मण्डल में फैलने वाली बीमारी) नगररोग, शिरोवेदना (सिरदर्द), नेत्रपीड़ा, कान, नख और दांत की पीड़ा, इन्द्रग्रह, स्कन्द ग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह एकान्तराज्वर, द्विअन्तर (दूसरे दिन आने वाला ज्वर) तिजारा (तीसरे दिन आने वाला ज्वर) चौथिया (चौथे दिन आने वाला ज्वर) उद्वेगक (उद्वेग पैदा करने वाली घटनाएं) कास (खांसी) श्वास (दमा) शक्तिहीन करने वाले बलनाशक ज्वर, जरा (बुढ़ापा) दाहज्वर, कच्छकोह (शरीर के कांख आदि भागों में सड़ांध)अजीर्ण, पाण्डुरोग,(पीलिया) अर्शरोग (मस्सा) भगंदर, हृदयशूल, मस्तकपीड़ा, योनिशूल, पार्श्वशूल (कांख या बगल की पीड़ा) कुक्षि (उदर) शूल, ग्रामनगर-खेट-कर्बट-द्रोणमुख, मडम्ब-पट्टण-आश्रम- सम्बाध
और सन्निवेशमारी, इन सबकी मारी (मृगीरोग महामारी आदि) प्राणक्षय, धनक्षय, जनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत (विपत्तिरूप) अनार्य (पापरूप कृत्य) ये और इसी प्रकार के दूसरे सब कार्य देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज से या उसके यमकायिक आदि देवों से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत अविस्मृत और अविज्ञात नहीं होते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज के ये देव अपत्यरूप से (पुत्रस्थानीय) स्वीकार किये गए हैं, यथा१. अम्ब,
२. अम्बरिष, ३. श्याम,
४. शबल, ५. रुद्र,
६. उपरुद्र, ७. काल,
८. महाकाल, ९. असि, १०. असिपत्र, ११. कुम्भ, १२. बालू, १३. वैतरणी, १४. खरस्वर और १५. महाघोष, ये पन्द्रह विख्यात हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-यम महाराज को स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की कही गई है और उसके अपत्यरूप से स्वीकार किये गए देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। इस प्रकार यम महाराज महाऋद्धि वाला
यावत् महाप्रभाव वाला है। प्र.३.भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वरुण महाराज का
स्वयंज्वल नामक महाविमान कहाँ कहा गया है? उ. गौतम ! वरुण महाराज का महाविमान सौधर्मावतंसक नामक
महाविमान से पश्चिम में है। इसके विमान और राजधानी का वर्णन सोम लोकपाल के विमान और राजधानी प्रासादावतंसक की तरह कर लेना चाहिए। विशेष-केवल नामों में अन्तर हैदेवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वरुण महाराज के ये देव आज्ञा-सेवा उपपात आदेश और निर्देश में रहते हैं, यथा
प. ३. कहि णं भंते ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स ____महारण्णो सयंजले नाम महाविमाणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तस्स णं सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स
पच्चत्थिमेणं। जहा सोमस्स तहा विमाण रायहाणीओ भाणियव्वा जाव पासायवडिंसया।
णवरं-नामनाणत्तं। सक्कस्स णं वरुणस्स महारण्णो इमे देवा आणा उववाय वयण निद्देसे चिट्ठति,तंजहा