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देव गति अध्ययन
वरुणकाइया इ वा, वरुणदेवकाइया इ वा, नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहिकुमारा, उदहिकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ, जे याऽवण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया जाव चिट्ठति। जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पज्जति,तं जहाअइवासा इवा, मंदवासा इवा, सुवुट्ठी इवा, दुव्बुट्ठी इ वा, उदब्भेया इ वा, उदप्पीला इ वा, उदवाहा इ वा, पवाहा इ वा, गामवाहा इ वा जाव सन्निवेसवाहा इ वा पाणक्खया जाव (णो) अविण्णाया तेसिं वा वरुणकाइयाणं देवाणं।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो इमे देवा अहावच्चाभिण्णया होत्था,तं जहाकक्कोडए, कद्दमए, अंजणे, संखवालए, पुंडे, पलासे, मोएज्जए दहिमुहे अयंपुले कायरिए। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो देसूणाई दो पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, एमहिड्ढीए जाव महाणुभागे वरुणे महाराया।
१४२१ वरुणकायिक, वरुणदेवकायिक, नागकुमार, नाग कुमारियाँ, उदधिकुमार, उदधिकुमारियाँ, स्तनितकुमार स्तनितकुमारियाँ ये और इसी प्रकार के दूसरे देव उनकी भक्ति वाले यावत् उपस्थित रहते हैं। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत से दक्षिण दिशा में ये कार्य समुत्पन्न होते हैं, यथाअतिवर्षा, मन्दवर्षा, सुर्वृष्टि, दुर्वृष्टि उदकोद्भेद (पर्वत आदि से निकलने वाला झरना) उदकोत्पील (सरोवर आदि में जमा हुई जलराशि (उदवाह) पानी का अल्प प्रवाह ग्रामवाह यावत् सन्निवेशवाह (बाढ आ जाना) प्राणक्षय यावत् इसी प्रकार के दूसरे सभी कार्य वरुणकायिक आदि देवों से अज्ञात नहीं हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-वरुण महाराज के ये देव अपत्यरूप से स्वीकार किये गए हैं, यथाकर्कोटक, कर्दमक, अंजन, शंखपाल, पुण्ड्र, पलाश, मोदजय, दधिमुख, अयंपुल और कायरिक। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वरुण महाराज की स्थिति देशोन दो पल्योपम की कही गई है और वरुण महाराज के अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है, इस प्रकार वरुण महाराज महाऋद्धि वाला
यावत् महाप्रभाव वाला है। प्र. ४. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वैश्रमण महाराज
का वरुणनामक महाविमान कहाँ कहा गया है? उ. गौतम ! वैश्रमण महाराज का महाविमान सौधर्मावतंसक
नामक महाविमान के उत्तर में है। इसके प्रासादावतंसक पर्यन्त विमान राजधानी आदि का वर्णन सोम लोकपाल के विमान आदि की तरह कर लेना चाहिए। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वैश्रमण महाराज की आज्ञा, सेवा, उपपात, आदेश और निर्देश में ये देव रहते हैं, यथावैश्रमणकायिक, वैश्रमणदेवकायिक, सुवर्णकुमार, सुवर्णकुमारियाँ, द्वीपकुमार, द्वीपकुमारियाँ, दिसाकुमार, दिसाकुमारियाँ, वाणव्यन्तर देव, वाणव्यन्तर देवियाँ ये और इसी प्रकार के अन्य सभी देव जो उसकी भक्ति वाले हैं यावत् उपस्थित रहते हैं। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत से दक्षिण में जो ये कार्य समुत्पन्न होते हैं, यथालोहे की खाने, रांगे की खानें, ताम्बे की खाने,शीशे की खाने, हिरण्य (चांदी) की खानें, सुवर्ण की खाने, रत्न की खाने और वज्र (हीरे) की खानें। वसुधारा, हिरण्य की वर्षा, सुवर्ण की वर्षा, रत्न की वर्षा, वज्र (हीरा) की वर्षा, आभरण की वर्षा, पत्र की वर्षा, पुष्प की वर्षा, फल की वर्षा, बीज की वर्षा, माला की वर्षा, वर्ण की वर्षा, चूर्ण की वर्षा, गन्ध की वर्षा और वस्त्र की वर्षा।
प. ४. कहि णं भन्ते ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो
वेसमणस्स वग्गू णामं महाविमाणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तस्स णं सोहम्मवडिंसगस्स महाविमाणस्स
उत्तरेणं, जहा सोमस्स विमाणं रायहाणि वत्तव्वया तहा नेयव्वा जाव पासायवडिंसया। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो इमे देवा आणा-उववाय-वयण-निदेसे चिट्ठति,तं जहावेसमणकाइया इ वा, वेसमण देवकाइया इ वा, सुवण्णकुमारा, सुवण्णकुमारीओ, दीवकुमारा दीवकुमारीओ, दिसाकुमारा, दिसाकुमारीओ, वाणमंतरा, वाणमंतरीओ जे याऽवन्ने तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया जाव चिट्ठति। जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पज्जति, तं जहाअयागरा इवा, तउयागरा इवा, तंबागरा इवा, सीसागरा इ वा, हिरण्णागरा इवा, सुवण्णागरा इवा, रयणागरा इवा, वयरागरा इवा, वसुधारा इ वा, हिरण्णवासा इ वा, सुवण्णवासा इवा, रयणवइरवासा इवा, वयरवासा इवा, आभरणवासा इ वा, पत्तवासा इवा, पुष्फवासा इवा, फलवासा इ वा, बीयवासा इ वा, मल्लवासा इ वा, वण्णवासा इ वा, चुण्णवासा इवा, गंधवासा इवा, वत्थवासा इवा, हिरण्णवुट्ठी इ वा, सुवण्णवुट्ठी इ वा, रयणवुट्ठी इ वा, वयरवुट्ठी इवा, आभरण वुट्ठी इ वा, पत्त वुट्टी इवा, पुष्फ
हिरण्य की वृष्टि, सुवर्ण की वृष्टि, रत्न की वृष्टि, वज्र (हीरे) की वृष्टि, आभरण की वृष्टि, पत्र की वृष्टि, पुष्प की वृष्टि,