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मनुष्य
गति अध्ययन
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. पुण्णे वि एगे पियट्ठे,
२. पुणे वि एगे अवदले,
३. तुच्छे वि एगे पियट्ठे,
४. तुच्छे वि एंगे अवदले ।
(५) चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा
१. पुण्णे वि एगे विस्संदइ,
२. पुण्णे वि एगे णो विस्संदद्द,
३. तुच्छे वि एगे विस्संदइ,
४. तुच्छे वि एगे णो विस्संद
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. पुण्णे वि एगे विस्संदइ,
२. पुणे वि एगे णो विस्संदइ,
३ तुच्छे वि एगे विस्संदइ,
४. तुच्छे वि एगे णो विस्संदइ । - ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३६०
६५. मग्ग दिट्ठतेण पुरिसाणं चउभंग पलवणं
(१) चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा
१. उज्जू णाममेगे उज्जू,
२. उज्जू णाममेगे वक
३. बँक णाममेगे उज्जू,
४. वके णाममेगे वंके।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा
१. उज्जू णाममेगे उज्जू,
२. उज्जू णाममेगे वंके,
३. बँक णाममेगे उज्जू,
४. वके णाममेगे वके ।
(२) चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा
१. खेमे णाममेगे खेमे,
२. खेमे णाममेगे अखेमे,
३. अखेमे णाममेगे खेमे,
४. अखेमे णाममेगे अखेमे ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. खेमे णाममेगे खेमे,
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इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी पूर्ण होते हैं और परोपकारी होने से प्रिय भी होते हैं,
,
२. कुछ पुरुष श्रुत आदि से पूर्ण होते हैं, परन्तु परोपकारी न होने से अप्रिय होते हैं.
३. कुछ पुरुष श्रुत आदि से अपूर्ण होते हैं, परन्तु परोपकारी होने से प्रिय होते हैं,
४. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी अपूर्ण होते हैं और परोपकारी न होने से अप्रिय भी होते हैं।
(५) कुंभ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
9. कुछ कुंभ जल से पूर्ण होते हैं और झरते भी हैं, २. कुछ कुंभ जल से पूर्ण होते हैं और झरते भी नहीं हैं, ३. कुछ कुंभ जल से भी अपूर्ण होते हैं और झरते भी हैं,
४. कुछ कुंभ जल से भी अपूर्ण होते हैं और झरते भी नहीं हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी पूर्ण होते हैं और विष्यन्दी (ज्ञान दान आदि) भी करते हैं.
२. कुछ पुरुष श्रुत आदि से पूर्ण होते हैं परन्तु ज्ञान दान आदि नहीं करते,
३. कुछ पुरुष श्रुत आदि से अपूर्ण होते हैं परन्तु ज्ञान दान आदि करते हैं,
४. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी अपूर्ण होते हैं और ज्ञान दान आदि भी नहीं करते।
६५. मार्ग के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुभंगों का प्ररूपण(१) मार्ग चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ मार्ग ऋजु (सरल) लगते हैं और ऋजु ही होते हैं,
२. कुछ मार्ग ऋजु लगते हैं, किन्तु वास्तव में वक्र होते हैं, ३. कुछ मार्ग वक्र (टेढे) लगते हैं, किन्तु वास्तव में ऋजु होते हैं,
४. कुछ मार्ग वक्र लगते हैं और वक्र ही होते हैं ।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष ऋजु लगते हैं और ऋजु ही होते हैं,
२. कुछ पुरुष ऋजु लगते हैं, किन्तु वास्तव में वक्र होते हैं, ३. कुछ पुरुष वक्र लगते हैं, किन्तु वास्तव में ऋजु होते हैं,
४. कुछ पुरुष वक्र लगते हैं और वक्र ही होते हैं।
(२) मार्ग चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
9. कुछ मार्ग प्रारंभ में भी क्षेम (निरुपद्रव) होते हैं और अन्त में भी क्षेम होते हैं,
२. कुछ मार्ग प्रारंभ में क्षेम होते हैं, किन्तु अन्त में अक्षेम होते हैं, ३. कुछ मार्ग प्रारंभ में अक्षेम होते हैं और अन्त में क्षेम होते हैं, ४. कुछ मार्ग न प्रारम्भ में क्षेम होते हैं और न अन्त में क्षेम होते हैं।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
9. कुछ पुरुष प्रारंभ में भी क्षेम (निरुपद्रव) होते हैं और अन्त में भी क्षेम होते हैं,