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पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नाई अठ्ठऽट्ठ देवीसहरसाई परिवार विउब्वित्तए एवामेव सपुव्यावरेणं चत्तालीसं देवीसहस्सा, से तं तुडिए ।
प. पभू णं भंते! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सिंहासांसि तुडिएणं सद्धिं दिव्याई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए ?
उ. अज्जो ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
प. से केणट्ठेण भंते ! एवं बुच्चद्द
नो पभू चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणी सभाए सुहम्माए जाव नो दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ?
उ. अज्जो ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णी चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभं वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहूओ जिणसकहाओ सन्निक्खित्ताओ चिट्ठेति, जाओ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अन्नेसिं च बहूणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण व अच्चणिज्जाओ, चंदणिज्जाओ, नमसणिज्जाओ, पूयणिज्जाओ, सक्कारणिज्जाओ, सम्माणणिज्जाओ, कल्लाणं मंगलं देवयं चेयं पज्जुवासणिज्जाओ भवति, तेसि पणिहाए नो पभू
से तेणट्ठेणं अज्जो ! एवं दुच्चइ'नो पभू चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणी जाव विहरित्तए । '
पभू णं अज्जो चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरसि सीहासांसि चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए
अहिं य बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहि य देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे महयाहय जाव भुंजमाणे विहरित्तए केवलं परियारिद्धीए नो चेव णं मेहुणवत्तियं ।
प. चमरस्स णं भंते! असुर्रिदस्स असुरकुमाररण्णी सोमरस महारण्णो कइ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ ?
उ. अग्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नताओ, तं जहा१. कणगा २. कणगलया, ३. चित्तगुत्ता, ४. वसुंधरा । तत्य णं एगमेगाए देवीए एगमेग देविसहस्स परिवारो पन्नत्तो, पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्न एगमेगं देविसहस्तं परिवार विउचितए एवामेव चत्तारि देव देविसहस्सा से तं तुडिए ।
प. पभूणं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमे महाराया सोमाए रायहाणीए सभाए सुम्माए सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं ?
द्रव्यानुयोग - (२)
एक-एक देवी दूसरी आठ-आठ हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलाकर (पाँच अग्रमहिषियों का परिवार) चालीस हजार देवियां हैं। यह चमरेन्द्र का त्रुटिक (अन्तःपुर) है।
प्र. भन्ते ! क्या असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर चमरचंचा राजधानी को सुधर्मा सभा में चमर नामक सिंहासन पर बैठकर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगों को भोगने में समर्थ है ?
उ. हे आर्यों! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर चमरचंचा राजधानी की सुधर्मासभा में पावत् दिव्य भोगों को भोगने में समर्थ नहीं है?"
उ. हे आर्यों ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की चमरचंचा नामक राजधानी की सुधर्मासभा में माणवक चैत्यस्तम्भ में, वज्रमय (हीरों के) गोल डिब्बों में जिन भगवान् की बहुत सी अस्थियों रखी हुई हैं, जो कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज के लिए तथा अन्य बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों के लिए अर्चनीय, चन्दनीय, नमस्करणीय, पूजनीय, सत्कारयोग्य एवं सम्मानयोग्य हैं। वे कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप, चैत्यरूप, पर्युपासनीय हैं। इसलिए उनके प्रणिधान ( सान्निध्य में) यावत् भोग भोगने में समर्थ नहीं है।
इस कारण से हे आर्यों ! ऐसा कहा गया है कि'असुरेन्द्र यावत् चमर चमरचंचा राजधानी में यावत् दिव्य भोग भोगने में समर्थ नहीं है।'
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हे आर्यों ! वह असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर अपनी चमरचंचा राजधानी की सुधर्मासभा में चमर सिंहासन पर बैठकर चौसठ हजार सामानिक देवों त्रयस्त्रिंशक देवों यावत् दूसरे बहुत से असुरकुमार देव देवियों से परिवृत होकर वाद्य घोषों के साथ यावत् दिव्य भोग्य भोगों का केवल परिवार की ऋद्धि से उपभोग करने में समर्थ है किन्तु मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है।
प्र. भन्ते ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल सोम महाराज की कितनी अग्रमहिषियों कही गई हैं ?
उ. हे आर्यों! उनके चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा
१. कनका, २. कनकलता, ३. चित्रगुप्ता, ४. वसुन्धरा । इनमें से प्रत्येक देवी का एक-एक हजार देवियों का परिवार है। इनमें से प्रत्येक देवी, एक-एक हजार देवियों के परिवार की विणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलाकर चार हजार देवियाँ होती हैं वह सोम लोकपाल का त्रुटिक (अन्तःपुर) है।
प्र. भन्ते ! क्या असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल सोम महराज अपनी सोमा नामक राजधानी की सुधर्मासभा में सोम नामक सिंहासन पर बैठकर अपने उस त्रुटिक के साथ दिव्य भोग भोगने में समर्थ है?