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देव गति अध्ययन प. गेवेज्जगदेवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता? उ. गोयमा ! आभरणवसणरहिया एवं देवी णत्थि भाणियव्वं ।
पगइत्था विभूसाए पण्णत्ता,
एवं अणुत्तरा वि।
प. सोहम्मीसाणेसु देवा केरिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा
विहरंति? उ. गोयमा ! इट्ठा सद्दा, इट्ठा रूवा, इट्ठा गंधा, इट्ठा रसा, इट्ठा
फासा। एवं जाव गेवेज्जा। अणुत्तरोववाइयाणं अणुत्तरा सद्दा जाव अणुत्तरा फासा।
-जीवा. पडि. ३ सु.२०४ ३०. चउव्विह देवनिकाएसु अभिरूव अणभिरुवाइ कारण
परूवणंप. दो भंते ! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि
असुरकुमार देवत्ताए उववन्ना, तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिस्वे, एगे असुरकुमारे देवे से णं नो पासाईए, नो दरिसणिज्जे, नोअभिरूवे,नो पडिरूवे।
से कहमेयं भंते ! एवं? उ. गोयमा ! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ताओ, तं जहा
१. वेउव्वियसरीरा य, २.अवेउब्वियसरीराय। १. तत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं
पासाईए जाव पडिरूवे। २. तत्थ णं जे से अवेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे सेणं
नो पासाईए जाव नो पडिरूवे। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'तत्थ णंजे से वेउब्वियसरीरे तं चेव जाव नो पडिरूवे'
प्र. भंते ! |वेयक देव कैसी विभूषा वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे देव आभरण और वस्त्रों की विभूषा से रहित
स्वाभाविक विभूषा से सम्पन्न कहे गए हैं वहां देवियां नहीं कहनी चाहिए। इसी प्रकार अनुत्तरविमान के देवों की विभूषा का कथन भी
कर लेना चाहिए। प्र. भंते ! सौधर्म-ईशान कल्प में देव कैसे कामभोगों का अनुभव
करते हुए विचरते हैं? उ. गौतम ! इष्ट शब्द, इष्ट रूप, इष्ट गंध, इष्ट रस और इष्ट
स्पर्शजन्य कामभोगों का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों पर्यन्त कहना चाहिए। अनुत्तरोपपातिक देव अनुत्तर शब्द यावत् अनुत्तर स्पर्शजन्य
कामभोगों का अनुभव करते हैं। ३०. चतुर्विध देवनिकायों में मनोहर-अमनोहरता के कारणों का
प्ररूपणप्र. भन्ते ! एक असुरकुमारावास में दो असुरकुमार देव उत्पन्न
हुए, उनमें से एक असुरकुमार देव प्रासादीय, दर्शनीय, सुन्दर एवं मनोहर होता है और एक असुरकुमार देव प्रासादीय दर्शनीय सुन्दर और मनोहर नहीं होता है।
उ. गोयमा ! से जहानामए इहं मणुयलोगंसि दुवे पुरिसा
भवंति-एगं पुरिसे अलंकियविभूसिए, एगे पुरिसे अणलंकियविभूसिए, . एएसि णं गोयमा ! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे पासाईए जाव पडिरूवे? कयरे पुरिसे नो पासाईए जाव नो पडिरूवे? जे वा से पुरिसे अलंकियविभूसिए? जे वा से पुरिसे अणलंकियविभूसिए? भगवं ! तत्थ णं जे से पुरिसे अलंकिय विभूसिए से णं पुरिसे पासाईए जाव पडिरूवे। तत्थ णं जे से पुरिसे अणलंकिय विभूसिए से णं पुरिसे नो पासाईए जाव नो पडिरूवे। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'तत्थ णंजे से वेउव्विय सरीरे तं चेव जाव नो पडिरूवे।'
भन्ते ! ऐसा क्यों होता है? उ. गौतम ! असुरकुमार देव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. विकुर्वितशरीर वाले, २. अविकुर्वितशरीर वाले, १. उनमें से जो विकुर्वित शरीर वाला असुरकुमार देव है वह
प्रासादीय यावत् मनोहर होता है। २. उनमें से जो अविकुर्वित शरीर वाला असुरकुमार देव है
वह प्रासादीय यावत् मनोहर नहीं होता है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'उनमें जो विकुर्वित शरीर वाला है उसी प्रकार यावत् मनोहर
नहीं होता है?' उ. गौतम ! जिस प्रकार इस मनुष्य लोक में दो पुरुष होते हैं, उनमें
एक पुरुष अलंकृत विभूषित होता है और एक अलंकृत विभूषित नहीं होता है। गौतम ! इन दो पुरुषों में कौनसा पुरुष प्रासादीय यावत् मनोहर होता है? कौनसा पुरुष प्रासादीय यावत् मनोहर नहीं होता है ? जो पुरुष अलंकृत विभूषित होता है वह? या जो पुरुष अलंकृत विभूषित नहीं होता है वह? भन्ते ! उनमें जो पुरुष अलंकृत विभूषित होता है वह प्रासादीय यावत् मनोहर होता है। उनमें जो पुरुष अलंकृत विभूषित नहीं होता है वह प्रासादीय यावत् मनोहर नहीं होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'उनमें जो विकुर्वित शरीर वाला नहीं है उसी प्रकार यावत् मनोहर नहीं होता है।