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द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भंते ! लान्तक कल्प में देवों के शरीर कैसे वर्ण के कहे गए हैं ?
प. लंतए णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! सुक्किला वण्णेणं पण्णत्ता?
एवं जाव गेवेज्जा। अणुत्तरोववाइया परमसुक्किल्ला वण्णेणं पण्णत्ता।
प. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया
गंधेणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! से जहाणामए कोट्ठपुडाण वा तहेव सव्वं जाव
मणामतरगा चेव गंधेणं पण्णत्ता। एवं जाव अणुत्तरोववाइया।
उ. गौतम ! शुक्ल वर्ण वाले कहे गए हैं ?
ग्रैवेयक देवों के शरीर भी ऐसे ही वर्ण वाले हैं। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर अत्यन्त शुक्ल वर्ण वाले कहे
गए हैं। प्र. भंते ! सौधर्म-ईशान कल्पों में देवों के शरीर कैसी गन्ध वाले
कहे गए हैं? उ. गौतम ! कोष्ठपुट आदि जैसे पहले के समान ही यावत् अत्यन्त
मनमोहक गंध वाले कहे गए हैं। इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त के शरीर की गंध
जाननी चाहिए। प्र. भंते ! सौधर्म-ईशान कल्पों में देवों के शरीर कैसे स्पर्श वाले
कहे गए हैं? उ. गौतम ! स्थिर मृदु स्निग्ध जैसे सुकुमाल स्पर्श वाले कहे
गए हैं। इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त के शरीरों का
स्पर्श कहा गया है। २९. वैमानिक देवों की विभूषा और कामभोगों का प्ररूपण
प्र. भंते ! सौधर्म ईशानकल्प के देव कैसी विभूषा वाले कहे
प. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरमा केरिसया
फासेणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! थिर-मउय-णिद्धसुकुमाल छवि फासेणं पण्णत्ता।
एवं जाव अणुत्तरोववाइया।
-जीवा.प.३, सु.२०१ (ई)
२९. वेमाणिय देवाणं विभूसा कामभोगाण य परूवणं
प. सोहम्मीसाणा देवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. वेउव्वियसरीरा य, २. अवेउव्वियसरीराय। १. तत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरा ते हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा जाव पडिरूवा। २. तत्थ णंजे से अवेउव्वियसरीरा तेणं आभरणवसणरहिया पगइत्था विभूसाएपण्णत्ता।
प. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवीओ केरिसयाओ
विभूसाएपण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! दुविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. वेउब्वियसरीराओ य, २. अवेउव्वियसरीराओ य। १. तत्थ णं जाओ वेउब्वियसरीराओ ताओ सुवण्णसद्दालाओ सुवण्णसद्दालाई वत्थाई पवर परिहियाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ सिंगारागारचारुवेसाओ संगय जाव पासाइओ जाव पडिरूवाओ।
उ. गौतम ! वे देव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. वैक्रियशरीर वाले, २. अवैक्रियशरीर वाले। १. उनमें जो वैक्रियशरीर (उत्तरवैक्रिय) वाले हैं वे हारादि से सुशोभित वक्षस्थल वाले यावत् दसों दिशाओं को उद्योतित करने वाले प्रभासित करने वाले यावत् प्रतिरूप हैं। २. जो अवैक्रियशरीर (भवधारणीयशरीर) वाले हैं वे आभरण और वस्त्रों से रहित और स्वाभाविक विभूषा से
सम्पन्न कहे गए हैं। प्र. भंते ! सौधर्म ईशान कल्पों की देवियां कैसी विभूषा वाली कही
गई हैं? उ. गौतम ! वे दो प्रकार की कही गई हैं, यथा
१. वैक्रियशरीर वाली, २. अवैक्रियशरीर (भवधारणीयशरीर) वाली, १. इनमें जो वैक्रियशरीर वाली हैं वे स्वर्ण के नूपुरादि आभूषणों की ध्वनि से युक्त हैं तथा स्वर्ण की बजती किंकिणियों वाले वस्त्रों को तथा उद्भट वेश को पहनी हुई हैं, चन्द्र के समान उनका मुखमण्डल है, चन्द्र के समान विलास वाली हैं, अर्धचन्द्र के समान भाल वाली हैं, वे शृंगार की साक्षात् मूर्ति हैं और सुन्दर परिधान वाली हैं, वे अनुकूल यावत् दर्शनीय (प्रसन्नता पैदा करने वाली) और सौन्दर्य की प्रतीक हैं। २. उनमें जो अविकुर्वित शरीर वाली हैं वे आभूषणों और वस्त्रों से रहित स्वाभाविक सौन्दर्य वाली कही गई हैं। अच्युतकल्प पर्यन्त शेष कल्पों में देवियां नहीं हैं।
२. तत्थ णं जाओ अवेउव्वियसरीराओ ताओ णं आभरणवसणरहियाओ पगइत्थाओ विभूसाए पण्णत्ताओ, सेसेसु देवीओणत्थि जाव अच्चुओ।