________________
१४०४
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। -ठाणं. अ. ६, सु. ५०५ सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ । -ठाणं अ. ७, सु. ५७४ ईसाणस्स णं देविंदरस देवरण्णो सोमस्स महारण्णी सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ।
जमस्स महारण्णो एवं चेव ।
-ठाणं अ. ७, सु. ५७४
ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो बेसमणस्स महारण्णो अट्ठ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। - ठाणं अ. ८, सु. ६१२ २५. कप्पविमाणेसु देविंदेहिं दिव्वाई भोगाई भुंजण परूषणं
प. जाहे णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया दिव्वाइं भोग भोगाई भुंजिकामे भवइ से कहमिदाणिं पकरेइ ?
उ. गोयमा ! ताहे चेव णं से सक्के देविंदे देवराया एवं महं नेमिपडिरूवगं विउब्वइ एवं जोयणस्यसहस्स आयामविवसंभेणं तिणि जोयणसयसहस्साई सोलस य जोयणसहस्साई दो य सयाई सत्तावीसाहियाई कोस तियं अट्ठावीसाहियं धणुसयं तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलं च किंचि विसेसाहियं परक्खिवेणं,
"
तस्स णं नेमिपडिरूवगस्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते जाव मणीणं फासो ।
तस्स णं नेमिपडिरूयगस्स बहुमज्झदेसभागे, तत्व णं महं एग पासाववडेंसगं विउव्य, पंच जोयणसवाई उड्ढ उच्चत्तेणं अड्ढाइजाई जोयणसयाई विक्खभेणं । अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ जाव पडिरूवे ।
तस्स णं पासायवडेंसगस्स उल्लोए पउमलया भित्तिचित्ते जाब पडिरूये।
तस्स णं पासायवडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव मणीणं फासो ।
मणिपेढिया अट्ठजोयणिया जहा बेमाणियाणं।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं महं एगे देवसयणिज्जे विउव्वइ सयणिज्ज बण्णओ जाव पडिये।
तत्य णं से सके देविदे देवराया अट्ठहि अग्गमहिसीहि सपरिवाराहिं दोहि य अणिएहिं १ नट्टाणिएण य २. गंधव्वाणिएण य सद्धिं महयाहयनट्ट जाव दिव्वाइं भोगभोगाई भुजमाणे विहरद्द।
प. जाहे णं भते । ईसाणे देविंदे देवराया दिव्याई भोगभोगाई भुजिउकामे भवइ, ते कहमियाणि पकरेड ?
उ. गोयमा ! जहा सके तहा ईसाणे वि निरवसेसं
द्रव्यानुयोग - (२)
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज की छ अग्रमहिषियाँ कही गई हैं।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वरुण महाराज की सात अग्रमहिषियाँ कही गई हैं।
देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल सोम महाराज की सात अग्रमहिषियाँ कही गई हैं।
इसी प्रकार लोकपाल यम महाराज की भी सात अग्रमहिषियाँ कही गई हैं।
देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल भ्रमण महाराज की आठ अग्रमहिषियों कही गई हैं।
२५. कल्प विमानों में देवेन्द्रों द्वारा दिव्य भोगों के भोगने का
प्ररूपण
प्र. भंते! जब देवेन्द्र देवराज शक्र दिव्य भोगोपभोगों के भोगने का इच्छुक होता है, तब उस समय वह क्या करता है ? उ. गौतम ! उस समय देवेन्द्र देवराज शक्र एक महान् नेमिप्रतिरूपक (चक्र के सदृश गोलाकार स्थान) की विकुर्वणा करता है, जो लम्बाई-चौड़ाई में एक लाख योजन होता है, उसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन, तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल होती है।
उस नेमिप्रतिरूपक (चक्र के समान गोलाकार उस स्थान ) के ऊपर अत्यन्त समतल एवं रमणीय भूभाग कहा गया है, उसका वर्णन मणियों के स्पर्श पर्यन्त करना चाहिए।
उस नेमिप्रतिरूपक के ठीक मध्यभाग में एक महान् प्रासादावतंसक की विकुर्वणा करता है, जिसकी ऊँचाई पाँच योजन की और लम्बाई-चौड़ाई ढाई सौ योजन की है।
वह प्रासाद अभ्युद्गत अत्यन्त ऊँचा है इत्यादि वर्णन दर्शनीय एवं प्रतिरूप पर्यन्त करना चाहिए।
उस प्रासादावतंसक का उपरितल भाग पद्मलता आदि के चित्रों से चित्रित यावत् प्रतिरूप है।
उस प्रासादावतंसक के भीतर का भूभाग अत्यन्त सम और रमणीय कहा गया है, इत्यादि वर्णन मणियों के स्पर्श पर्यन्त करना चाहिए।
वहाँ पर वैमानिकों की मणिपीठिका के समान आठ योजन लम्बी-चौड़ी मणिपीठिका है,
उस मणिपीटिका के ऊपर एक बड़ी देवशैय्या की विकुर्वणा करता है। उस देवशैय्या का वर्णन प्रतिरूप है पर्यन्त करना चाहिए।
वहाँ देवेन्द्र देवराज शक्र सपरिवार आठ अग्रमहिषियों तथा नाट्यानीक और गंधर्वानीक इन दो अनीकों (सैन्यों ) मंडलियों के साथ, जोर-जोर से बजाए जा रहे वाद्यों आदि के साथ दिव्य भोगोपभोगों का उपभोग करता हुआ रहता है।
प्र. भंते ! जब देवेन्द्र देवराज ईशान दिव्य भोगोपभोगों के उपभोग करने का इच्छुक होता है तब उस समय वह क्या करता है ? उ. गौतम ! जिस प्रकार शक्र के लिए कहा है उसी प्रकार समग्र कथन ईशानेन्द्र के लिए भी करना चाहिए।