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१३५४ ३. एगे बलसंपण्णे वि,जयसंपण्णे वि, ४. एगेणो बलसंपण्णे,णो जयसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. बलसंपण्णे णाममेगे,णो जयसंपण्णे, २. जयसंपण्णे णाममेगे,णो बलसंपण्णे, ३. एगे बलसंपण्णे वि,जयसंपण्णे वि,
४. एगे णो बलसपण्णे,णो जयसंपण्णे। (१०) चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता,तं जहा
१. रूवसंपण्णे णाममेगे,णो जयसंपण्णे, २. जयसंपण्णे णाममेगे, नो रूवसंपण्णे, ३. एगे रूवसंपण्णे वि,जयसंपण्णे वि, ४. एगेणो रूवसंपण्णे,णो जयसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रूवसंपण्णे णाममेगे, णो जयसंपण्णे, २. जयसंपण्णे णाममेगे, णो रूवसंपण्णे, ३. एगे रूवसंपण्णे वि,जयसंपण्णे वि, ४. एगे णो रूवसंपण्णे,णो जयसंपण्णे।
-ठाणं. अ.४, उ.३, सु. ३२८ ७३. हय दिळंतेण जुत्ताजुत्ताणं पुरिसाणं चउभंग परूवणं
द्रव्यानुयोग-(२) ३. कुछ घोड़े बल-सम्पन्न भी होते हैं और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न बल-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न होते हैं, जय-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष जय-सम्पन्न होते हैं, बल-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न भी होते हैं और जय-सम्पन्न भी होते हैं,
४. कुछ पुरुष न बल-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न होते हैं। (१०) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ घोड़े रूप-सम्पन्न होते हैं, जय-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ घोड़े जय-सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ घोड़े रूप-सम्पन्न भी होते हैं और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न रूप-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते हैं, जय-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष जय-सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न भी होते हैं और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न रूप-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न होते हैं।
(१) चत्तारि हया पण्णत्ता,तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुत्ते, २. जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, ३. अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, ४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुत्ते, २. जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, ३. अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, ४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते। (२) चत्तारि हया पण्णत्ता,तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणए, २. जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणए, ३. अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणए, ४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणए। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणए, २. जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणए, ३. अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणए, ४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणए। (३) चत्तारि हया पण्णत्ता,तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, २. जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे,
७३. अश्व के दृष्टान्त द्वारा युक्तायुक्त पुरुषों के चतुर्भगों का
प्ररूपण(१) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े युक्त होकर युक्त होते हैं, २. कुछ घोड़े युक्त होकर भी अयुक्त होते हैं, ३. कुछ घोड़े अयुक्त होकर भी युक्त होते हैं, ४. कुछ घोड़े अयुक्त होकर अयुक्त होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युक्त होकर युक्त होते हैं, २. कुछ पुरुष युक्त होकर भी अयुक्त होते हैं, ३. कुछ पुरुष अयुक्त होकर भी युक्त होते हैं, ४. कुछ पुरुष अयुक्त होकर अयुक्त होते हैं। (२) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े युक्त होकर युक्त परिणत होते हैं, २. कुछ घोड़े युक्त होकर अयुक्त परिणत होते हैं, ३. कुछ घोड़े अयुक्त होकर युक्त परिणत होते हैं, ४. कुछ घोड़े अयुक्त होकर अयुक्त परिणत होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युक्त होकर युक्त परिणत होते हैं, २. कुछ पुरुष युक्त होकर अयुक्त परिणत होते हैं, ३. कुछ पुरुष अयुक्त होकर युक्त परिणत होते हैं, ४. कुछ पुरुष अयुक्त होकर अयुक्त परिणत होते हैं। (३) घोड़े चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ घोड़े युक्त होकर युक्त रूप वाले होते हैं, २. कुछ घोड़े युक्त होकर अयुक्त रूप वाले होते हैं,