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देव गति अध्ययन
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काल, महाकाल, भीम, महाभीम आदि दो-दो इन्द्र आधिपत्य करते हैं। ज्योतिष्क देवों पर चन्द्र एवं सूर्य ये दो देव (इन्द्र) आधिपत्य करते हुए विचरण करते हैं। व्यन्तर एवं ज्योतिष्क के लोकपाल नहीं हैं। वैमानिकों के सौधर्म एवं ईशान कल्प में शक्र एवं ईशान इन्द्रों के सहित सोम, यम आदि 90 देव आधिपत्य करते हुए विचरण करते हैं जिनमें दो इन्द्र एवं शेष चार-चार लोकपाल हैं। अन्य कल्पों में भी उन-उन कल्पों के इन्द्रों सहित सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण देव आधिपत्य करते हुए विचरण करते हैं।
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ऐसा प्रतीत होता है कि सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण देवों का कार्य भिन्न-भिन्न है। इनके पास भिन्न-भिन्न मन्त्रालय है जिनकी देख-रेख ये देव करते हैं तथा इन्द्र इन पर नियन्त्रण रखता है एवं अन्य कार्य भी करता है। ये सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण लोकपाल कहे गए हैं। व्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवों के लोकपाल नहीं होते हैं, भवनपतियों एवं वैमानिकों के ही लोकपाल कहे गए हैं।
इन्द्रों एवं लोकपालों की अग्रमहिषियों एवं देवियों का प्रस्तुत अध्ययन में विस्तार से वर्णन उपलब्ध है। भवनपति में असुरेन्द्र चमर की पाँच अग्रमहिषियाँ कही गई हैं - १. काली, २. राजी, ३. रजनी, ४. विद्युत एवं ५. मेधा । इनमें प्रत्येक अग्रमहिषी का आठ-आठ हजार देवियों का परिवार कहा गया है। चमर के लोकपाल सोम की चार अग्रमहिषियों कही गई हैं - १. कनका, २. कनकलता, ३. चित्रगुप्ता एवं ४. वसुन्धरा । इनमें प्रत्येक देवी का एक-एक हजार देवियों का परिवार है। इसी प्रकार चमर के लोकपाल यम, वरुण एवं वैश्रमण की कनकादि चार अग्रमहिषियों एवं उनका देवी-परिवार कहा गया है। वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बली की पाँच अग्रमहिषियाँ हैं - १. शुम्भा, २. निशुम्भा, ३. रम्भा, ४. निरम्भा एवं ५. मदना । इनका प्रत्येक का आठ-आठ हजार देवियों का परिवार है। बलीन्द्र के लोकपाल सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण में प्रत्येक की चार-चार अग्रमहिषियाँ हैं१. मेनका, २. सुभद्रा, ३. विजया एवं ४. अशनी। इनमें प्रत्येक का एक-एक हजार देवियों का परिवार है। नागकुमारेन्द्र धरण की अला, मक्का आदि छह अग्रमहिषियाँ हैं। इनमें से प्रत्येक का छह-छह हजार देवियों का परिवार है। धरणेन्द्र के कालवाल आदि चारों लोकपालों में प्रत्येक की अशोका आदि चार-चार अग्रमहिषियाँ हैं। प्रत्येक अग्रमहिषी का एक-एक हजार देवियों का परिवार है। भूतानन्द इन्द्र की रूपा, रूपांशा आदि छह अग्रमहिषियाँ हैं तथा प्रत्येक छह-छह हजार देवियों का परिवार है। भूतानन्द के लोकपालों की सुनन्दा आदि चार-चार अग्रमहिषियाँ हैं तथा प्रत्येक का एक-एक हजार देवियों का परिवार है । भवनपति के सुवर्णकुमार आदि अन्य प्रकारों में भी दो-दो इन्द्र हैं। एक दक्षिण दिशा का तथा दूसरा उत्तर दिशा का है। दक्षिण दिशावर्ती इन इन्द्रों की अग्रमहिषियों, लोकपालों एवं देवियों का वर्णन धरणेन्द्र के समान तथा उत्तर दिशावर्ती इन्द्रों के लोकपालों, अग्रमहिषियों एवं देवियों का वर्णन भूतानन्द इन्द्र के समान है। इनके लोकपालों के परिवार का वर्णन चमरेन्द्र के लोकपालों के समान है।
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व्यन्तदेवों में भी पिशाचादि भेदों में प्रत्येक के दो-दो इन्द्र हैं। काल एवं महाकाल ये दो पिशाचेन्द्र पिशाचराज हैं। सुरूप एवं प्रतिरूप ये दो भूतेन्द्र भूतराज हैं। यक्षेन्द्र यक्षराज के दो प्रकार हैं- १. पूर्णभद्र एवं २. माणिभद्र। दो राक्षसेन्द्र हैं - १. भीम एवं २. महाभीम। इसी प्रकार किन्नरेन्द्र एवं किम्पुरुषेन्द्र, सत्पुरुषेन्द्र एवं महापुरुषेन्द्र, अतिकायेन्द्र एवं महाकायेन्द्र तथा गीतरतीन्द्र एवं गीतयश इन्द्र शेष व्यन्तर देवों के दो-दो इन्द्र है। इस अध्ययन में इन इन्द्रों की अग्रमहिषियों, उनके परिवार, लोकपालों एवं उनके परिवार का भी वर्णन हुआ है तथा जहाँ चमरेन्द्र के परिवार से सादृश्य है उसका संकेत कर दिया गया है।
ज्योतिष्क देवों में दो इन्द्र हैं- सूर्य एवं चन्द्र। इन दोनों की चार-चार अग्रमहिषियाँ हैं। अंगारक (मंगल) नामक महाग्रह, व्यालक ग्रह एवं ८८ महाग्रहों में भी प्रत्येक की चार-चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं। जिवाभिगम सूत्र में इनके परिवार के सम्बन्ध में विस्तृत उल्लेख है।
वैमानिकों में पहले एवं दूसरे देवलोक तक ही देवियाँ होती हैं, उसके आगे नहीं। पहले देवलोक के इन्द्र देवराज शक्र एवं दूसरे देवलोक के इन्द्र देवराज ईशान की आठ-आठ अग्रमहिषियाँ कही गई हैं। इनमें प्रत्येक अग्रमहिषी के सोलह-सोलह हजार देवियों का परिवार कहा गया है। शक्र एवं ईशान के सोम, यम आदि लोकपालों की चार-चार अग्रमहिषियाँ एवं उनका एक-एक हजार का देवी परिवार कहा गया है। स्थानांग सूत्र के अनुसार इनकी अग्रमहिषियों की संख्या भिन्न है, जिसका उल्लेख इस अध्ययन में हुआ है।
देवियाँ विकुर्वणा करने में समर्थ होती हैं, अतः वे अपनी पृथक्-पृथक् योग्यता के अनुसार विकुर्वणा करके देवियों की संख्या में अभिवृद्धि कर देती हैं, यथा शक्र की अग्रमहिषियों की सोलह हजार देवियों में से प्रत्येक सोलह-सोलह हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती हैं जबकि भवनपति देवों की देवियों इतनी विकुर्वणा नहीं कर पाती। समस्त देवेन्द्र एवं लोकपाल दिव्य भोगों को मैथुनिक निमित्त से भोगने में समर्थ नहीं हैं, किन्तु दिव्य भोग्य भोगों का मात्र परिवार की ऋद्धि से उपभोग करने में समर्थ है। देवेन्द्रों एवं लोकपालों की देवियों के अन्तःपुर को त्रुटित कहते हैं।
इन्द्रों एवं लोकपालों की राजधानियों का नामकरण उनके अपने नामों के अनुसार हुआ है। तदनुसार चमरेन्द्र की राजधानी चमरचंचा, बलीन्द्र की बलिचंचा, धरणेन्द्र की धरणा आदि हैं। लोकपालों में सोम की राजधानी सोमा, यम की यमा आदि हैं। इसी प्रकार अन्य इन्द्रों एवं लोकपालों की राजधानियों का नाम भी उनके नामों के अनुसार है। सिंहासनों के नाम भी प्रायः उनके नामों से साम्य रखते हैं। चमरेन्द्र के सिंहासन का नाम चमर सिंहासन एवं धरणेन्द्र के सिंहासन का नाम धरण सिंहासन इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। इन्द्रों की सभा को सुधर्मा सभा कहा गया है। प्रत्येक इन्द्र अपनी सुधर्मा सभा में अपने सिंहासन पर बैठकर दिव्य भोगों को मैथुनिक निमित्त से भोगने में समर्थ नहीं होता किन्तु वाद्य घोष आदि पूर्वक दिव्य भोगों का अनुभव करता है। ऐसा माना गया है कि सुधर्मा सभा में माणवक चैत्यस्तम्भ में जिनेश्वर का पूजा स्थान है, जिसकी देव - देवियाँ अर्चना, वन्दना आदि करते हैं।