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८. देवेन्द्रों के सामानिक देवों की संख्या
देवेन्द्र देवराज शक्र के चौरासी हजार सामानिक देव कहे गए हैं।
देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र के सत्तर (७०) हजार सामानिक देव कहे गए हैं। देवेन्द्र देवराज सहस्रार के तीस हजार सामानिक देव कहे गए है।
देवेन्द्र देवराज प्राणत के बीस हजार सामानिक देव कहे गए हैं।
देवेन्द्र देवराज ब्रह्म के साठ हजार सामानिक देव कहे गए हैं।
चमरेंद्र के चौसठ हजार सामानिक देव कहे गए हैं।
वैरोचनेन्द्र बली के साठ हजार सामानिक देव कहे गए हैं।
देव गति अध्ययन ८. देविंदाणं सामाणिय देव संखा
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो चउरासीई सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-सम. सम.८४, सु.६ माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सत्तर सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-सम.सम.७०,सु.५ सहस्सारस्स णं देविंदस्स देवरण्णो तीसं सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-सम.सम.३०,सु.५ पाणयस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वीसं सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-सम. सम.२०, सु.४ बंभस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सहिँ सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-सम. सम.६०, सु.५ चमरस्स णं रन्नो चउसद्धिं सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-सम.सम.६४,सु.३ बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स सटुिं सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ।
-सम. सम.६०,सु.४ अट्ठ कण्हराईणं ओवासंतरेसु लोगतिय विमाणं देवाण य परूवणंएयासि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ठ लोगंतिय विमाणा पण्णत्ता,तं जहा१. अच्ची ,
२. अच्चिमाली, ३. वइरोयणे, ४. पभंकरे, ५. चंदाभे,
६. सूराभे, ७. सुपइट्ठाभे, ८. अग्गिच्चाभे। एएसु णं अट्ठसु लोगंतियविमाणेसु अट्ठविहा लोगंतिया देवा पण्णत्ता,तं जहा१-२. सारस्सयमाइच्चा, ३. वण्ही ,
४. वरुणा य, ५. गद्दतोया य, ६. तुसिया, ७. अव्वाबाहा,
८. अग्गिच्चा, चेव बोद्धव्वा ।।
-ठाणं. अ.८,सु.६२५ १०. सारस्सयाइ देवाणं संखा परिवारो य
सारस्सयमाइच्चाणं देवाणं सत्त देवा, सत्तदेवसया पण्णत्ता,
९. आठ कृष्णराजियों के अवकाशान्तरों में लोकान्तिक विमान
और देवों की प्ररूपणाइन आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान कहे गए हैं, यथा१. अर्चि,
२. अर्चिमाली, ३. वैरोचन,
४. प्रभंकर, ५. चन्द्राभ,
६. सूराभ, ७. सुप्रतिष्ठाभ, ८. अग्न्य र्चाभ। इन आठ लोकान्तिक विमानों में आठ प्रकार के लोकान्तिक देव कहे गए हैं,यथा१. सारस्वत,
२. आदित्य, ३. वह्नि,
४. वरुण, ५. गर्दतोय,
६. तुषित, ७. अव्याबाध,
८. अग्न्यर्च।
गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्त देवा, सत्त देवसहस्सा पण्णत्ता।
-ठाणं.अ.७,सु.५७६ ११. भवणवासि कप्पोववन्नग वेमाणियाण य तायत्तीसग देवाणं
परूवणंतेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नगरे होत्था, वण्णओ दूइपलासए चेइए, सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
१०. सारस्वतादि देवों की संख्या और परिवार
सारस्वत और आदित्य जाति के (मुख्य) देव सात हैं और उनके सात सौ देवों का परिवार है, गर्दतोय और तुषित जाति के (मुख्य) देव सात हैं और उनके सात
हजार देवों का परिवार है। ११. भवनवासी और कल्पोपपन्नक वैमानिकों के त्रायस्त्रिंशक देवों
का प्ररूपणउस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। उसकी समृद्धि का वर्णन (औपपातिक सूत्र के अनुसार) करना चाहिए। वहाँ धुतिपलाश नामक उधान था। (एक बार) वहाँ श्रमण भगवान् महावीर का समवसरण हुआ यावत् परिषद् आई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति (गौतम) नामक अनगार यावत् ऊपर की ओर बाहें करके यावत विचरण करते थे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूइ नाम अणगारे जाव उड्ढंजाणू जाव विहरइ।