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उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ
"सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो तायत्तीसगा देवा,
तायत्तीसगा देवा?" उ. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवे
दीवे भारहे वासे वालाए नामं सन्निवेसे होत्था, वण्णओ।
द्रव्यानुयोग-(२) उ. हाँ, गौतम ! हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि
'देवेन्द्र देवराज शक्र के त्रायस्त्रिंशक देव-त्रायस्त्रिंशक देव हैं ?
तत्थ णं वालाए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा जहा चमरस्स जाव विहरंति, तए णं ते तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा पुव्विं पि पच्छा वि उग्गा उग्गविहारी संविग्गा संविग्गविहारी बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेंति, झूसित्ता सहिँ भत्ताई अणसणाए छेदेंति, छेदित्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा जाव उववन्ना। जप्पभितिं च णं भंते ! "वालागा" तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा सेसं जहा चमरस्स जाव अन्ने उववज्जति।
प. अत्थि णं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो तायत्तीसगा
देवा,तायत्तीसगा देवा? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि।
एवं जहा सक्कस्स।
उ. गौतम ! उस काल और उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप
के भरत क्षेत्र में बालाक नामक सन्निवेश था, उसका वर्णन करना चाहिए। उस बालाक सन्निवेश में चमर के त्रायस्त्रिंशकों में उत्पन्न होने वालों के समान परस्पर सहायक तेतीस श्रमणोपासक गृहपति रहते थे। वे तेतीस परस्पर सहायक श्रमणोपासक गृहपति पहले भी और पीछे भी उग्र, उग्रविहारी एवं संविग्न संविग्नविहारी होकर बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन कर मासिक संलेखना से शरीर को कृश किया। कृश करके अनशन द्वारा साठ भक्तों का छेदन किया, छेदन करके कालमास में प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्वक काल करके यावत् (शक्र के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में) उत्पन्न हुए। भंते ! जब से वे बालाकवासी परस्पर सहायक तेतीस श्रमणोपासक गृहपति (शक्र के त्रायस्त्रिंशकों के रूप में) उत्पन्न हुए इत्यादि समग्र वर्णन चमर के त्रायस्त्रिंशकों के समान अन्य
उत्पन्न होते हैं पर्यन्त करना चाहिए। प्र. भंते ! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान के त्रायस्त्रिंशक देव
त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? ' उ. हाँ, गौतम ! हैं।
जैसे शक के त्रायस्त्रिंशक देवों का वर्णन किया वैसे ही यहाँ भी करना चाहिए। विशेष-(ये तेतीस श्रमणोपासक) चम्पानगरी के निवासी थे यावत् (ईशानेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में) उत्पन्न हुए। जब से ये चम्पानगरी निवासी परस्पर सहायक तेतीस श्रमणोपासक त्रायस्त्रिंशक देव बने इत्यादि समग्र वर्णन अन्य
उत्पन्न होते हैं पर्यन्त पूर्ववत् करना चाहिए। प्र. भंते ! क्या देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार के त्रायस्त्रिंशक देव
त्रायस्त्रिंशक देव हैं? उ. हाँ, गौतम ! हैं।
भंते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? इत्यादि समग्र वर्णन धरणेन्द्र के समान करना चाहिए। इसी प्रकार प्राणत (देवेन्द्र) पर्यन्त के त्रायस्त्रिंशक देवों के लिए जानना चाहिए। इसी प्रकार अच्युतेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देवों के लिए भी अन्य
उत्पन्न होते हैं पर्यन्त कहना चाहिए। १२. असुरकुमारों का ऊर्ध्वगमन सामर्थ्य प्ररूपणप्र. भंते ! कितना काल व्यतीत होने पर असुरकुमार देव ऊर्ध्व
गमन करते हैं यावत् सौधर्मकल्प पर्यन्त ऊपर गये हैं, जाते हैं और जाएँगे?
णवर-चंपाए नगरीए जाव उववन्ना।
जप्पभितिं च णं चंपिच्चा तायत्तीसंगाहावई समणोवासगा सहाया-सेसंतं चेव जाव अन्ने उववज्जति।
प. अत्थि णं भंते ! सणंकुमारस्स देविंस्स देवरण्णो
तायत्तीसगा देवा,तायत्तीसगा देवा? उ. हंता,गोयमा ! अत्थि।
से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ-'जहाधरणस्स तहेव।'
एवं जाव पाणयस्स।
एवं अच्चुयस्स जाव अन्ने उववज्जंति।
-विया. स.१०, उ.४, सु.१-१४ १२. असुरकुमाराणं उड्ढगमण सामत्थ परूवणंप. केवइ कालस्स णं भंते ! असुरकुमारा देवा उड्ढे उप्पयंति
जाव सोहम्मकप्पं गया य, गमिस्संति य?