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[ मनुष्य गति अध्ययन
अनृद्धिमन्त मनुष्य छह प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. हैमवत क्षेत्रोत्पन्न, २. हैरण्यवत क्षेत्रोत्पन्न, ३. हरिवर्षोत्पन्न,
४. रम्यक्वर्षोत्पन्न, ५. कुरुवर्षात्पन्न,
६. अंतर्दीपोत्पन्न।
छव्विहा अणिड्ढीमंता मणुस्सा पण्णत्ता,तं जहा१. हेमवयगा,
२. हेरण्णवयगा, ३. हरिवासगा,
४. रम्मगवासगा, ५. कुरुवासिणो, ६. अंतरदीवगा।
-ठाणं.अ.६,सु.४९१ ९९. णेउणिया पुरिसाणं पगारा
णवणेउणिया वत्थू पण्णत्ता,तं जहा१. संखाणे, २. णिमित्ते, ३. काइया, ४. पोराणे, ५. पारिहथिए, ६. परपंडिए, ७. वाई य, ८. भूइकम्मे,
९. तिगिच्छिए।
-ठाणं अ.९,सु.६७९ १००. पुत्ताणं दस पगारा
दस पुत्ता पण्णत्ता,तं जहा१. अत्तए, २. खेत्तए, ३. दिन्नए, ४. विन्नए, ५. ओरसे, ६. मोहरे, ७. सौंडीरे, ८. संवुड्ढे,
९. ओवयाइए, १०. धम्मंतेवासी।
-ठाणं.अ.१०, सु.७६२ १०१. एगोरुय दीव मणुयाणं आयारभाव पडोयाराइ परूवणं-
प. एगोरुयदीवे णं भन्ते! दीवे मणुयाणं केरिसए
आयारभावपडोयारे पण्णते? उ. गोयमा ! ते णं मणुस्सा अणुवमतरसोमचारुरूवा,
भोगुत्तमगयलक्खणा, भोगसस्सिरीया,
९९. नैपुणिक पुरुषों के प्रकार
नैपुणिक वस्तु (पुरुष) नौ प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संख्यान-गणित को जानने वाला, २. नैमित्तक-निमित्त को जानने वाला, ३. कायिक-प्राण तत्वों को जानने वाला, ४. पौराणिक इतिहास को जानने वाला, ५. पारिहस्तिक-स्वभाव से ही समस्त कार्यों में दक्ष, ६. परपण्डित-अनेक शास्त्रों को जानने वाला, ७. वादी-वाद-लब्धि से सम्पन्न, ८. भूतिकर्म-भस्मलेप या डोरा बाँधकर ज्वर आदि की चिकित्सा
करने वाला, ९. चिकित्सा-चिकित्सा करने वाला। १००.पुत्रों के दस प्रकार
पुत्र दस प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. आत्मज-अपने पिता से उत्पन्न। २. क्षेत्रज-नियोग जन्य विधि से उत्पन्न। ३. दत्तक-गोद लिया हुआ। ४. विज्ञक-विद्या-शिष्य। ५. औरस-स्नेहवंश स्वीकृत पुत्र। ६. मौखर-वाक्पटुता के कारण पुत्र रूप में स्वीकृत ७. शौंडीर-पराक्रम के कारण पुत्र रूप में स्वीकृत। ८. संवर्द्धित-पोषित अनाथ पुत्री ९. औपयाचितक-देव आराधना से उत्पन्न पुत्र या सेवक।
१०. धर्मान्तेवासी-धर्म शिष्य। १०१. एकोरुक द्वीप के पुरुषों के आकार-प्रकारादि का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! एकोरुकद्वीप में मनुष्यों का आकार प्रकारादि का
स्वरूप कैसा कहा गया है? उ. गौतम ! वे मनुष्य अनुपम सौम्य और सुन्दर रूप वाले हैं।
उत्तम भोगों के सूचक लक्षणों वाले हैं, भोगजन्य शोभा से युक्त हैं। उनके अंग जन्म से ही श्रेष्ठ और सर्वांग सुन्दर हैं। पांव-सुप्रतिष्ठित सुन्दर और कछुए की तरह उन्नत हैं। पांवों के तलुवे-रक्त कमल के पत्ते के समान मृदु मुलायम और कोमल हैं। चरणों में पर्वत, नगर, समुद्र, मगर, चक्र, चन्द्रमा आदि के चिन्ह हैं। चरणों की अंगुलियां-क्रमशः बड़ी छोटी और मिली हुई हैं। अंगुलियों के नख-उन्नत पतले ताम्रवर्ण की कांति वाले एवं स्निग्ध हैं।
सुजाय सव्वंगसुंदरंगा, सुपइट्ठिय कुम्मचारुचलणा, रत्तुप्पल-पत्तमउय-सुकुमाल-कोमलतला,
नगनगर-सागर-मगर-चक्कंक-वरंक-लक्खणंकिय चलणा, अणुपुव्व सुसंहतंगुलीया, उन्नत तणुतंबणिद्धणखा,