________________
मनुष्य गति अध्ययन
वण्णलावण्णजोयणविलासकलिया,
नंदणवण विवरचारिणीउव्व अच्छेरगपेच्छणिज्जा, पासाईयाओ, दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ।
अच्छराओ
प तासि णं भन्ते ! मणुईणि केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ ?
उ. गौयमा ! चउत्थभत्तस्स आहारट्ठे समुष्यज्जइ ।
- जीवा. पडि. ३, सु. १११/१४
१०३. एगोरुय दीवस्स मणुस्साणं आहारमावासाई परूवणं
प. ते णं भन्ते ! मणुया किमाहारमाहारैति ?
उ. गोयमा ! पुढविपुष्फफलाहारा ते मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो !
"
प. तीसे णं भन्ते ! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! से जहाणामए गुलेइ वा, खंडेइ वा, सक्कराइ वा, मच्छंडियाई वा मिसकदेइ वा पप्पडमोयएइ वा. पुप्फउत्तराइ वा, पउमउत्तराइ वा, अकोसियाइ वा, विजयाइ वा महाविजयाइ वा आयंसोयमाइ या अणोवमाइ वा, चाउरक्के गोखीरे चउठाण परिणए गुडखंडमच्छंडि उवणीए मंदग्गिकडीए वण्णेणं उववेए जाव फासेणं, भवेयारूवे सिया ?
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, तीसे णं पुढवीए एत्तो इट्ठतराए चैव जाब मणामतराए चैव आसाए गं पण्णत्ते ।
प. सिणं भन्ते ! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! से जहानामए चाउरंतचकवट्टिस्स कल्लाणे
पवरभोयणे सयसहस्सनिफन्ने वण्णेणं उबवेए जाव फासेणं उववेए आसाइणिज्जे, आसाइणिज्जे, बीसाइणिज्जे, दीवणिज्जे विहणिज्जे, दप्पणिज्जे, मयणिज्जे सव्विंदियगायपल्हायणिज्जे भवेयारूवे सिया ?
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, तेसि णं पुप्फफलाणं एत्तो इट्ठतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाएणं पण्णत्ते ।
प. ते णं भन्ते ! मणुया तमाहारमाहारित्ता कहिं वसहिं उवेंति ?
उ. गोयमा ! रुक्खगेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो !
प. ते णं भन्ते ! रुक्खा किं संठिया पण्णत्ता ?
उ. गीयमा ! कूडागारसंठिया, पेच्छाघरसठिया, छत्तागारसठिया, झयसंठिया,
यूभसठिया,
१३७५
वे सुन्दर वर्ण, लावण्य यौवन और विलास से युक्त होती है। नंदनवन में विचरण करने वाली अप्सराओं की तरह वे उत्सुकता से दर्शनीय है।
वे स्त्रियाँ मन को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय अभिरूप और प्रतिरूप है।
प्र. भन्ते ! उन स्त्रियों को कितने काल के अन्तर से आहार की अभिलाषा होती है?
उ. गौतम ! चतुर्थभक्त अर्थात् एक दिन छोड़कर दूसरे दिन आहार की इच्छा होती है।
१०३. एकोरुक द्वीप के मनुष्यों के आहार आवास आदि का
प्ररूपण
प्र. भन्ते ! वे मनुष्य किसका आहार करते हैं ?
उ. हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य पृथ्वी, पुष्प और फलों का आहार करने वाले कहे गए हैं।
प्र. भन्ते ! उस पृथ्वी का स्वाद कैसा है ?
उ. गौतम ! जैसे गुड़, खांड, शक्कर, मिश्री, मृणाल कन्द, पर्पटमोदक, पुष्पोत्तर, शक्कर, कमलोत्तर शक्कर अकोशिता, विजया, महाविजया, आदर्शोपमा, अनोपमा अथवा चार बार परिणत एवं चतुःस्थान परिणत गाय का दूध, जौ, गुड, शक्कर, मिश्री मिलाया हुआ मंदाग्नि पर पकाया हुआ तथा शुभवर्ण यावत् शुभस्पर्श से युक्त गोक्षीर जैसा क्या उस पृथ्वी का स्वाद होता है ?
गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उस पृथ्वी का स्वाद इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मनोज्ञतर कहा गया है।
प्र. भन्ते ! उन पुष्पों और फलों का स्वाद कैसा कहा गया है ? उ. गौतम ! जैसे चातुरंतचक्रवर्ती का भोजन जो कल्याणभोजन
के नाम से प्रसिद्ध है और जो लाख गायों के दूध से निष्पन्न है, जो श्रेष्ठ वर्ण से यावत् स्पर्श से युक्त है, आस्वादन के योग्य है, विशेष रूप से आस्वादन योग्य है, जो दीपनीय (जठराग्नि वर्धक) है, वृहणीय (धातुवृद्धिकारक ) है, दर्पणीय (उत्साह आदि बढ़ाने वाला) है, मदनीय ( मस्ती पैदा करने वाला) है और जो समस्त इन्द्रियों को और शरीर को आनन्ददायक होता है क्या ऐसा उन पुष्पों और फलों का स्वाद है ?
गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उन पुष्प फलों का स्वाद उससे भी अधिक इष्टतर यावत् आस्वादनीय कहा गया है।
प्र. भन्ते ! उस आहार का उपभोग करके वे मनुष्य कहाँ निवास करते हैं?
उ. हे आयुष्मन् गौतम ! वे मनुष्य गेहाकार परिणत वृक्षों में निवास करने वाले कहे गए हैं।
प्र. भन्ते ! उन वृक्षों का आकार कैसा कहा गया है ?
उ. हे आयुष्मन् श्रमण ! गौतम ! वे पर्वत के शिखर के आकार के, नाट्यशाला के आकार के, छत्र के आकार के, ध्वजा