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द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में सिंह, व्याघ्र, भेड़िया, चीता,
रीछ, गेंडा, तरक्ष (तेंदुआ), बिल्ली, सियाल, कुत्ता, सूअर, लोमड़ी, खरगोश, चित्तल, मृग और चिल्लक (पशु विशेष) हैं?
प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे सीहाइ वा, वग्घाइ वा,
विगाइ वा, दीवियाइ वा, अच्छाइ वा, परस्साइ वा, तरच्छाइ वा, विडालाइ वा, सियालाइ वा, सुणगाइ वा, कोलसुणगाइ वा, कोकंतियाइ वा, ससगाइ वा, चित्तला
इवा, चिल्ललगाइ वा? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि, नो चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसिं
वा मणुयाणं किंचि आबाहं वा, पबाहं वा, उप्पायति वा, छविच्छेदं वा करेंति, पगइभद्दगा णं ते सावयगणा
पण्णत्ता समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे सालीइ वा, वीहीइ वा,
गोधूमाइ वा,जवाइवा, तिलाइ वा, इक्खुत्ति वा? उ. हंता, गोयमा ! अस्थि, नो चेव णं तेसिं मणुयाणं
परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति। प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे गत्ताइ वा, दरीइ वा,
घंसाइ वा, भिगू इ वा, उवाए इ वा, विसमे इ वा, विज्जले इवा, धूली इवा, रेणू इवा, पके इवा, चलणी इवा?
उ. हाँ, गौतम ! वे हैं, परन्तु वे परस्पर या वहाँ के मनुष्यों को
पीड़ा या बाधा नहीं देते हैं और उनके अवयवों का छेदन नहीं करते हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे जंगली पशु स्वभाव से
भद्र प्रकृति वाले कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में शालि, ब्रीहि, गेहूँ, जौ, तिल
और इक्षु होते हैं? उ. हाँ, गौतम ! होते हैं, किन्तु उन पुरुषों के उपभोग में नहीं
आते। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में गड्ढे, बिल, दरारें, भृगु
(पर्वतशिखर) आदि ऊँचे स्थान, अवपात (गिरने की संभावना वाले स्थान) विषमस्थान, दलदल, धूल, रज, पंक-कीचड़ कादव और चलनी (पांव में चिपकने वाला
कीचड़) आदि हैं ? उ. गौतम ! वहाँ ये गड्ढे आदि नहीं हैं, हे आष्युमन् श्रमण
एकोरुक द्वीप का भू-भाग बहुत समतल और रमणीय कहा
गया है। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में स्थाणू (लूंठ) काँटे, हीरक
(तीखी लकड़ी का टुकड़ा) कंकर तृण का कचरा, पत्तों का कचरा, अशूचि, सडांध, दुर्गन्ध और अपवित्र पदार्थ है ?
उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, एगोरुय दीवे णं दीवे
बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, समणाउसो!
प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे खाणूइ वा, कंटएइ वा,
हीरएइ वा, सक्कराइ वा, तणकयवराइ वा, पत्तकयवरा इ वा, असुई इ वा, पूतियाइ वा,
दुब्भिगंधाइ वा, अचोक्खाइ वा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगय-खाणु
कंटक-हीर-सक्कर-तणकय-वर-पत्तकय वर-असुइपूइ-दुब्भिगंधमचोक्खे णं एगोरुयदीवे पण्णत्ते,
समणाउसो! प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे दंसाइ वा, मसगाइ
वा, पिसुयाइ वा, जूयाइ वा, लिक्खाइ वा, ढंकुणाइ
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण एकोरुक
द्वीप स्थाणू, कंटक, हीरक, कंकर तृणकचरा, पत्र कचरा, अशुचि सड़ांध दुर्गन्ध और अपवित्र पदार्थ से रहित कहा
गया है। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में डांस, मच्छर, पिस्सू, जूं, लीख,
माकण (खटमल) आदि हैं ?
वा?
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, हे आयुष्मन् श्रमण एकोरुक
द्वीप डांस, मच्छर, पिस्सू, जूं, लीख, खटमल से रहित कहा
गया है। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में सर्प, अजगर और महोरग हैं ?
उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगय-दंस-मसगपिसुय-जूय-लिक्ख-ढंकुणे णं एगोरुयदीवे पण्णत्ते,
समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे अहीइ वा, अयगराइ वा,
महोरगाइ वा? उ. हता, गोयमा ! अत्थि, णो चेव णं ते अन्नमन्नस्स तेसिं
वा मणुयाणं किंचि आबाहं वा, पबाहं वा, छविच्छेयं वा करेंति। पगइभद्दगा णं ते बियालगणा पण्णत्ता,
समणाउसो! प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे गहदंडाइ वा, गहमुसलाइ
वा, गहगज्जियाइ वा, गहजुद्धाइ वा,गहसंघाडगाइ वा, गहअवसव्वाइ वा, अब्भाइ वा, अब्भरुक्खाइ वा,
उ. हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! होते हैं, परन्तु परस्पर या वहाँ
के लोगों को बाधा-पीड़ा नहीं पहुँचाते हैं और काटते भी नहीं हैं, वे सर्पादि स्वभाव से ही भद्रिक कहे गए हैं।
प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में (अनिष्टसूचक) दण्डाकार
ग्रहसमुदाय, मूसलाकार ग्रहसमुदाय, ग्रहों के संचार की ध्वनि, ग्रहयुद्ध (दो ग्रहों का एक स्थान पर होना) ग्रहसंघाटक (त्रिकोणाकार ग्रह-समुदाय ग्रहापसव ग्रहों का वक्री होना), मेघों का उत्पन्न होना, वृक्षकार मेघों का होना,