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मनुष्य गति अध्ययन
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उ. गौतम ! ये सब वहाँ नहीं हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य
वैरभाव से रहित कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में मित्र, वयस, प्रेमी, सखा,
सुहृदय, महाभाग और सांगतिक (साथी) है?
उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगतवेराणुबंधा णं ते
मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुय दीवे मित्ताइ वा, वयंसाइ वा,
घडियाइ वा, सहीइ वा, सुहियाइ वा, महाभागाइ वा,
संगइयाइवा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगयपेम्मा ते मणुयगणा
पण्णत्ता, समणाउसो! प. अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे आबाहाइ वा, विवाहाइ
वा, जण्णाइ वा, सड्ढाइ वा, थालिपाकाइ वा,चोलोवणयणाइ वा, सीमंतुण्णयणाई वा,
पिइपिंडनिवेयणाइ वा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगय-आबाह
विवाह-जण्ण-सड्ढ-थालिपाग-चोलोवणयण-सीमंतुण्ण यण पिइपिंडनिवेदणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता,
समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे इंदमहाइ वा, खंदमहाइ
वा, रुद्दमहाइ वा, सिवमहाइ वा, वेसमणमहाइ वा, मुगुंदमहाइ वा, णागमहाइ वा, जक्खमहाइ वा, भूयमहाइ वा, कूवमहाइ वा, तलाय-णईमहा इ वा, दहमहाइ घा, पच्चयमहाइवा, रुक्खरोवणमहाइ वा,
चेइयमहाइ वा,थूब्भमहा इवा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगय महमहिमा णं ते
मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे णडपेच्छाइ वा, णट्टपेच्छाइ
वा, जल्लपेच्छाइ वा, मल्लपेच्छाइ वा, मुठ्ठियपेच्छाइ वा, विडंवगपेच्छाइ वा, कहगपेच्छाइ वा, पवगपेच्छाइ वा, अक्खायगपेच्छाइ वा, लासगपेच्छाइ वा, लंखपेच्छाइ वा, मंखपेच्छाइ वा, तूणइल्लपेच्छाइ वा, तुंबवीणापेच्छाइ वा, कावडपेच्छाइ वा, मागहपेच्छाइ वा?
उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं ! हे आयुष्मन् श्रमण ! वे
मनुष्य प्रेमबन्धन रहित कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में आबाह (सगाई) विवाह
(परिणय) यज्ञ (श्राद्ध) स्थालीपाक (वर-वधू भोज) चोलोपनयन (मुंडन संस्कार) सीमन्तोन्नयन (उपनयन
संस्कार) पितरों को पिण्डदान आदि के संस्कार हैं? उ. गौतम ! ये संस्कार वहाँ नहीं हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे
मनुष्य आबाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, भोज, चोलोपनयन, सीमन्तोन्नयन, पितृ-पिण्डदान आदि व्यवहार से रहित कहे
गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में इन्द्रमहोत्सव, स्कंद (कार्तिकय)
महोत्सव, रुद्र (यक्षाधिपति) महोत्सव, शिवमहोत्सव, वैश्रमण (कुबेर) महोत्सव, मुकुन्द (कृष्ण) महोत्सव, नाग, यक्ष, भूत, कूप, तालाब, नदी, द्रह (कुण्ड) पर्वत, वृक्षारोपण, चैत्य और स्तूप महोत्सव होते हैं?
उ. गोयमा ! णो इणढे समठे, ववगयकोउहल्ला णं ते
मणुयगणा पण्णत्ता,समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुय दीवे सगडाइ वा, रहाइ वा,
जाणाइ वा, जुग्गा इ वा, गिल्ली इ वा, थिल्लीइ वा, पिल्लीइ वा, पवहणाणि वा, सिवियाइवा, संदमाणियाई वा?
उ. गौतम ! वहाँ ये महोत्सव नहीं होते हैं। हे आयुष्मन् श्रमण !
वे मनुष्य महोत्सव की महिमा से रहित होते हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में नटों का खेल होता है, नृत्यों
का आयोजन होता है, डोरी पर खेलने वालों का खेल होता है, कुश्तियाँ होती हैं, मुष्टिप्रहारादि का प्रदर्शन होता है, विदूषकों कथाकारों, उछलकूद करने वालों, शुभाशुभ फल कहने वालों, रास गाने वालों, बांस पर चढकर नाचने वालों, चित्रफलक हाथ में लेकर माँगने वालों, तूण (वाघ) बजाने वालों, वीणावादकों कावड लेकर घूमने वालों, स्तुति पाठकों
का मेला लगता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण! वे
मनुष्य कौतूहल से रहित कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में गाड़ी,रथ, यान (वाहन) युग्य
(चतुष्कोण वेदिका वाली और दो पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली पालकी) गिल्ली, थिल्ली, पिल्ली, प्रवहण (नौकाजहाज) शिबिका (पालखी) स्यन्दमानिका (छोटी पालखी)
आदि वाहन हैं? . उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे __ मनुष्य पैदल चलने वाले होते हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में घोड़े, हाथी, ऊँट, बैल, भैसें,
गधे, टट्टू, बकरे और भेड़े होती हैं ?
उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, पादचारविहारिणो णं ते
मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे आसा इ वा, हत्थी इवा,
उट्टा इवा, गोणा इवा, महिसाइ वा, खराइ वा, घोडा
इवा,अजा इवा, एला इया? उ. हंता, गोयमा ! अस्थि, नो चेव णं तेसिं मणुयाणं
परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति।
उ. हाँ, गौतम ! होते हैं, परन्तु उन मनुष्यों के उपभोग के लिए
नहीं होते।