Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 632
________________ मनुष्य गति अध्ययन चंदपाणिलेहा, सूरपाणिलेहा, संखपाणिलेहा, चक्कपाणिलेहा, दिसासोत्थिय पाणिलेहा, चंद-सूर-संख-चक्क-दिसासोत्थिय पाणिलेहा, अणेगवर लक्खणुत्तम पसत्थरइय पाणिलेहा, वरमहिस वराहसीह सद्ल उसभणागवर पडिपुन्न विउल उन्नत खंधा, चउरंगुल सुप्पमाणा कंबुवर सरिसगीया, अवट्ठित सुविभत्तसुजात चित्तमंसुमंसल संठिय पसत्थ सदूलविपुल हणुया, ओतविय सिलप्पवाल बिंबफल सन्निभाहरोहा, पंडुर-ससि सगल विमल निम्मल संखगोखीर फेण दगरय मुणालिया धवल दंतसेढी, अखंडदंता अफुडियदंता अविरलदंता सुजातदंता एगदंतसेढिव्य अणेगदंता, हुतवह निद्धतधोत तत्ततव णिज्जरत्ततलतालुजीहा, गरुलायय उज्जुतुंग णासा, अवदालिय पोंडरीयनयणा कोकासितधवलपत्तलच्छा, - १३७१ ) हाथों में रेखाएँ-चन्द्ररेखा, सूर्यरेखा, शंखरेखा, चक्ररेखा, दक्षिणावर्त स्वस्तिकरेखा, चन्द्र, सूर्य-शंख-चक्रदक्षिणावर्त स्वस्तिक की मिलीजुली होती हैं। हाथ-अनेक श्रेष्ठ, लक्षण युक्त उत्तम, प्रशस्त, स्वच्छ, आनन्दप्रद रेखाओं से युक्त हैं। स्कंध-श्रेष्ठ भैंसा, शूकर, सिंह, शार्दूल, (व्याघ्र) बैल और हाथी के स्कंध की तरह प्रतिपूर्ण, विपुल और उन्नत हैं। ग्रीवा-चार अंगुल प्रमाण ऊँची श्रेष्ठ शंख के समान है। ठुड्ढी (होठों के नीचे का भाग) अवस्थित सुविभक्त सुन्दररूप से उत्पन्न दाढी के बालों से युक्त, सुन्दर संस्थान युक्त, प्रशस्त और व्याघ्र की विपुल ठुड्ढी के समान है। होठ-परिकर्मित शिलाप्रवाल और बिंबफल के समान लाल हैं। दांत-सफेद चन्द्रमा के टुकड़ों जैसे निर्मल हैं और शंख, गाय का दूध, फेन,जलकण और मृणालिका के तंतुओं के समान सफेद हैं, उनके दांत अखण्डित होते हैं, टूटे हुए नहीं होते हैं, अलग-अलग नहीं होते हैं, वे सुन्दर दांत वाले हैं, उनके दांत अनेक होते हुए भी एक दंत पंक्ति जैसे दिखाई देते हैं। जीभ और तालु-अग्नि में तपाकर धोये गये और पुनः तप्त किये गये तपनीय स्वर्ण के समान लाल हैं। नासिका-गरूड़ की नासिका जैसी लम्बी, तीखी और ऊँची होती है। आँखें-सूर्यकिरणों से विकसित नील कमल जैसी होती हैं तथा वे खिले हुए श्वेत कमल जैसी कोनों पर लाल, बीच में काली और सफेद तथा पश्मपुट वाली होती है। मौह-ईषत् आरोपित धनुष के समान वक्र, रमणीय, कृष्ण, मेघराजि की तरह काली, संगत (प्रमाणोपेत) दीर्घ, सुजात, पतली, काली और स्निग्ध होती है। कान-मस्तक के भाग तक कुछ-कुछ लगे हुए और प्रमाणोपेत हैं। वे सुन्दर कानों वाले हैं, अर्थात् भली प्रकार श्रवण करने वाले हैं। कपोल-(गाल) पीन और मांसल होते हैं। ललाट-उदित बालचन्द्र जैसा प्रशस्त, विस्तीर्ण और समतल होता है। मुख-पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसा सौम्य होता है। मस्तक-छत्राकार और उत्तम लक्षणों वाला, कूटाकार (पर्वत शिखर) की तरह उन्नत और पाषाण की पिण्डी की तरह गोल और मजबूत होता है। खोपड़ी की चमड़ी-केशान्तभूमि (दाडिम के फूल की तरह लाल, तपनीय सोने के समान, निर्मल और सुन्दर होती है। मस्तक के बाल खुले-किये जाने पर भी शाल्मलि वृक्ष के फल की तरह घने और निविड़ होते हैं, वे बाल मृदु, निर्मल, प्रशस्त, सूक्ष्म, लक्षणयुक्त, सुंगन्धित, सुन्दर भुजभोचक (रलविशेष) नीलमणि (मरकतमणि) भंवरी, नील और काजल के समान काले, हर्षित भ्रमरों के समान अत्यन्त-काले स्निग्ध और निचित जमे हुए होते हैं, वे धुंघराले और दक्षिणावर्त होते हैं। आणामिय चावरुइर किण्हब्भराइ य संठिय संगय आयत सुजात तणुकसिणनिद्ध भमुया, अल्लीणप्पमाणजुत्त सवणा सुस्सवणा, पीणमंसल कवोलदेसभागा, अचिरुग्गय बालचंदसंठिय पसत्थ विच्छिन्नसमणिडाला उडुवइपडिपुण्णसोमवदणा, छत्तागारुत्तमंगदेसा, घणनिचिय सुबद्ध लक्खपुण्णय कूडागारणिभपिंडियसीसे, दाडिमपुप्फपगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुजाय केसंत केसभूमी, सामलिय बोंड घणणिचिय छोडिय मिउ विसयपसत्थ सुहुम लक्खण सुगंध सुन्दर भुयमोयग भिगिणीलकज्जल पहट्ठ भमरगण णिद्धणिकुरंब निचियकुंचियपयाहिणावत्तमुद्धसिरया,

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