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( १३५८ ।।
२. पराजिणित्ता णाममेगे,णो जइत्ता, ३. एगा जइत्ता वि, पराजिणित्ता वि, ४. एगा नो जइत्ता, नो पराजिणित्ता।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जइत्ता णाममेगे,णो पराजिणित्ता,
२. पराजिणित्ता णाममेगे,णो जइत्ता,
३. एगे जइत्ता वि,पराजिणित्ता वि,
द्रव्यानुयोग-(२) २. कुछ सेनाएँ पराजित होती हैं, किन्तु विजय प्राप्त नहीं करतीं, ३. कुछ सेनाएं कभी विजय प्राप्त करती हैं और कभी पराजित
हो जाती हैं, ४. कुछ सेनाएँ न विजय प्राप्त करती हैं और न पराजित ही
होती हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष (कष्टों पर) विजय प्राप्त करते हैं, किन्तु (उनसे)
पराजित नहीं होते (जैसे-श्रमण भगवान महावीर), २. कुछ पुरुष (कष्टों) से पराजित होते हैं, परन्तु उन पर विजय
प्राप्त नहीं करते (जैसे कुण्डरीक), ३. कुछ पुरुष (कष्टों पर) कभी विजय प्राप्त करते हैं और कभी
उनसे पराजित हो जाते हैं, (जैसे शैलक राजर्षि), ४. कुछ पुरुष न (कष्टों पर) विजय प्राप्त करते हैं और न (उनसे)
पराजित होते हैं। (२) सेना चार प्रकार की कही गई हैं, यथा१. कुछ सेनाएँ जीतकर जीतती हैं, २. कुछ सेनाएँ जीतकर भी पराजित होती हैं, ३. कुछ सेनाएँ पराजित होकर भी जीतती हैं, ४. कुछ सेनाएँ पराजित होकर पराजित ही होती हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जीतकर जीतते हैं, २. कुछ पुरुष जीतकर भी पराजित होते हैं, ३. कुछ पुरुष पराजित होकर भी जीतते हैं, ४. कुछ पुरुष पराजित होकर पराजित ही होते हैं।
४. एगेणो जइत्ता,णोपराजिणित्ता।
(२) चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. जइत्ता णाममेगे जयइ, २. जइत्ता णाममेगे पराजिणइ, ३. पराजिणित्ताणाममेगे जयइ, ४. पराजिणित्ताणाममेगे पराजिणइ। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जईत्ता णाममेगे जयइ, २. जइत्ता णाममेगे पराजिणइ, ३. पराजिणित्ता णाममेगे जयइ, ४. पराजिणित्ता णाममेगे पराजिणइ।
-ठाणं.अ.४, उ.२,सु.२९२/२-४ ७७. पक्खी दिट्ठतेण रूय-रूव विवक्खया पुरिसाणं चउभंग
परूवणं(१) चत्तारि पक्खी पण्णत्ता,तं जहा१. रूयसंपन्ने नाममेगे,णो रूवसंपन्ने, २. रूवसंपन्ने णाममेगे,णो रूयसंपन्ने, ३. एगे ख्यसंपन्ने वि, रूवसंपन्ने वि, ४. एगे णो रूयसंपन्ने,णो रूवसंपन्ने। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रूयसंपन्ने णाममेगे णो रूवसंपन्ने, २. रूवसंपण्णे णाममेगे,णो रूयसंपण्णे, ३. एगे रूयसंपण्णे वि, रूवसंपण्णे वि, ४. एगे णो रूयसंपण्णे,णो रूवसंपण्णे।
-ठाणं.अ.४, उ.३,सु.३१२ ७८. सुद्ध-असुद्ध वत्थ दिट्टतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं
७७. पक्षी के दृष्टान्त द्वारा स्वर और रूप की विवक्षा से पुरुषों के
चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पक्षी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पक्षी स्वरसम्पन्न होते हैं, परन्तु रूपसम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पक्षी रूपसम्पन्न होते हैं, परन्तु स्वरसम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पक्षी स्वरसम्पन्न भी होते हैं और रूपसम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पक्षी न स्वरसम्पन्न होते हैं और न रूपसम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष स्वरसम्पन्न होते हैं परन्तु रूपसम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष रूपसम्पन्न होते हैं, परन्तु स्वरसम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष स्वरसम्पन्न भी होते हैं और रूपसम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न स्वरसम्पन्न होते हैं और न रूपसम्पन्न होते हैं।
(१) चत्तारि वत्था पण्णत्ता,तं जहा१. सुद्धे णाममेगे सुद्धे,
७८. शुद्ध-अशुद्ध वस्त्रों के दृष्टान्त द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का
प्ररूपण(१) वस्त्र चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वस्त्र प्रकृति से भी शुद्ध होते हैं और स्थिति से भी शुद्ध
होते हैं,