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मनुष्य गति अध्ययन
८६. मेह दिट्ठतेण अम्मापियराणं चउभंग परूवणं(१) यत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा
१. जणइत्ता णाममेगे, जो णिम्मवत्ता,
२. णिम्मवडता णामभेगे, जो जणइत्ता,
३. एगे जणइत्ता विणिम्मवत्ता वि
४. एगे णो जणइत्ता, णो णिम्मवइत्ता ।
एवामेव चत्तारि अम्मापियरो पण्णत्ता, तं जहा
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१. जणइत्ता णाममेगे, णो णिम्मवदत्ता,
२. णिम्मवत्ता णाममेगे, णो जणइत्ता,
३. एगे जणइत्ता विणिम्मवइत्ता वि
४. एगे जो जणइत्ता णो णिम्मवत्ता।
८७. मेह दितेन रायाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा१. देसवासी णाममेगे, जो सब्यवासी,
२. सव्ववासी णाममेगे, णो देसवासी,
३. एगे देसवासी वि, सव्ववासी वि,
४. एगे णो देसवासी, णो सव्ववासी ।
एवामेव चत्तारि रायाणो पण्णत्ता, तं जहा
१. देसाहिवई णाममेगे, जो सव्याहिवई,
२. सव्वाहिवई णाममेगे, णो देसाहिबई.
३. एगे देसाहिवई वि, सव्वाहिवई वि,
४. एगे णो देसाहिवई, णो सव्वाहिवई ।
– ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३४६ ८८. वायमंडलिया दितेण इत्थीणं चउव्विहतं परूवर्ण
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- ठाणं अ. ४, उ. ४, सु. ३४६
(१) चत्तारि वायमंडलिया पण्णत्ता तं जहा
१. वामा णाममेगा वामावत्ता,
२. वामा णाममेगा दाहिणावत्ता,
३. दाहिणा णाममेगा बामावता, ४. दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता।
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८६. मेघ के दृष्टान्त द्वारा माता-पिता के चतुर्भंगों का प्ररूपण(१) मेघ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ मेघ बीज को अंकुरित करने वाले होते हैं, उसको निर्माण (फलयुक्त) करने वाले नहीं होते।
२. कुछ मेघ बीज को फल्युक्त करने वाले होते हैं, उसको अंकुरित करने वाले नहीं होते ।
३. कुछ मेच बीज को अंकुरित करने वाले भी होते हैं और उसको फल्युक्त करने वाले भी होते हैं.
४. कुछ मेघ न बीज को अंकुरित करने वाले होते हैं और न उसको फलयुक्त करने वाले होते हैं।
इसी प्रकार माता-पिता भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ माता-पिता सन्तान को उत्पन्न करने वाले होते हैं उसका निर्माण (संस्कारयुक्त) करने वाले नहीं होते ।
२. कुछ माता पिता संतान को संस्कारयुक्त करने वाले होते हैं, उसको उत्पन्न करने वाले नहीं होते।
३. कुछ माता पिता संतान को उत्पन्न करने वाले भी होते हैं और उसको संस्कारयुक्त करने वाले भी होते हैं।
४. कुछ माता पिता न संतान को उत्पन्न करने वाले होते हैं और न उसको संस्कारयुक्त करने वाले होते हैं।
८७. मेघ के दृष्टांत द्वारा राजा के चतुर्भंगों का प्ररूपण
(१) मेघ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ मेघ किसी एक देश में बरसते हैं, सब देशों में नहीं बरसते हैं,
२. कुछ मेघ सब देशों में बरसते हैं, किसी एक देश में नहीं बरसते हैं,
३. कुछ मेघ किसी एक देश में बरसते हैं और सब देशों में भी बरसते हैं.
४. कुछ मेघ न किसी देश में बरसते हैं और न सब देशों में बरसते हैं।
इसी प्रकार राजा भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
9. कुछ राजा एक प्रदेश के ही अधिपति होते हैं, सब देशों के अधिपति नहीं होते,
२. कुछ राजा सब देशों के अधिपति होते हैं, एक देश के अधिपति नहीं होते,
३. कुछ राजा एक देश के भी अधिपति होते हैं और सब देशों के भी अधिपति होते हैं,
४. कुछ राजा न एक देश के अधिपति होते हैं और न सब देशोंके अधिपति होते हैं।
८८. वातमंडलिका के दृष्टान्त द्वारा स्त्रियों के चतुर्विधत्व का
प्ररूपण
(१) वातमंडलिका चार प्रकार की कही गई हैं, यथा१. कुछ बातमंडलिका वाम और वामावर्त होती है, २. कुछ वातमंडलिका वाम और दक्षिणावर्त होती है, ३. कुछ वातमंडलिका दक्षिण और वामावर्त होती है, ४. कुछ वातमंडलिका दक्षिण और दक्षिणावर्त होती है।