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३. अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणए, ४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणए । (३) चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे,
२. जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, ३. अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे,
४. अजुते णाममेगे अजुत्तरूवे ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे,
२. जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे,
३. अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे,
४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे,
(४) चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा१. जुत्ते णाममेगे जुतसोभे,
२. जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे,
३. अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे,
४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा
१. जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे,
२. जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे,
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३. अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे,
४. अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे । - ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३१९ ६८. जुग्गारिया दिट्ठतेण पहोप्पह जाई पुरिसाणं चउभंग परूवणं
(१) चत्तारि जुग्गारिया पण्णत्ता, तं जहा
१. पंथजाई णाममेगे, नो उप्पहजाई, २. उप्पहजाई णाममेगे, नो पंथजाई, ३. एगे पंथजाई वि, उप्पहजाई वि,
४. एगे णो पंथजाई, णो उप्पहजाई ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. पंथजाई णाममेगे, जो उच्पहजाई, २. उप्पहजाई णाममेगे, णो पंथजाई, ३. एगे पंथजाई वि, उप्पहजाई वि, ४. एगे णो पंथजाई, णो उप्पहजाई।
-ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३१९
६९. सारही दिट्ठतेण जोग-विजोयगस्स पुरिसाणं चउमंग परूवणं
(१) चत्तारि सारही पण्णत्ता, तं जहा
१. जोयावइत्ता णाममेगे, णो विजोयावइत्ता,
द्रव्यानुयोग - (२)
३. कुछ पुरुष अयुक्त होकर युक्त परिणत होते हैं, ४. कुछ पुरुष अयुक्त होकर अयुक्त परिणत होते हैं। (३) युग्य चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ युग्य युक्त होकर युक्त रूप वाले होते हैं, २. कुछ युग्य युक्त होकर अयुक्त रूप वाले होते हैं, ३. कुछ युग्य अयुक्त होकर युक्त रूप वाले होते हैं,
४. कुछ युग्य अयुक्त होकर अयुक्त रूप वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष युक्त होकर युक्त रूप वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष युक्त होकर अयुक्त रूप वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष अयुक्त होकर युक्त रूप वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष अयुक्त होकर अयुक्त रूप वाले होते हैं। (४) युग्य चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ युग्य युक्त होकर युक्त शोभा वाले होते हैं.
२. कुछ युग्य युक्त होकर अयुक्त शोभा वाले होते हैं, ३. कुछ युग्य अयुक्त होकर युक्त शोभा वाले होते हैं, ४. कुछ युग्य आयुक्त होकर अयुक्त शोभा वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युक्त होकर युक्त शोभा वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष युक्त होकर अयुक्त शोभा वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष अयुक्त होकर युक्त शोभा वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष अयुक्त होकर अयुक्त शोभा वाले होते हैं।
६८. युग्य गमन दृष्टान्त द्वारा पथोत्पथगामी पुरुषों के चतुर्थंगों का
प्ररूपण
(१) युग्य (घोड़े आदि का जोड़ा) का ऋत (गमन) चार प्रकार का कहा गया हैं, यथा
१. कुछ युग्य मार्गगामी होते हैं, उन्मार्गगामी नहीं होते हैं, २. कुछ युग्य उन्मार्गगामी होते हैं, मार्गगामी नहीं होते हैं,
३. कुछ युग्य मार्गगामी भी होते हैं और उन्मार्गगामी भी होते हैं,
४. कुछ युग्य मार्गगामी भी नहीं होते हैं और उन्मार्गगामी भी नहीं होते हैं।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष मार्गगामी होते हैं, उन्मार्गगामी नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष उन्मार्गगामी होते हैं, मार्गगामी नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष मार्गगामी भी होते हैं और उन्मार्गगामी भी होते हैं. ४. कुछ पुरुष न मार्गगामी होते हैं और न उन्मार्गगामी होते हैं।
६९. सारथि के दृष्टान्त द्वारा योजक- वियोजक पुरुषों के चतुर्थंगों
का प्ररूपण
(१) सारथि चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ सारथि योजक होते हैं, किन्तु वियोजक नहीं होते (बैल आदि को गाड़ी से जोड़ने वाले होते हैं, मुक्त करने वाले नहीं होते हैं),