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२०. घाण विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं
(१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गंधं अग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. गंधं अग्घाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. गंधं अग्घाइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।
(२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गंधं अग्धामीतेगे सुमणे भवइ, २. गंधं अग्धामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. गंध अग्धामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।
(३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा १. गंधं अग्घाइस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. गंधं अग्घाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. गंध अग्घाइस्सामीतेगेणोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।
(४) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. गंध अणग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. गंधं अणग्याइत्ताणामेगे दुम्मणे भवइ, ३. गंध अणग्घाइत्ता णामेगेणोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।
द्रव्यानुयोग-(२) २०. सूंघने की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का
प्ररूपण(१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गंध लेकर 'सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष गंध लेकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष गंध लेकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क
होते हैं। (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गंध लेता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष गंध लेता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष गंध लेता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न
दुर्मनस्क होते हैं। (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गंध लेऊँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष गंध लेऊँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष गंध लेऊँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न
दुर्मनस्क होते हैं। (४) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गंध नहीं लेकर सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष गंध नहीं लेकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष गंध नहीं लेकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क
होते हैं। (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गंध नहीं लेता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष गंध नहीं लेता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष गंध नहीं लेता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और
न दुर्मनस्क होते हैं। (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गंध नहीं लेऊँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष गंध नहीं लेऊँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष गंध नहीं लेऊँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और
न दुर्मनस्क होते हैं। २१. आस्वाद की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का
प्ररूपण(१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष रस चख कर सुमनस्क होते हैं,
२. कुछ पुरुष रस चख कर दुर्मनस्क होते हैं, . ३. कुछ पुरुष रस चख कर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क
होते हैं। (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष रस चखता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रस चखता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रस चखता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न
दुर्मनस्क होते हैं।
(५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गंधं ण अग्धामीतेगे सुमणे भवइ, २. गंधण अग्धामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. गंधं ण अग्धामीतेगेणो सुमणे णोदुम्मणे भवइ।
(६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गंधंण अग्घाइस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. गंधं ण अग्घाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. गंध ण अग्घाइस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।
__-ठाणं अ.३, उ.२, सु. १६८(११०-११५) २१. आसाय विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं
(१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रसं आसाइत्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. रसं आसाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. रसं आसाइत्ता णामेगेणोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।
(२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रसं आसादेमीतेगे सुमणे भवइ, २. रसं आसादेमीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. रसं आसादेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।