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मनुष्य गति अध्ययन (२) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता,तं जहा१. उज्जू णाममेगे उज्जूपरिणए,
२. उज्जू णाममेगे वंकपरिणए,
३. वक णाममेगे उज्जूपरिणए,
४. वकणाममेगे वंकपरिणए।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उज्जू णाममेगे उज्जूपरिणए,
२. उज्जू णाममेगे वंकपरिणए, ३. वकणाममेगे उज्जूपरिणए, ४. वक णाममेगे वंकपरिणए।
(३) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता,तं जहा१. उज्जू णाममेगे उज्जूरूवे, २. उज्जू णाममेगे वंकरूवे, ३. वक णाममेगे उज्जूरूवे, ४. वक णाममेगे वंकरूवे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उज्जूणाममेगे उज्जूरूवे, २. उज्जू णाममेगे वंकरूवे, ३. वंक णाममेगे उज्जूरूवे,
४. वक णाममेगे वंकरूवे। -ठाणं. अ.४, उ.१.सु.२३६ ५५. पत्तोवाइ रुक्ख दिट्टतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं
(२) वृक्ष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वृक्ष मूल में भी सरल और ऊपर से भी सरल परिणति
वाले होते हैं, २. कुछ वृक्ष मूल में सरल किन्तु ऊपर से वक्र परिणति वाले
होते हैं, ३. कुछ वृक्ष मूल में वक्र किन्तु ऊपर से सरल परिणति वाले
होते हैं, ४. कुछ वृक्ष मूल में भी वक्र और ऊपर से भी वक्र परिणति वाले
होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष स्वभाव से भी सरल होते हैं और प्रवृत्ति से भी सरल
होते हैं, २. कुछ पुरुष स्वभाव से सरल होते हैं किन्तु प्रवृत्ति से वक्र होते हैं, ३. कुछ पुरुष स्वभाव से वक्र होते हैं किन्तु प्रवृत्ति से सरल होते हैं, ४. कुछ पुरुष स्वभाव से भी वक्र होते हैं और प्रवृत्ति से भी वक्र
होते हैं। (३) वृक्ष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वृक्ष शरीर से ऋजु होते हैं और दर्शनीय रूप वाले होते हैं, २. कुछ वृक्ष शरीर से ऋजु होते हैं किन्तु वक्ररूप वाले होते हैं, ३. कुछ वृक्ष शरीर से वक्र होते हैं किन्तु दर्शनीय रूप वाले होते हैं, ४. कुछ वृक्ष शरीर से वक्र होते हैं और वक्र रूप वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष शरीर से ऋजु होते हैं और सुन्दर रूप वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर से ऋजु होते हैं किन्तु वक्र रूप वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से वक्र होते हैं किन्तु सुन्दर रूप वाले होते हैं,
४. कुछ पुरुष शरीर से वक्र होते हैं और वक्र रूप वाले होते हैं। ५५. पत्तों आदि से युक्त वृक्ष के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का
प्ररूपण(१) वृक्ष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पत्तों से युक्त,
२. फूलों से युक्त, ३. फलों से युक्त,
४. छाया से युक्त। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पत्तों वाले वृक्षों के समान (सूत्र के दाता) २. फूलों वाले वृक्षों के समान (अर्थ के दाता) ३. फलों वाले वृक्षों के समान (सूत्रार्थ का अनुवर्तन और संरक्षण) ४. छाया वाले वृक्षों के समान (सूत्रार्थ की सतत उपासना करने
वाले)। ५६. पत्र के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पत्ते चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. असिपत्र-तलवार जैसा पत्र, २. करपत्र-करोत जैसा पत्र,
(१) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता,तं जहा१. पत्तोवए,
२. पुप्फोवए, ३. फलोवए,
४. छायोवए। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. पत्तोवा रुक्खसमाणे, २. पुष्फोवा रुक्खसमाणे, ३. फलोवा रुक्खसमाणे, ४. छायोवा रुक्खसमाणे। -ठाणं. अ.४, उ.३.सु.३१३
५६. पत्त दिट्टतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पत्ता पण्णत्ता,तं जहा१. असिपत्ते,
२. करपत्ते, १. ठाणं, अ.३, उ.१,सु. १३४