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४. पणए णाममेगे पणए।
(२) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता,तं जहा१. उण्णए णाममेगे उण्णयपरिणए,
२. उण्णएणाममेगे पणयपरिणए, ३. पणए णाममेगे उण्णयपरिणए, ४. पणए णाममेगे पणयपरिणए। एवामेव चत्तारि पुरिसजायापण्णत्ता,तं जहा१. उण्णए णाममेगे उण्णयपरिणए,
२. उण्णए णाममेगे पणयपरिणए, ३. पणए णाममेगे उण्णयपरिणए, ४. पणए णाममेगे पणयपरिणए। (३) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता,तं जहा१. उण्णए णाममेगे उण्णयस्वे, २. उण्णए णाममेगे पणयरूवे, ३. पणए णाममेगे उण्णयरूवे, ४. पणए णाममेगे पणयरूवे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उण्णए णाममेगे उण्णयरूवे, २. उण्णए णाममेगे पणयरूवे, ३. पणए णाममेगे उण्णयरूवे, ४. पणए णाममेगे पणयरूवे। -ठाणं. अ.४, उ.१, सु. २३६
द्रव्यानुयोग-(२) ४. कुछ पुरुष शरीर से भी प्रणत होते हैं और गुणों से भी प्रणत
___ होते हैं। (२) वृक्ष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत होते हैं और उन्नत परिणत होते हैं,
(अशुभ रस आदि को छोड़ कर शुभ रस आदि में परिणत
होते हैं,) २. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत होते हैं किन्तु प्रणत परिणत होते हैं, ३. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत होते हैं और उन्नत परिणत होते हैं, ४. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत होते हैं और प्रणत परिणत होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष शरीर से उन्नत होते हैं और उन्नत परिणत होते हैं,
(अवगुणों को छोड़कर गुणों में परिणत होते हैं) २. कुछ पुरुष शरीर से उन्नत होते हैं किन्तु प्रणत परिणत होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से प्रणत होते हैं किन्तु उन्नत परिणत होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से प्रणत होते हैं और प्रणत परिणत होते हैं। (३) वृक्ष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत होते हैं और उन्नत रूप वाले होते हैं, २. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत होते हैं किन्तु प्रणत रूप वाले होते हैं, ३. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत होते हैं किन्तु उन्नत रूप वाले होते हैं, ४. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत होते हैं और प्रणत रूप वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष शरीर से उन्नत होते हैं और उन्नत रूप वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर से उन्नत होते हैं,और प्रणत रूप वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से प्रणत होते हैं किन्तु उन्नत रूप वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से प्रणत होते हैं और प्रणत रूप वाले
होते हैं। ५४. ऋजु वक्र वृक्षों के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का
प्ररूपण(१) वृक्ष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वृक्ष पहले भी ऋजु (सरल) होते हैं और बाद में भी ऋजु
होते हैं, २. कुछ वृक्ष पहले ऋजु होते हैं और बाद में वक्र होते हैं, ३. कुछ वृक्ष पहले वक्र होते हैं और बाद में ऋजु होते हैं, ४. कुछ वृक्ष पहले भी वक्र होते हैं और बाद में भी वक्र होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से भी ऋजु होते हैं और प्रकृति से __ भी ऋजु होते हैं, (साधु) २. कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से ऋजु होते हैं किन्तु प्रकृति से वक्र
होते हैं, (धूर्त) कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से वक्र होते हैं किन्तु प्रकृति से ऋजु
होते हैं, (शिक्षक) ४. कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से भी वक्र होते हैं और प्रकृति से
भी वक्र होते हैं, (दुर्जन)
५४. उज्जूवंक रुक्ख दिद्रुतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं
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(१) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता,तं जहा१. उज्जू णाममेगे उज्जू,
२. उज्जू णाममेगे वक, ३. वंक णाममेगे उज्जू, ४. वंके णाममेगे वंके। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उज्जू णाममेगे उज्जू,
२. उज्जू णाममेगे वंक,
३. वकणाममेगे उज्जू,
४. वक णाममेगे वके।