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१३२८ (१४) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा
१. बलसंपण्णे णाममेगे,णो सीलसंपण्णे, २. सीलसंपण्णे णाममेगे,णो बलसंपण्णे, ३. एगे बलसंपण्णे वि,सीलसंपण्णे वि,
४. एगे णो बलसंपण्णे, णो सीलसंपण्णे। (१५) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा
१. बलसंपण्णे णाममेगे,णो चरित्तसंपण्णे, २. चरित्तसंपण्णे णाममेगे,णो बलसंपण्णे, ३. एगे बलसंपण्णे वि, चरित्तसंपण्णे वि,
४. एगे णो बलसंपण्णे, णो चरित्तसंपण्णे।
(१६) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा
१. रूवसंपण्णे णाममेगे,णो सुयसंपण्णे, २. सुयसंपण्णे णाममेगे,णो रूवसंपण्णे, ३. एगे रूवसंपण्णे वि, सुयसंपण्णे वि,
४. एगेणो रूवसंपण्णे,णो सुयसंपण्णे। (१७) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा
१. रूवसंपण्णे णाममेगे, णो सीलसंपण्णे, २. सीलसंपण्णे णाममेगे,णो रूवसंपण्णे, ३. एगे रूवसंपण्णे वि,सीलसंपण्णे वि,
४. एगे णो रूवसंपण्णे,णो सीलसंपण्णे। (१८) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा
१. रूवसंपण्णे णाममेगे,णो चरित्तसंपण्णे, २. चरित्तसंपण्णे णाममेगे,णो रूवसंपण्णे, ३. एगे रूवसंपण्णे वि, चरित्तसंपण्णे वि,
द्रव्यानुयोग-(२) (१४) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न होते हैं, शील-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष शील-सम्पन्न होते हैं, बल-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न भी होते हैं और शील-सम्पन्न भी होते हैं,
४. कुछ पुरुष न बल-सम्पन्न होते हैं और न शील-सम्पन्न होते हैं। (१५) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न होते हैं, चारित्र-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष चारित्र-सम्पन्न होते हैं, बल-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न भी होते हैं और चारित्र-सम्पन्न भी
होते हैं, ४. कुछ पुरुष न बल-सम्पन्न होते हैं और न चारित्र-सम्पन्न
होते हैं। (१६) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते हैं, श्रुत-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष श्रुत-सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न भी होते हैं और श्रुत-सम्पन्न भी होते हैं,
४. कुछ पुरुष न रूप-सम्पन्न होते हैं और न श्रुत-सम्पन्न होते हैं। (१७) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते हैं, शील-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष शील-सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते, ३. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न भी होते हैं और शील-सम्पन्न भी होते हैं,
४. कुछ पुरुष न रूप सम्पन्न होते हैं और न शील सम्पन्न होते हैं। (१८) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते हैं और चारित्र-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष चारित्र-सम्पन्न होते हैं रूप-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न भी होते हैं और चारित्र-सम्पन्न भी
होते हैं। ४. कुछ पुरुष न रूप-सम्पन्न होते हैं और न चारित्र-सम्पन्न
होते हैं। (१९) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष श्रुत-सम्पन्न होते हैं, शील-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष शील-सम्पन्न होते हैं, श्रुत-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष श्रुत-सम्पन्न भी होते हैं और शील-सम्पन्न भी होते हैं,
४. कुछ पुरुष न श्रुत-सम्पन्न होते हैं और न शील-सम्पन्न होते हैं। (२०) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कुछ पुरुष श्रुत-सम्पन्न होते हैं चारित्र-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष चारित्र-सम्पन्न होते हैं, श्रुत-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष श्रुत-सम्पन्न भी होते हैं और चारित्र-सम्पन्न भी
होते हैं, ४. कुछ पुरुष न श्रुत-सम्पन्न होते हैं और न चारित्र-सम्पन्न
होते हैं।
४. एगे णो रूवसंपण्णे,णो चरित्तसंपण्णे।
(१९) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा
१. सुयसंपण्णे णाममेगे, णो सीलसंपण्णे, २. सीलसंपण्णे णाममेगे, णो सुयसंपण्णे, ३. एगे सुयसंपण्णे वि, सीलसंपण्णे वि,
४. एगे णो सुयसंपण्णे, णो सीलसंपण्णे। (२०) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा
१. सुयसंपण्णे णाममेगे,णो चरित्तसंपण्णे, २. चरित्तसंपण्णे णाममेगे,णो सुयसंपण्णे, ३. एगे सुयसंपण्णे वि, चरित्तसंपण्णे वि,
४. एगे णो सुयसंपण्णे,णो चरित्तसंपण्णे।