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१३३२ २. परिन्नायसन्ने णाममेगे,णो परिन्नायकम्मे,
३. एगे परिन्नायकम्मे वि, परिन्नायसण्णे वि,
४. एगेणो परिन्नायकम्मे, णो परिन्नायसण्णे।
(२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. परिन्नायकम्मे णाममेगे,णो परिन्नायगिहावासे,
द्रव्यानुयोग-(२) २. कुछ पुरुष पापकर्मों को छोड़ते हैं परन्तु पापकर्मों के ज्ञाता नहीं
होते हैं, ३. कुछ पुरुष पापकर्मों के ज्ञाता भी होते हैं और पापकर्मों को
छोड़ते भी हैं, ४. कुछ पुरुष न पापकर्मों के ज्ञाता होते हैं और न पापकर्मों को
छोड़ते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष परिज्ञातकर्मा होते हैं, परन्तु परिज्ञातगृहवासी
(गृहवास का त्याग करने वाले) नहीं होते, २. कुछ पुरुष परिज्ञातगृहवासी होते हैं, परन्तु परिज्ञातकर्मा नहीं
होते, ३. कुछ पुरुष परिज्ञातकर्मा भी होते हैं और परिज्ञातगृहवासी भी
होते हैं। ४. कुछ पुरुष न परिज्ञातकर्मा होते हैं और न परिज्ञातगृहवासी
होते हैं। (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष परिज्ञातसंज्ञी (भावना के जानकार) होते हैं, परन्तु
परिज्ञातगृहवासी नहीं होते, २. कुछ पुरुष परिज्ञातगृहवासी होते हैं परन्तु परिज्ञातसंज्ञी नहीं
२. परिन्नायगिहावासे णाममेगे, णो परिन्नायकम्मे,
३. एगेपरिन्नायकम्मे वि, परिन्नायगिहावासे वि,
४. एगेणो परिन्नायकम्मे, नो परिन्नायगिहावासे।
(३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. परिन्नायसन्ने णाममेगे,णो परिन्नायगिहावासे,
२. परिन्नायगिहावासे णाममेगे, नो परिन्नायसण्णे,
होते,
३. एगे परिन्नायसन्ने वि, परिन्नायगिहावासे वि,
४. एगे णो परिन्नायसण्णे,णो परिन्नायगिहावासे।
-ठाणं.अ.४, उ.३, सु. ३२७ ४१. आवाय-संवासभद्द विवक्खया पुरिसाणं चउभंग परूवणं
(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आवाय भद्दए णाममेगे,णो संवासभद्दए,
२. संवासभद्दए णाममेगे,णो आवायभद्दए,
३. एगे आवायभद्दए वि, संवासभद्दए वि,
३. कुछ पुरुष परिज्ञातसंज्ञी भी होते हैं और परिज्ञातगृहवासी भी
होते हैं, ४. कुछ पुरुष न परिज्ञातसंज्ञी होते हैं और न परिज्ञातगृहवासी
होते हैं। ४१. आपात-संवास भद्र की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्भगों का
प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष मिलते समय अच्छे होते हैं, किन्तु सहवास में अच्छे
नहीं होते, २. कुछ पुरुष सहवास में अच्छे होते हैं, किन्तु मिलने पर अच्छे
नहीं होते, ३. कुछ पुरुष मिलने पर भी अच्छे होते हैं और सहवास में भी
अच्छे होते हैं, ४. कुछ पुरुष न मिलने पर अच्छे होते हैं और न सहवास में अच्छे
होते हैं। ४२. सुगत-दुर्गत की अपेक्षा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष धन से भी दुर्गत-दरिद्र होते हैं और ज्ञान से भी दुर्गत
होते हैं, २. कुछ पुरुष धन से दुर्गत होते हैं परन्तु ज्ञान से सुगत होते हैं, ३. कुछ पुरुष धन से सुगत होते हैं और ज्ञान से दुर्गत होते हैं, ४. कुछ पुरुष धन से भी सुगत होते हैं और ज्ञान से भी सुगत
होते हैं।
४. एगे णो आवायभद्दए, णो संवासभद्दए।
-ठाणं.अ.४, उ.१.सु.२५६ ४२. सुग्गयं दुग्गयं पडुच्च पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. दुग्गएणाममेगे दुग्गए,
२. दुग्गए णाममेगे सुग्गए, ३. सुग्गए णाममेगे दुग्गए, ४. सुग्गए णाममेगे सुग्गए।