________________
१२९१
तिर्यञ्च गति अध्ययन
लउय-छत्तोह सिरीस-सत्तिवण्ण-दधिवण्ण-लोद्ध-धव चंदण-अज्जुण-णीव-कुडग-कलंबाणं, एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो
उववज्जति? उ. गोयमा ! एत्थ वि मूलाईया दस उदेसगा तालवग्ग
सरिसा नेयव्वा जाव बीयं। -विया. स. २२, व.३, सु.१ ४९. वाइंगणिआइगुच्छाणं मूलकंदाइजीवेसु उववायाइ परूवणं
प. अह भंते ! वाइंगणि-अल्लइ-बोंडइ जाव गंजपाडला
दासि-अंकोल्लाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते
णं भंते !जीवा कओहिंतो उववज्जंति? उ. गोयमा ! एत्थ वि मूलाईया दस उदेसगा जाव बीयं त्ति
निखसेस सेसं जहा वंसवग्गो। -विया. स. २२, व.४,सु.१ ५०. सिरियकाऽऽइगुम्माणं मूल-कंदाइजीवेसु उववायाइ परूवणं-
लकुचव (लीची) छत्रौघ, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्रक धव, चन्दन, अर्जुन, नीम, कुटज, और कदम्ब इन सब वृक्षों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं तो भंते ! वे कहां आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! यहां भी तालवर्ग के समान मूल से बीज पर्यन्त दस
उद्देशक कहने चाहिए। ४९. बैंगन आदि गुच्छों के मूल कंदादि जीवों में उत्पातादि का
प्ररूपणप्र. भंते ! बैंगन, अल्लइ, बोंडइ, गंजपाटला, दासि, अंकोल्ल
पर्यन्त इन सभी गुच्छों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते
हैं तो भंते ! वे कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वंशवर्ग के समान यहां भी मूल से बीज पर्यन्त समग्र
रूप से दस उद्देशक जानने चाहिए। ५०. सिरियकादि गुल्मों के मूल कंदादि जीवों में उत्पातादि का
प्ररूपणप्र. भन्ते ! सिरियक, नवमालिक, कोरंटक, बन्धुजीवक, मणोज्ज
से नलिनी-कुन्द और महाजाति पर्यन्त गुल्मों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं तो भंते! वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं?
प. अह भंते ! सिरियक-णवमालिय-कोरंटग-बंधुजीवग
मणोज्जा जाव नवणीय-कुंद-महाजाईणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो
उववज्जति? उ. गोयमा ! एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा सालीणं।
-विया. स. २२, व.५, सु.१ ५१. पुसफलिआइवल्लीणं मूल कंदाइजीवेसु उववायाइ परूवणं
प. अह भंते ! पूसफलि-कालिंगी-तुंबी-तउसी-एला- वालुंकी
जाव दधिफोल्लइ काकलि-मोकलि अक्कबोंदीणं एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उववज्जति?
उ. गौतम ! यहाँ भी शालिवर्ग के समान मूलादि समग्र दस
उद्देशक जानने चाहिए। ५१. पूसफलिका आदि वल्लियों के मूल कंदादि जीवों में उत्पातादि
का प्ररूपणप्र. भन्ते ! पूसफलिका, कालिंगी (तरबूज) तुम्बी,त्रपुषी (ककड़ी)
एला (इलायची) वालुंकी यावत् दधिफोल्लई, काकली (कागणी) सोक्कली और अर्कबोन्दी इन सब वल्लियों (बेलों) के मूल में जो जीव उत्पन्न होते हैं तो भन्ते ! वे कहाँ से आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! यहाँ भी तालवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक कहने
चाहिए। विशेष-फलोद्देशक में फल की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुष पृथक्त्व की होती है, सर्वत्र स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट वर्ष पृथक्त्व की है। शेष कथन पूर्ववत् है। इस प्रकार इन छह वर्गों में कुल साठ उद्देशक होते हैं।
उ. गोयमा ! एवं मूलाईया दस उद्देसगा कायव्वा जहा
तालवग्गे। णवर-फलउद्देसओ, ओगाहणाए जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं, ठिई सव्वत्थ जहण्णेणं अंतीमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहुत्तं ।
सेसंतं चेव। एवं छसु वि वग्गेसु सट्ठि उद्देसगा भवति।।
-विया.स.२२, व.६,सु.१ ५२. आलुय-मूलगाईणं मूल-कंदाइजीवेसु उववायाइ परूवणं
५२. आलू मूलगादि के मूल कन्दादि जीवों में उत्पातादि का
प्ररूपण
रायगिहे जाव एवं वयासिप. अह भंते ! आलूय मूलग-सिंगबेर हलिद्द रूरू कंडरिय
जारू छीरविरालि-किट्ठि कुंदु कण्हकडभु १. १-२. तालेगट्ठिय, ३. बहुबीयगा य, ४. गुच्छा य गुम्म वल्ली य।
छद्दसवग्गा एए सट्ठि पुण होंति उद्देसगा ॥
राजगृह नगर में गौतम ! स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछाप्र. भन्ते ! आलू, मूला, अदरक, (शृंगबेर) हल्दी, रूरू,
कंडरिक, जीरू, क्षीरविराली किट्ठि, कुन्दु, कृष्णकडभु,
-विया. स. २२, व. १-६, गा. १